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लिखिए अपनी भाषा में



  1. न्यूयार्क : अर्जेटीना निवासी मार्टिन पार्लाटो ने एक ऐसी वेबसाइट तैयार की है, जिसपर इंटरनेट उपयोग करने वालों को अपने सपने साकार करने में मदद मिल सकती है। पार्लाटो ने वेबसाइट अपने पिता के सम्मान में शुरू की है, जिनका उसके बचपन में ही स्वर्गवास हो चुका था।

    समाचार एजेंसी ईएफई के मुताबिक पार्लाटो ने कहा कि अमेरिका में पंजीकृत वेबसाइट `पॉसिबल डॉट कॉम` (पीओएसआईबीएल डॉट कॉम) की शुरुआत निजी जरूरतें पूरी करने के लिए की गई थी। वेबसाइट पिछले साल नवम्बर में शुरू हुई है और अब तक कई युवाओं के सपने साकार करने में मदद कर चुकी है। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि सोशल नेटवर्क में सामाजिक बनने की पूरीम्भावना है, लेकिन उसका इस तरह से इस्तेमाल नहीं हो रहा है। इसलिए मैंने कुछ अलग चीज तैयार करने की सोची।

    पार्लाटो ने अपने पिता के बारे में कहा कि उन्होंने मुझे उन लोगों की खोज करने की एक स्पष्ट सोच दी, जो जरूरतमंद हैं, साथ ही उनके जीवन से जुड़ने और उसे पूरी तरह से बदल देने और उसे जो भी सफलता मिले उसके प्रति उदार रहने की सोच दी। उसके पिता इटली के एक प्रवासी के पुत्र थे और जब पार्लाटो सात वर्ष के थे तभी उनकी मृत्यु हो चुकी थी।
    उन्होंने कहा कि `पॉसिबल डॉट कॉम` पर लोग अपने सपने के बारे में बता सकते हैं और उन्हें कई प्रकार की सहायता मिल सकती है, जिनमें आर्थिक सहायता भी शामिल है। उन्होंने अर्जेटीना के एक शहर कोडरेबा के एक बच्चे का उदाहरण दिया, जो अपनी स्टेम कोशिकाओं का प्रतिरोपण करवाना चाहता था, उसे एक कम्पनी ने चीन में यह प्रक्रिया पूरी करने के लिए 60 हजार डॉलर की मदद की। पार्लाटो अपनी कम्पनी का मुख्यालय न्यूयार्क ले जाना चाहता है। इन दिनों वह न्यूयार्क में सम्भावित निवेशकों और फाउंडेशनों के साथ बैठक कर रहा है, जो पॉसिबल के साथ जुड़ना चाहते हों। (एजेंसी)
    https://www.posibl.com

  2. ऑल इन वन डिवाइस

    स्मार्टफोन और टैबलेट के अलावा भी बाजार में कई उपयोगी पोर्टेबल डिवाइस
    जैसे पोर्टेबल बैटरी चार्जर, पोर्टेबल स्पीकर वगैराह भी मौजूद हैं।

    लेकिन अब इन सारी डिवाइस के लिए कौन पैसे खर्च करता रहे। इसी जरूरत होने
    पर भी हम इन सबको नजरअंदाज कर देते हैं।

    लेकिन अब इसको नजरअंदाज करने की जरूरत नहीं है क्योंकि आप एक ही डिवाइस
    से कई जरूरतों वाले काम निपटा सकते हैं।


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  3. एमपी3 प्लेयर/माइक्रोएसडी कार्ड रीडर

    एमपी3 प्लेयर
    पोट्रॉनिक्स सुपर बॉक्स को पोर्टेबल चार्जर के अलावा एमपी3 प्लेयर के रूप
    में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

    यहां सुपर बॉक्स मोड बदलकर प्ले बटन का इस्तेमाल करके सुपर बॉक्स पर
    ईयरफोन पर गाने सुने जा सकते हैं।

    माइक्रोएसडी कार्ड रीडर
    इसको इस छोटी स्टोरेज डिवाइस के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं। जिसके
    जारिए आप अपना डाटा ट्रांसफर कर सकते हैं।


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  4. कीमत

    इस डिवाइस को इसी भी रूप में इस्तेमाल करने से पहले इसके मोड को बदलें।
    कार्ड रीडर के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए सुपर बॉक्स को कंप्यूटर में
    कनेक्ट करने पर ऑफ मोड पर रखें।

    इसको चार्जर करने ‌के लिए इस सुपर बॉक्स को ऑन मोड पर रखें।

    इसकी कीमत कंपनी ने 2,499 रुपए तय की है।

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  5. पोर्टेबल स्पीकर/वायस रिकॉर्डर

    पोर्टेबल स्पीकर
    स्मार्टफोन और टैबलेट के इस दौर में पोर्टेबल स्पीकर की भी काफी मांग है।
    आप पोट्रॉनिक्स सुपर बॉक्स पोर्टेबल स्पीकर भी बना सकते हैं।

