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लिखिए अपनी भाषा में

  1. एक बादशाह ने दो गुलाम सस्ते दाम में खरीदे। एक से बातचीत की तो वह गुलाम
    बड़ा बुद्धिमान और मीठा बोलने वाला मालूम हुआ, और जब होठ ही मिठास के बने
    हुए हों तो उनमें शरबत को छोड़ और क्या निकलेगा? मनुष्य की मनुष्यता उसकी
    वाणी में भरी हुई है। जब इस गुलाम की परीक्षा कर चुका तो दूसरे को पास
    बुलाकर बादशाह ने देखा कि इसके दांत काले-काले हैं और मुंह गन्दा है।
    बादशाह इसके चेहरे को देखकर खुश नहीं हुआ, परन्तु उसकी योग्यता और गुणों
    की जांच करने लगा।

    पहले गुलाम को तो उसने कह दिया कि जा, और नहा-धोकर आ। दूसरे से कहा, ''तू
    अपना हाल सुना। तू अकेला ही सौ गुलामों के बराबर है। तू ऐसा मालूम नहीं
    होता, जैसा तेरे साथी ने कहा था और उसने हमें तेरी तरफ से बिल्कुल निरश
    कर दिया था।''

    गुलाम ने जवाब दिया, ''यह बड़ा सच्चा आदमी है। इससे ज्यादा भला आदमी
    मैंने कोई नहीं देखा। यह स्वभाव से ही सत्यवादी है। इसलिए इसने जो मेरे
    संबंध में कहा है, यदि ऐसा ही मैं इसके बारे में कहूं तो झूठा दोष लगाना
    होगा।

    मैं इस भले आदमी की बुराई नहीं करुंगा। इससे तो यही अच्छा है कि अपने को
    दोषी मान लूं। बादशाह सलामत! सम्भव है कि वह मुझमें जो ऐब देखता हैं, वह
    मुझे खुद न दीखते हों।''

    बादशाह ने कहा, ''तू भी इसके अवगुणों का बखान कर, जैसा कि इसने तेरे
    दोषों का किया है, जिससे मुझे इस बात का विश्वास हो जाये कि तू मेरा
    हितैशी है और शासन के प्रबन्ध में मेरी सहायता कर सकता है।''

    गुलाम बोला, ''बादशाह सलामत! इस दूसरे गुलाम में नम्रता और सच्चाई हैं।
    वीरता और उदारता भी ऐसी है कि मौका पड़ने पर प्राण तक न्यौछावर कर सकता
    है। चौथी बात यह है कि वह अभिमानी नहीं और स्वयं ही अपने अवगुण प्रकट कर
    देता है। दोषों को प्रकट करना और ऐब ढ़ूंढ़ना हालांकि बुरा है तो भी वह
    दूसरे लोगों के लिए अच्छा है और अपने लिए बुरा हे।''

    बादशाह ने कहा, ''अपने साथी की प्रशंसा में अति न कर और दूसरे की प्रशंसा
    के सहारे अपनी प्रशंसा न कर, क्योंकि यदि परीक्षा के लिए इसे मैं तेरे
    सामने बुलाऊं तो तुझको लज्जित होना पड़ेगा।''
    गुलाम ने कहा, ''नहीं, मेरे साथी के सदगुण इससे भी सौ गुने हैं। जो कुछ
    मैं अपने मित्र के संबंध में जानता हूं, यदि आपको उसपर विश्वास नहीं तो
    मैं और क्या निवेदन करूं!''

    इस तरह बहुत-सी बातें करके बादशाह ने उस कुरूप गुलाम की अच्छी तरह
    परीक्षा कर ली और जब पहला गुलाम स्नान करके बाहर आया तो उसको अपने पास
    बुलाया। बदसूरत गुलाम को वहां से बिदा कर दिया। उस सुन्दर गुलाम के रूप
    और गुणों की प्रशंसा करके कहा, ''मालूम नहीं, तेरे साथी को क्या हो गया
    था कि इसने पीठ-पीछे तेरी बुराई की!''

    इसगुलाम ने भौं चढ़ाकर कहा, ''ऐ दयासागर! इस नीच ने मेरे बारे में जो कुछ
    कहा; उसका जरा-सा संकेत तो मुझे मिलना चाहिए।''

    बादशाह ने कहा, ''सबसे पहले तेरे दोगलेपन का जिक्र किया कि तू प्रकट में
    दवा और अन्तर में दर्द है।''
    जब इसने बादशाह के मुंह से ये शब्द सुने तो इसका क्रोध भड़क उठा, चेहरा
    तम-तमाने लगा और अपने साथी के संबंध में जो कुछ मुंह में आया, बकने लगा।
    बुराइयां कतरा ही चला गया तो बादशाह ने इसके होंठों पर हाथ रख दिया कि
    बस, हद हो गयी। तेरी आत्मा गन्दी है और उसका मुंह गन्दा है। ऐ गन्दी
    आत्मावाले! तू दूर बैठ। वह गुलाम अधिकारी बने और तू उसके अधीन रह।

    [याद रखो, सुन्दर और लुभावना रूप होते हुए भी यदि मनुष्य में अवगुण हैं
    तो उसका मान नहीं हो सकता। और यदि रूप बुरा, पर चरित्र अच्छा है तो उस
    मनुष्य के चरणों में बैठकर प्राण विसर्जन कर देना भी श्रेष्ठ है।

    kuchkhaskhabar@gmail.com

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