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  1. कल्याण रमन श्रीनिवासन तमिलनाडु के छोटे से गांव में पला-बढ़ा है। जब वह
    15 साल का था, उसके पिता का निधन हो गया था। वह, उसका भाई और मां सिर्फ
    420 रु. मासिक की पेंशन पर निर्भर थे। उनको झोपड़ी में रहना पड़ा। उसमें
    न बिजली थी। न ही पानी।

    वह स्ट्रीट लाइट में पढ़ता था। उसके परिजनों ने उसकी मां से कल्याण को
    टाइपिंग सीखने को कहा ताकि वह कुछ कमा सके। लेकिन मां ने इंकार कर दिया
    और कल्याण की बेहतर तालीम पर ध्यान दिया। मां की दृढ़ता के कारण कल्याण
    की पढ़ाई सुनिश्चित हो सकी।जब उससे पूछा कि परिवार कैसे चला। तो उसका
    जवाब था हमने हालातों से समझौता कर लिया था। कई मौकों पर उसने मां से कहा
    कि एक दिन मैं तुझको इतना पैसा दूंगा कि तू सोच भी नहीं सकेगी कि इसका
    क्या करे। कल्याण को इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश मिल गया।

    कॉलेज में पढ़ाई के दौरान कई मौकों पर उसके पास खाने के लिए दूसरे
    छात्रों पर निर्भर रहना होता था, ताकि किसी तरह से पेट भर सके। अंतिम
    सेमेस्टर की परीक्षा के पहले उसने दिन भर खाना नहीं खाया और परीक्षा खत्म
    होने पर बेहोश हो गया।

    कॉलेज से ग्रेजुएशन के बाद टीसीएस में सिलेक्शन हो गया। उसे टीसीएस के
    मुंबई ऑफिस में पहुंचना था। जब वह पहले दिन ऑफिस गया तो चप्पल पहनकर गया
    था। उसके मैनेजर ने उसे डांटा और कहा कि कल से जूते पहनकर आना। इस पर
    कल्याण ने कहा मैं नहीं पहन सकता। मैनेजर ने फिर डांटा तो उसने कहा कि
    अभी मेरी हालत जूते खरीदने तक की नहीं है। मैनेजर ने पूछा कि तुम कहां रह
    रहे हो, कल्याण ने कहा कि दादर रेलवे स्टेशन। मैनेजर तब तक भीतर से हिल
    चुका था।

    उसने एक माह की सैलेरी कल्याण को एडवांस में दी और रहने की व्यवस्था भी
    की। इस एडवांस से कल्याण ने एक जोड़ जूते लिए और 1500 रु. मां को भेजकर
    अपना वादा पूरा किया। बेहद कम समय में उसने वॉलमार्ट, अमेजन और अन्य
    बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए काम किया।

    आज कल्याण एक बड़ी अमेरिकी कंपनी में सीओओ है और अमेरिका में बस चुका है।
    यह जानना बेहद इस्पायरिंग है कि कल्याण जैसे लोग बुरा दौर देखते हुए और
    मजबूत हो जाते हैं। बुरा समय कभी खत्म होता नहीं, लेकिन मजबूत लोग पार कर
    ही जाते हैं। मैंने अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुना है कि कुछ पाने के
    लिए कुछ खोना पड़ता है, लेकिन मेरा मानना है कि कुछ पाने के लिए कुछ करना
    पड़ता है।



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  3. अगली बार जब आप अपने पार्टनर से बहस कर रहे हों तो सॉरी कहने के बजाए
    अपने रिश्‍ते को मजबूती देने की कोशिश करें.

    अमेरिका की बेलौर यूनिवर्सिटी की एक नई रिसर्च से पता चला है कि माफी
    मांगने की जगह अपने साथी को कुछ अधिकार और स्‍पेस देनी चाहिए. इसमें
    पार्टनर को आजादी देना, गलतियां कबूल करना, पार्टन का आदर करना और सुलह
    करने की इच्‍छा शामिल है.