    ईयरफोन के अलावा इसको पोर्टेबल स्पीकर के तौर पर तेज आवाज में भी किया जा सकता है।

    वायस रिकॉर्डर
    इतना ही नहीं पोट्रॉनिक्स सुपर बॉक्स वायस रिकॉर्डर भी बनाया जा सकता है।
    इसके लिए आपको ज्यादा कुछ करने की जररूत भी नहीं है।


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  6. Hindi Quotes

    Tuesday, November 26, 2013

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  7. इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सनेल सिलेक्‍शन(आईबीपीएस) के जर‌िए स्पेशलिष्ट
    ऑफिसर केडर(एसपीएल-III) की भर्ती के लिए एक परीक्षा का आयोजन किया जाएगा।
    इसके लिए व‌िज्ञप्त‌ि जारी कर दी गई है। इसके तहत 21 सार्वजन‌िक क्षेत्र
    के बैंकों से विशिष्‍ट अधिकार‌ियों की भर्ती के लिए परीक्षा होगी।

    इसके लिए 8 फरवरी और 9 फरवरी 2014 को एक सम्मिलित लिखित परीक्षा का आयोजन
    किया जाएगा। इस परीक्षा में जो सफलता प्राप्त करेंगे, उनको अंकों के आधार
    पर आईआईएम के कैट एक्जाम की तरह अंक निर्धारण किया जाएगा और उनको
    साक्षात्कार के लिए बुलाया जाएगा तथा विज्ञप्ति के अनुसार सफल घोषित किया
    जाएगा।

    इन विशिष्ट अधिकार‌ियों के पदों में सूचना प्रोद्यौगिकी अध‌िकारी, कृषि
    क्षेत्र अध‌िकारी, राजभाषा अध‌िकारी, विधि अध‌िकारी, एचआर, विपणन
    अध‌िकारी, चार्टर्ड अकाउंटेंट, मैनेजर क्रेडिट तथा फाइनेंस एक्जीक्यूटिव
    के पद शाम‌िल हैं।

    इस परीक्षा में आवेदन करने के लिए आवेदक 14 दिसंबर 2013 तक आईबीपीएस की
    वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।

    इन पदों के संबंध में आवश्यक योग्यता, आयु और अन्य सभी महत्वपूर्ण
    जानकारी के लिए वेबसाइट
    http://www.ibps.in/career_pdf/Draft_ad_Specialist_Officers_III.pdf पर
    लॉग ऑन करें।

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  8. सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ने सभी इंटरनेट यूजर्स को अपना दीवाना बना
    रखा है। स्मार्टफोन में फेसबुक चलाने के लिए प्रीलोडेड एप्लिकेशन होती
    है। लेकिन उनका क्या जिनके पास न ही स्मार्टफोन है और न ही इंटरनेट की
    सुविधा?

    मोबाइल में फेसबुक पोस्ट देखें के लिए एप्लिकेशन के अलावा सबसे अहम चीज
    इंटरनेट ‌क‌नेक्टिविटी का होना जरूरी होता है।

    लेकिन अब फेसबुक चलाने के लिए इंटरनेट और स्मार्टफोन का होना जरूरी नहीं
    है। अब बिना इंटरनेट और एक साधारण बेसिक फोन के जरिए भी फेसबुक का
    इस्तेमाल किया जा सकता है।

    यू2ओपीआ कंपनी ने ऐसी तकनीक पर काम किया है जिसके जारिए आप एक बेसिक फोन
    में भी बिना इंटरनेट के आसानी से फेसबुक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

    U2opia कंपनी ने इसके लिए यूएसएसडी (USSD) अनस्ट्रेक्चर्ड सेप्लीमेंट्री
    सर्विस डाटा का इस्तेमाल किया है। जिसके जारिए कोई भी मोबाइल फोन यूजर्स
    फेसबुक से कनेक्ट हो सकता है।

    यूएसएसडी

    यूएसएसडी वो तकनीक है जिसका इस्तेमाल टेलीकॉम कंपनियों द्वारा किया जाता
    है। इसके जारिए कोई भी मोबाइल यूजर्स टेलीकॉम ऑपरेटर के सर्वर से कनेक्ट
    हो सकता है।

    मोबाइल यूजर्स ‌अपने फोन का बिल व अन्य जानकारी प्राप्त करने के लिए जिस
    तकनीक का इस्तेमाल करते हैं जो यूएसएसडी ही है।
    जिसके जारिए मोबाइल यूजर्स कुछ मोबाइल नंबर डॉयल करके फोन ‌बैलेंस वगैराह
    की जानकारी प्राप्त करते हैं।


    यहां किसी तरह की ये पबंदी नहीं है कि आप कितने समय तक फेसबुक इस्तेमाल
    कर सकते हैं या कितने मैसेज देख सकते हैं।

    कैसे करने बिना इंटरनेट के फेसबुक

    यूएसएसडी तकनीक के कोई जारिए बीएसएनएल के उपभोक्ताओं को छोड़कर सभी
    मोबाइल यूसर्ज इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
    इसके इस्तेमाल के लिए सबसे पहले आपको आपने फोन से *325# डॉयल करना होगा।


    इसके बाद आप इस सर्विस पर रजिस्टर्ड ‌हो जाएंगे। कुछ मिनट के बाद यूजर्स
    यूएसएसडी के मन्यू का इस्तेमाल करके फेसबुक स्टेट्स चेक कर सकते हैं।
    यूजर्स कंमेंट और पोस्ट भी कर सकते हैं।

    यूएसएसडी इस्तेमाल करने का शुल्क

    अलग-अलग ऑपरेटर्स ने इसके लिए अलग-अलग शुल्क� तय किया है। हालांकि 1-1.5
    रुपए प्रतिदिन के हिसाब से इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

    इस सविर्स की कमी की बात करें तो इसके जारिए आप फेसबुक की तस्वीरें नहीं
    देख सकते हैं। हालांकि बिना इंटरनेट के अपने फेसबुक दोस्तों के साथ
    कनेक्ट रहने का ये सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है।

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  9. ये सुनने में कुछ अजीब सा लग सकता है कि बिना बिजली के लैपटॉप कैसे चार्ज
    हो सकता है। लेकिन अब आपको लैपटॉप चार्ज करने के लिए अलग से बिजली की
    जरूरत नहीं होगी।

    एक अमेरिकी डिजाइन फर्म ने इस बात का दावा किया है कि उसने एक ऐसी डेस्क
    तैयार की है, जिसमें साइकिल जैसी मशीन लगी है।

    इस मशीन के पैडल पर पैर मारने से इलै‌क्ट्रिकल पॉवर पैदा होता है। इस
    पॉवर का इस्तेमाल लैपटॉप जैसी डिवाइस चार्ज करने के लिए किया जा सकता है।

    पेडल पावर के मुताबिक, इससे सिर्फ बिजली ही नहीं, बल्कि और भी कई घरेलू
    काम मसलन, अनाज की पिसाई, वॉटर पंप चलाए जा सकते हैं।

    लेकिन केवल उसी मशीन में ही इसे फिट किया जा सकेगा, जिसकी ताकत 1 हॉर्स
    पावर से कम हो।

    एक औसत शख्स इस पैडल से 100 वॉट बिजली पैदा कर सकता है। यही नहीं एक मिनट
    में इससे पांच गैलन पानी भी खींचा जा सकता है।

    कंपनी का कहना है कि जब बाइसाइकिल टेक्नॉलजी अपने आप में परफेक्ट है, तो
    फिर इसका इस्तेमाल सिर्फ ट्रांसपोर्टेशन के लिए क्यों किया जाए। इस
    टेक्नॉलजी का इस्तेमाल रोजमर्रा के और कामों के लिए भी किया जा सकता है।

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  10. धन धन ध्यानचंद

    Wednesday, November 20, 2013

    सत्ता के निर्णय तले देश को संवारने का या देश के भविष्य को निखारने के
    दावों के बीच सिर्फ वर्तमान में जीते और भावनाओं में बहते देश के इस टीवी
    युग में सचिन तेन्दुलकर को भारत बना देना अपनी जगह लेकिन जरा एम्स में
    हुई उस मौत की खामोशी को भी ध्यान से याद कर लीजिए जो 3 दिसंबर 1979 को
    हुई थी। बिना उस खामोश मौत के इतिहास को जाने समझे न तो जादूगर मेजर
    ध्यानचंद की वह खामोश मौत समझ आयेगी और न ही सचिन तेन्दुलकर का भारत रत्न
    होना। चलिए टीवी तले अंधेरे के अतीत में चलते हैं। 1926 से 1947 के दौर
    में। कुल 21 बरस।

    जी, सचिन के 24 तो ध्यानचंद के 21 बरस। सचिन के कुल जमा 15921 रन । तो
    ध्यानचंद के 1076 गोल। तो कुछ देर के लिये सचिन और अब के दौर को भूल
    जाइये । अब कल्पना की उड़ान भरें और टीवी युग से पहुंच जाइये गुलाम भारत
    में संघर्ष करते कांग्रेस और मुस्लिम लीग से इतर हॉकी के मैदान में। 1936
    का बर्लिन ओलंपिक । दुनिया के सबसे ताकतवर तानाशाह एडोल्फ हिटलर की
    देख-रेख में बर्लिन ओलंपिक के लिये तैयार है। बर्लिन ओलंपिक को लेकर
    हिटलर कोई कोताही बरतना नहीं चाहते हैं। बर्लिन शहर को दुल्हन की तरह
    सजाया गया है।