    डेली मेल के मुताबिक अमेरिका के टेक्‍सास की बेलौर यूनिवर्सिटी के
    एसोसिएट प्रोफेसर कीथ सैनफोर्ड ने यह रिसर्च की है. रिसर्च के नतीजे
    शादीशुदा कपल्‍स पर किए गए दो अध्‍ययनों पर आधारित हैं.

    पहले अध्‍ययन में 18 से 77 साल के 455 शादीशुदा कपल्‍स को शामिल किया
    गया. कपल्‍स से कहा गया कि वे अपने बीच चल रहे किसी मुद्दे के समाधान को
    लेकर एक लिस्‍ट बनाएं. इसमें छोटे-मोटे मतभेदों और गलतफहमी से लेकर बड़ी
    बहस तक शामिल थी.

    दूसरे अध्‍ययन में 19 से 81 साल के 498 शादीशुदा कपल्‍स शामिल थे. इसके
    बाद यह देखा गया कि झगड़े सुलझाने के लिए पहले अध्‍ययन में से जो समाधान
    सामने आए थे उनमें से कितने ऐसे समाधान थे जो दूसरे अध्‍ययन में शामिल
    लोग भी चाहते हैं.

    सैनफोर्ड के मुताबिक दूसरे अध्‍ययन के परिणाम भी पहले अध्‍ययन जैसे ही
    थे. उन्‍होंने कहा, 'बहस के दौरान कपल्‍स एक-दूसरे से क्‍या चाहते हैं यह
    उनकी अंतर्निहित चिंता और टकराव से निपटने के तरीकों पर निर्भर करता है.
    मसलन, अगर पति इस बात को लेकर चिंतित है कि उसकी पत्‍नी को लगता है कि वह
    उसे अनदेखा कर रहा है तो वह उसके लिए फूल खरीदकर इस गलतफहमी को दूर करने
    की कोशिश करेगा.'

    सैनफोर्ड ने कहा, 'लेकिन अगर पार्टनर को लगता है उनके रिश्‍ते को खतरा है
    तो यहां पर फूल काम नहीं करेंगे.'

    इसके अलावा रिसर्च में शामिल लोगों ने यह भी कहा कि साथी के साथ ज्‍यादा
    समय बिताना चाहिए, विरोधात्‍मक रवैया छोड़ देना चाहिए, एक-दूसरे से
    ज्‍यादा बात करनी चाहिए और साथी के प्रति स्‍नेह जताना चाहिए. इस लिस्‍ट
    में माफी आखिरी नंबर पर थी.

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  4. पुराने जमाने की बात है। एक राजा ने दूसरे राजा के पास एक
    पत्र और सुरमे की एक छोटी सी डिबिया भेजी। पत्र में
    लिखा था कि जो सुरमा भिजवा रहा हूं वह अत्यंत मूल्यवान है। इसे लगाने
    से अंधापन दूर हो जाता है। राजा सोच में पड़ गया। वह समझ नहीं पा रहा था
    कि इसे किस-किस को दे। उसके राज्य में नेत्रहीनों की संख्या अच्छी- खासी
    थी,

    पर सुरमे की मात्रा बस इतनी थी जिससे दो आंखों की रोशनी लौट सके।
    राजा इसे अपने किसी अत्यंत प्रिय व्यक्ति को देना चाहता था।
    तभी राजा को अचानक अपने एक वृद्ध मंत्री की स्मृति हो आई। वह
    मंत्री बहुत ही बुद्धिमान था, मगर आंखों की रोशनी चले जाने के कारण
    उसने राजकीय कामकाज से छुट्टी ले ली थी और घर पर ही रहता था।

    राजा ने सोचा कि अगर उसकी आंखों की ज्योति वापस आ गई
    तो उसे उस योग्य मंत्री की सेवाएं फिर से मिलने लगेंगी। राजा ने
    मंत्री को बुलवा भेजा और उसे सुरमे की डिबिया देते हुए कहा, 'इस
    सुरमे को आंखों में डालें। आप पुन: देखने लग जाएंगे। ध्यान रहे यह
    केवल 2 आंखों के लिए है।' मंत्री ने एक आंख में सुरमा डाला।
    उसकी रोशनी आ गई।