    और बर्लिन इंतजार कर रहा है हॉकी के जादूगर ध्यानचंद का। जर्मनी के
    आखबारों में ध्यानचंद का नाम एक ऐसे सेनापति की तरह छापा गया है जो
    अंग्रेजों का गुलाम होकर भी अंग्रेजों को उनके घर में मात देता है। पहली
    बार 1928 में भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक में हिस्सा लेने ब्रिटेन पहुंचती है
    और 10 मार्च 1928 को आर्मस्टडम में फोल्कस्टोन फेस्टीवल। ओलंपिक से ठीक
    पहले फोल्कस्टोन फेस्टीवल में जिस ब्रिटिश साम्राज्य में सूरज डूबता नहीं
    था उस देश की राष्ट्रीय टीम के खिलाफ भारत की हॉकी टीम मैदान में उतरती
    है। और भारत ब्रिटेन की राष्ट्रीय हॉकी टीम को इस तरह पराजित करती है कि
    अपने ही गुलाम देश से हार की कसमसाहट ऐसी होती है कि ओलंपिक में ब्रिटेन
    खेलने से इंकार कर देता है। और हर किसी का ध्यान ध्यानचंद पर जाता है, जो
    महज 16 बरस में सेना में शामिल होने के बाद रेजिमेंट और फिर भारतीय सेना
    की हॉकी टीम में चुना जाता है और सिर्फ 21 बरस की उम्र में यानी 1926 में
    न्यूजीलैड जाने वाली टीम में शरीक होता है। और जब हॉकी टीम न्यूजीलैड से
    लौटती है तो ब्रिटिश सैनिकअधिकारी ध्यानचंद का ओहदा बढाते हुये उसे
    लांस-नायक बना देते हैं। क्योंकि न्यूजीलैंड में ध्यानचंद की स्टिक कुछ
    ऐसी चलती है कि भारत 21 में से 18 मैच जीतता है। 2 मैच ड्रा होते हैं और
    एक में हार मिलती है। और हॉकी टीम के भारत लौटने पर जब कर्नल जार्ज
    ध्यानचंद से पूछते हैं कि भारत की टीम एक मैच क्यों हार गयी तो ध्यानचंद
    का जबाब होता है कि उन्हें लगा कि उनके पीछे बाकी 10 खिलाडी भी है तो आगे
    क्या होगा। किसी से हारेंगे नहीं। और ध्यानचंद लांस नायक बना दिये गये।

    तो बर्लिन ओलंपिक एक ऐसे जादूगर का इंतजार कर रहा है, जिसने सिर्फ 21 बरस
    में दिये गये वादे को ना सिर्फ निभाया बल्कि मैदान में जब भी उतरा अपनी
    टीम को हारने नहीं दिया। चाहे आर्मस्टम में 1928 का ओलंपिक हो या सैन
    फ्रांसिस्को में 1932 का ओलंपिक। और अब 1936 में क्या होगा जब हिटलर के
    सामने भारत खेलेगा। क्या जर्मनी की टीम के सामने हिटलर की मौजूदगी में
    ध्यानचंद की जादूगरी चलेगी। जैसे जैसे बर्लिन ओलंपिक की तारीख करीब आ रही
    है वैसे वैसे जर्मनी के अखबारो में ध्यानचंद के किस्से किसी सितारे की
    तरह यह कहकर तमकने लगे है कि."चांद" का खेल देखने के लिये पूरा जर्मनी
    बेताब है। क्योंकि हर किसी को याद आ रहा है 1928 का ओलंपिक । आस्ट्रिया
    को 6-0, बेल्जियम को 9-0, डेनमार्क को 5-0, स्वीटजरलैंड को 6-0 और
    नीदरलैंड को 3-0 से हराकर भारत ने गोल्ड मेडल जीता तो समूची ब्रिटिश
    मीडिया ने लिखा। यह हॉकी का खेल नहीं जादू था और ध्यानचंद यकीनन हॉकी के
    जादूगर। लेकिन बर्लिन ओलंपिक का इंतजार कर रहे हिटलर की नज़र 1928 के
    ओलंपिक से पहले प्रि ओलपिंक में डच, बेल्जीयम के साथ जर्मनी की हार पर
    थी। और जर्मनी के अखबार 1936 में लगातार यह छाप रहे थे जिस ध्यानचंद ने
    कभी भी जर्मनी टीम को मैदान पर बख्शा नहीं चाहे वह 1928 का ओलंपिक हो या
    1932 का तो फिर 1936 में क्या होगा। क्योंकि हिटलर तो जीतने का नाम है।
    तो क्या बर्लिन ओलपिंक पहली बार हिटलर की मौजूदगी में जर्मनी की हार का
    तमगा ठोकेगी। और इधर मुंबई में बर्लिन जाने के लिये तैयार हुई भारतीय टीम
    में भी हिटलर को लेकर किस्से चल पड़े थे। पत्रकार टीम के मैनेजर पंकज
    गुप्ता और कप्तान ध्यानचंद से लेकर लगातार सवाल कर रहे थे कि क्या 1928
    में जब ओलपिंक में गोल्ड लेकर भारतीय हॉकी टीम बंबई हारबर पहुंची थी तो
    पेशावर से लेकर केरल तक से लोग विजेता टीम के एक दर्शन करने और ध्यान चंद
    को देखने भर के लिये पहुंचे थे।

    जीवन में कभी मौका मिले तो झांसी में ध्यानचंद की उस आखिरी जमीन पर जरुर
    जाइएगा, जहां टीवी युग में मीडिया नहीं पहुंचा है। वहां अब भी दूर से ही
    हॉकी स्टिक के साथ ध्यानचंद दिखायी दे जायेंगे। और जैसे ही ध्यानचंद की
    वह मूर्ति दिखायी दे तो सोचियेगा अगर ध्यानचंद के युग में टीवी होता और
    हमने ध्यानचंद को खेलते हुये देखा होता तो ध्यानचंद आज कहां होते? लेकिन
    क्या करें हमने तो ध्यानचंद को खेलते हुये देखा ही नहीं।

    उस दिन बंबई के डाकयार्ड पर मालवाहक जहाजों को समुद्र में ही रोक दिया
    गया था। जहाजों की आवाजाही भी 24 घंटे नहीं हो पायी थी क्योंकि ध्यानचंद
    की एक झलक के लिये हजारों हजार लोग बंबई हारबर में जुटे। और ओलंपिक खेल
    लौटे ध्यानचंद का तबादला 1928 में नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस
    वजीरिस्तान [फिलहाल पाकिस्तान] में कर दिया गया, जहां हाकी खेलना मुश्किल
    था। पहाड़ी इलाका था । मैदान था नहीं। लेकिन ओलंपिक में सबसे ज्यादा गोल
    [5 मैच में 14 गोल] करने वाले ध्यानचंद का नाम 1932 में सबसे पहले ओलंपिक
    टीम के खिलाडियों में यहकहकर लिखा गया कि सेंट फ्रांसिस्को ओलंपिक से
    पहले प्रैक्टिस मैच के लिये टीम को सिलोन यानी मौजूदा वक्त में श्रीलंका
    भेज दिया जाये। और दो प्रैक्टिस मैच में भारत की ओलंपिक टीम ने सिलोन को
    20-0 और 10-0 से हराया। ध्यानचंद ने अकेले डेढ दर्जन गोल ठोंके। और उसके
    बाद 30 जुलाई 1932 में शुरु होने वाले लास-एंजेल्स ओलंपिक के लिये भारत
    की टीम 30 मई को मुंबई से रवाना हुई। लगातार 17 दिन के सफर के बाद 4
    अगस्त 1932 को अपने पहले मैच में भारत की टीम ने जापान को 11-1 से हराया।
    ध्यामचंद ने 3 गोल किये और फाइनल में मेजबान देश अमेरिका से ही सामना था।
    और माना जा रहा था कि मेजबान देश को मैच में अपने दर्शकों का लाभ मिलेगा।
    लेकिन फाइनल में भारत ने अमेरिकी टीम को दो दर्ज गोल। जी भारत ने अमेरिका
    को 24-1 से हराया। इस मैच में ध्यानचंद ने 8 गोल किये। लेकिन पहली बार
    ध्यानचंद को गोल ठोंकने में अपने भाई रुप सिंह से यहा मात मिली। क्योंकि
    रुप सिंह ने 10 गोल ठोंके। लेकिन 1936 में तो बर्लिन ओलंपिक को लेकर
    जर्मनी के अखबारों में यही सवाल बड़ा था कि जर्मनी मेजबानी करते हुये
    भारत से हार जायेगा। या फिर बुरी तरह हारेगा और ध्यानचंद का जादू चल गया
    तो क्या होगा। क्योंकि 1932 के ओलंपिक में भारत ने कुल 35 गोल ठोंके थे
    और खाये महज 2 गोल थे। और तो और ध्यान चंद और उनके भाई रुपचंद ने 35 में
    से 25 गोल ठोंके थे। तो बर्लिन ओलपिक का वक्त जैसे जैसे नजदीक आ रहा था,
    वैसे वैसे जर्मनी में ध्यानचंद को लेकर जितने सवाल लगातार अखबारों की
    सुर्खियों में चल रहे थे उसमें पहली बार लग कुछ ऐसा रहा था जैसे हिटलर के
    खिलाफ भारत को खेलना है और जर्मनी हार देखने के तैयार नहीं है। लेकिन
    ध्यानचंद के हॉकी को जादू के तौर पर लगातार देखा जा रहा था। और 1932 के
    ओलंपिक के बाद और 1936 के बर्लिन ओलंपिक से पहले यानी इन चार बरस के
    दौरान भारत ने 37 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले जिसमें 34 भारत ने जीते, 2 ड्रा
    हुये और 2 रद्द हो गये। यानी भारत एक मैच भी नहीं हारा। इस दौर में भारत
    ने 338 गोल किये जिसमें अकेले ध्यानचंद ने 133 गोल किये। तो बर्लिन
    ओलंपिक से पहले ध्यानचंद के हॉकी के सफर का लेखा-जोखा कुछ इस तरह जर्मनी
    में छाने लगा कि हिटलर की तानाशाही भी ध्यानचंद की जादूगरी में छुप गयी।
    क्योंकि सभा याद करने लगे। जब 1926 में पहला टूर न्यूजीलैंड का ध्यानचंद
    ने किया था तब 48 में से 43 मैच भारत ने जीते थे। और कुल 584 गोल में से
    ध्यानचंद ने 201 गोल ठोंके थे।