    उस आंख से मंत्री को सब कुछ दिखने लगा। फिर
    उसने बचा-खुचा सुरमा अपनी जीभ पर डाल लिया।
    यह देखकर राजा चकित रह गया। उसने पूछा, 'यह आपने क्या किया?अब

    तो आपकी एक ही आंख में रोशनी आ पाएगी। लोग आपको काना कहेंगे।'
    मंत्री ने जवाब दिया, 'राजन, चिंता न करें। मैं काना नहीं रहूंगा। मैं
    आंख वाला बनकर
    हजारों नेत्रहीनों को रोशनी दूंग मैंने चखकर यह जान लिया है
    कि सुरमा किस चीज से बना है। मैं अब स्वयं सुरमा बनाकर
    नेत्रहीनों को बांटूंगा।

    ' राजा ने मंत्री को गले लगा लिया और कहा, 'यह
    हमारा सौभाग्य है कि मुझे आप जैसा मंत्री मिला। अगर हर राज्य
    के मंत्री आप जैसे हो जाएं तो किसी को कोई दुख नहीं होगा।' —

    Arun Kumar-986871801
    akarun198@gmail.com

    info@kuchkhaskhabar.com

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  5. वो आवाज़ का जादू या गर्मी हो लहजे की
    वो अन्दाज़ निराला हो या चमक हो चेहरे की
    हम किसको करेँ याद और किसको भुलाएँ
    तुम्हेँ देखते हैँ जितना , उतना तुम्हेँ चाहेँ
    हर बात तुम्हारी यूँ औरोँ से है जुदा
    जैसे फ़लक पे चाँद सितारोँ से है जुदा
    हैँ आज भी दुनिया मेँ फ़नकार बहुत अच्छे
    आगे तुम्हारे लगते हैँ लेकिन सभी बच्चे
    आज बस जिस्म के चर्चे हैँ जान नहीँ है
    सब कुछ है सिनेमा मेँ मगर 'प्राण' नहीँ है
    यूँ ही सदा हँसते रहो न तुम्हेँ हो कभी ग़म
    है दुआ हमारे बीच रहो ऐसे ही तुम हर दम


     'यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिन्दगी ...'फिल्म जंजीर में प्राण जिस मस्ती में यह गाना गाते नजर आए, वास्तविक लाइफ में भी वे अपने दोस्तों से बिलकुल इसी गाने के बोल की तरह ताल्लुक रखते थे। फ़िल्मी दुनिया का यह विलेन रियल लाइफ में किसी हीरो से कम नहीं था। यारों का यार 'प्राण' 12 जुलाई 2013 की रात सभी को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह गए। उन्हें श्रृद्धांजलि स्वरुप पेश है यादों को समेटे हुए उनकी निजी लाइफ की कुछ तस्वीरें ...(सभी तस्वीरें pransikand.com से साभार ली गई हैं)

























  6. बॉलीवुड के सुपर स्‍टार प्राण का अंति‍म संस्‍कार शनि‍वार दोपहर मुंबई के शि‍वाजी पार्क श्‍मशान घाट में कर दि‍या गया। इससे पहले लीलावती अस्‍पताल से एक एंबुलेंस से उनका पार्थिव शरीर शि‍वाजी पार्क लाया गया जहां दोपहर तक अंति‍म दर्शन के लि‍ए उन्‍हें रखा गया। बॉलीवुड के महानायक अमि‍ताभ बच्‍चन भी प्राण साहब के अंति‍म संस्‍कार में हि‍स्‍सा लेने के लि‍ए पहुंचे। आइए तस्वीरों में देखते हैं और कौन-कौन शामिल हुआ प्राण साहिब के अंतिम सफ़र में शामिल...





















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