    खैर इतिहास हिटलर के सामने कैसे दोहराया जायेगा शायद इतिहास बदलने वाले
    हिटलर को भी इसका इंतजार था। इसलिये बर्लिन ओलंपिक की शान ही यही थी कि
    किसी मेले की तरह ओलंपिक की तैयारी जर्मनी ने की थी। ओलंपिक ग्राउंड में
    ही मनोरंजन के साधन भी थे। और दर्शकों की आवाजाही जबरदस्त थी। तो ओलपिंक
    शुरु होने से 13 दिन पहले 17 जुलाई 1936 को जर्मनी के साथ प्रैक्टिस मैच
    भारत को खेलना था। 17 दिन के सफर के बाद पहुंची टीम थकी हुई थी। बावजूद
    इसके भारत ने जर्मनी को 4-1 से हराया। और उसके बाद ओलंपिक में बिना गोल
    खाये हर देश को बिलकुल रौदते हुये भारत आगे बढ़ रहा था और जर्मनी के
    अखबारों में छप रहा था कि हॉकी नहीं जादू देखने पहुंचे। क्योंकि हॉकी का
    जादूगर ध्यानचंद पूरी तरह एक्टिव है। लोग भी ध्यानचंद का जादू देखने ही
    ओलपिंक ग्राउंड में पहुंच रहे थे। पहले मैच में हंगरी को 4-0, फिर
    अमेरिका को 7-0, जापान को 9-0, सेमीफाइनल में फ्रांस को 10-0 । और भारत
    बिना गोल खाये हर किसी को हराकर फाइनल में पहुंचा। जहां पहले से ही
    जर्मनी फाइनल में भारत का इंतजार कर रही थी। संयोग देखिये भारत को जर्मनी
    के खिलाफ फाइनल मैच 15 अगस्त 1936 को पड़ा। भारतीय टीम में खलबली थी कि
    फाइनल देखने एडोल्फ हिटलर भी आ रहे थे। और मैदान में हिटलर की मौजूदगी से
    ही भारतीय टीम सहमी हुई थी। ड्रेसिंग रुम में सहमी टीम के सामने टीम के
    मैनेजर पंकज गुप्ता ने गुलाम भारत में आजादी का संघर्ष करते कांग्रेस के
    तिरंगे को अपने बैग से निकाला और ध्यानचंद समेत हर खिलाडी को उस वक्त
    तिंरगे की कसम खिलायी कि हिटलर की मौजूदगी में घबराना नहीं है। यह कल्पना
    का परे था। लेकिन सच था कि आजादी से पहले जिस भारत को अंग्रेजों से
    मु्क्ति के बाद राष्ट्रीय ध्वज तो दूर संघर्ष के किसी प्रतीक की जानकरी
    पूरी दुनिया को नहीं थी और संघर्ष देश के बाहर गया नहीं था। उस वक्त
    भारतीय हॉकी टीम ने तिरंगे को दिल में लहराया और जर्मनी की टीम के खिलाफ
    मैदान में उतरी। हिटलर स्टोडियम में ही मौजूद थे। टीम ने खेलना शुरु किया
    और दनादन गोल दागने भी। हाफ टाइम तक भारत 2 गोल ठोंक चुका था। 14 अगस्त
    को बारिश हुई थी तो मैदान गीला था। और बिना स्पाइक वाले रबड़ के जूते
    लगातार फिसल रहे थे। उस वक्त ध्यानचंद ने हाफ टाइम के बाद जूते उतार कर
    नंगे पांव ही खेलना शुरु किया। जर्मनी को हारता देख हिटलर मैदान छोड़ जा
    चुके थे। और नंगे पांव ही ध्यानचंद ने हाफ टाइम के बाद गोल दागने शुरु
    किया। भारत 8-1 से जर्मनी को हरा चुका था।

    बर्लिन ओलपिंक में भारत की टीम पर जर्मनी ने ही एकमात्र गोल ठोका था
    लेकिन संयोग से यह गोल भी भारतीय खिलाडी तपसेल की गलती से हुआ तो जर्मनी
    इस एक गोल पर गर्व भी नहीं कर सकता था। लेकिन तमगा देने का दिन 16 अगस्त
    तय हुआ और ऐलान हुआ कि हिटलर खुद ध्यानचंद को तमगा देंगे। इस ऐलान के बाद
    तो ध्यानचंद की आंखो की नींद रफूचक्कर हो गयी। समूची रात ध्यानचंद इस
    तनाव में ही ना सो पाये कि हिटलर कहेंगे क्या और कहीं जर्मनी की टीम को
    हराने पर कोई कदम उठाने का निर्देश ना दे दें। इधर भारत में भी जैसे ही
    खबर आयी कि कि 16 अगस्त को हिटलर ओलंपिक स्टेडियम में ध्यानचंद से
    मिलेंगे वैसे ही भारतीय अखबारो में हिटलर के उजूल-फिजूल निर्णयों के बारे
    में छपने लगा। और एक तरह की आंशका हर दिल में बैठने लगी कि हिटलर जब
    ध्यानचंद से मिलेंगे तो पता नहीं क्या कहेंगे। खैर वह वक्त भी आ गया।
    हिटलर के सामने ध्यानचंद खड़े थे। हिटलर ने ध्यामचंद की पीठ ठोंकी। नजरें
    उपर से नीचे तक की। हिटलर की नजर ध्यानचंद के जूतों में अटक गयी। जूते
    अंगूठे के पास फटे हुये थे। हिटलर ने पूछा इंडिया में क्या करते हो। सेना
    में हूं। सेना शब्द सुनते ही हिटलर ने ध्यानचंद की पीठ ठोंकी। क्या करते
    हो सेना में। पंजाब रेजिमेंट में लांस-नायक हूं। हिटलर ने तुरंत कहा
    जर्मनी में रह जाओ। यहां सेना में कर्नल का पद मिलेगा। ध्यानचंद ने कहा
    नहीं पंजाब रेजिमेंट पर मुझे गर्व है और भारत ही मेरा देश है। जैसी
    तुम्हारी इच्छा। और हिटलर ने सोने का तमगा ध्यानचंद को दिया और तुरंत
    मुड़ कर स्टेडियम से निकल गये। ध्यानचंद की सांस में सांस आयी और
    दुनियाभर के अखबारों में पहली बार हिटलर के सामने किसी के नतमस्तक ना
    होने की खबर छपी। यह कल्पना के परे है कि उस वक्त टीवी युग होता तो क्या
    होता। उस वक्त भी भावनाओ में देश बह रहा होता तो क्या होता। उस वक्त अगर
    सिर्फ वर्तमान को ही इंडिया का वजूद माना जाता तो महात्मा गांधी का
    संघर्ष भी ध्यानचंद के जादुई खेल के सामने काफूर हो चुका होता? हो सकता
    है अब के टीवी युग की तरह उस वक्त ध्यानचंद को आजादी के बाद पीएम की
    कुर्सी का ही ऑफर तो नहीं कर दिया जाता? अगर वर्तमान वक्त में कोई ऐसा
    खिलाड़ी फिर से पैदा हो जाए तो क्या होगा?

    सवाल सचिन तेदुलकर को भारत रत्न मानने से आगे का है। क्योंकि बर्लिन से
    जब हाकी टीम लौटी तो ध्यानचंद को देखने और छूने के लिये पूरे देश में
    जुनून सा था। ध्यानचंद जहां जाते वहीं हजारों लोग उमड़ते। रेजिमेंट में
    भी ध्यानचंद जीवित किस्सा बन गये। क्योंकि ध्यानचंद हिटलर से मिलकर और
    जर्मनी में रहने के हिटलर के प्रस्ताव को ठुकरा कर लौटे थे।

    तो कल्पना कीजिये ध्यानचंद का कद क्या रहा होगा। ध्यानचंद को 1937 में
    लेफ्टिनेंट का दर्जा दिया गया। ध्यानचंद के तबादले होते रहे। सेना में वह
    काम करते रहे। द्वितीय विश्व युद्द शुरु हुआ और 1945 में जब युद्द थमा तो
    खुद को 40 की उम्र का बता कर और नये लड़कों को हॉकी खेलने के लिये आगे
    लाने के लिये पहली बार ध्यनचंद ने हॉकी से रिटायरमेंट की बात की। लेकिन
    देश के दबाव में ध्यानचंद हॉकी खेलते रहे और किसी भी देश से ना हारने की
    जो बात उन्होने 1926 में की थी उसे 1947 तक बेधड़क निभाते रहे। और तो और
    आजादी के बाद जब भारतीय हॉकी फेडरेशन ने एशिय़न स्पोर्ट्रस एसोशियसन {
    इस्ट अफ्रिका } से गुहार लगायी की उन्हें खेलने का मौका दे, जिससे विभाजन
    की आंच हॉकी पर ना आये तो एशियाई स्पोर्टस एशोशियन ने साफ कहा कि अगर
    ध्यानचंद खेलने आयेंगे तो ही भारतीय टीम आये। और यह भी अपने आप में
    इतिहास है कि 23 नवंबर 1947 को जब ध्यानचंद ने 42 बरस की उम्र में टीम को
    जोड़ा तो उसमें दो पाकिस्तानी खिलाड़ी भी थे। और उस वक्त देश में दंगों
    और बहते लहू के बीच भी ध्यानचंद भारतीय हॉकी टीम को लेकर अफ्रीका पहुंचे
    और यह ऐसी टीम थी जो विभाजन से परे थी। लाहौर, कराची और पेशावर के खिलाडी
    ध्यानचंद के साथ अफ्रीका जाने को तैयार थे। और वह टीम गयी भी। और उसने 22
    मैच खेले। 61 गोल ठोंके। हारे किसी मैच में नहीं। ध्यानचंद ने लौट कर खुद
    की उम्र 40 पार बताते हुये और हॉकी ना खेलने की बात कही लेकिन देश में
    सहमति बनी नहीं और ध्यानंचद लगातार खेलते रहे। 51 बरस की उम्र में 1956
    में आखिरकार ध्यानचंद रिटायर हुये तो सरकार ने पद्मविभूषण से उन्हें
    सम्मानित किया और रिटायरमेंट के महज 23 बरस बाद ही यह देश ध्यानचंद को
    भूल गया। इलाज की तंगी से जुझते ध्यानचंद की मौत 3 दिसबंर 1979 को दिल्ली
    के एम्स में हुई। और ध्यानचंद की मौत पर देश या सरकार नहीं बल्कि पंजाब
    रेजिमेंट के जवान निकल कर आये, जिसमें काम करते हुये ध्यानचंद ने उम्र
    गुजार दी थी और उस वक्त हिटलर के सामने पंजाब रेजिमेंट पर गर्व किया था
    जब हिटलर के सामने समूचा विश्व कुछ बोलने की ताकत नहीं रखता था। पंजाब
    रेजिमेंट ने सेना के सम्मान के साथ ध्यानचंद को आखिरी विदाई दी थी।

    http://visfot.com/index.php/current-affairs/10454-dhyanchand-ki-dharohar.html

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  11. दिल्ली में देश के 33वें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले की शुरुआत हो गई
    है। पार्टनर कंट्री जापान इस बार पानी से चार्ज होने वाली बैटरी लाइट
    लेकर आया है। स्टील और मेगनेशियम से बनी ये बैटरी बिल्कुल इको फ्रेडली
    है। इसे चार्ज करने के लिए आपकों इस बैटरी को एक मिनट के लिए पानी मे
    डालना होगा और फिर से बैटरी तैयार हो जाएगी आपके मोबाइल या टॉर्च के लिए।
    इस बैटरी की कीमत है 100 रुपये।

    साथ ही अगर आप रास्ते में कहीं भी टायर पंचर होने से छुटकारा पाना चाहते
    है तो इस मेले में आपके लिए नो पंचर लोशन भी मौजूद है। ये लोशन टू व्हीलर
    और फोर व्हीलर गाडियों के टायर को पंचर नहीं होने देता। इस पंचर फ्री
    लोशन की कीमत है 450 रुपये प्रति टायर।

    साथ ही फोकस कंट्री साउथ अफ्रीका के हैंडीक्राफ्ट के सामान भी बेहतरीन
    हैं। इसके पवेलियन में आपको डेकोर से लेकर फैशन एक्सेसरीज में बढिया
    वेरायटी देखने को मिलेगी। प्रगति मैदान में चल रहा ये व्यापार मेला 27
    नवंबर तक चलेगा। हालांकि आम लोगों के लिए मेला 19 नवंबर से खोला जाएगा।
    पहले 5 दिन बिजनेस के लिहाज से देश विदेश से आने वाले व्यापारियों के लिए
    रखे गए हैं। पिछले साल 16 लाख के करीब लोग मेले में आए थे। इस बार
    आईटीपीओ प्रशासन को उम्मीद है कि ये आंकड़ा 15-20 फीसदी तक बढ़ेगा।

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  12. 24 जून को अपनी स्थापना के 150 साल पूरे कर रही रेडक्रॉस संस्था लाखों
    लोगों के ज़ख़्मों पर मरहम लगा चुकी है. शांति के लिए रेडक्रॉस को तीन
    बार नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.

    इराक़ में रेड क्रॉस का अभियान

    जो काम दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क और सरकारें इतिहास में नहीं कर पाईं,
    80 से ज़्यादा देशों में वो काम रेडक्रॉस ने कर दिखाया. सरहद, मजहब और
    ख़तरे की परवाह किए बग़ैर रेड क्रॉस ने लाखों लोगों के ज़ख्मों पर मरहम
    लगाया, उनके आंसू पोंछे. युद्ध के दौरान ज़ख्मी सैनिकों की मदद करने के
    मकसद से 150 साल पहले शुरू हुई रेड क्रॉस अब अलग लेकिन
    150 साल से मदद की मिसाल
    इंसानियत के बड़े रास्ते पर हैं. अब वो करोड़ों आम लोगों की मदद कर रही
    है. चाहे दो देशों की जंग हो, आतंकवादी हिंसा हो या फिर सूनामी और भूकंप,
    सफेद झंडे के बीच में लाल क्रॉस का निशान हर जगह दिखाई पड़ता है.

    हाल के दिनों में श्रीलंका और पाकिस्तान में आम लोगों को सहारा दे रहे
    रेड क्रॉस ने न तो कभी इराक की थकान का ज़िक्र किया, न ही अफ्रीकी देश
    रवांडा में अपनी मुश्किलें बताई. अपने राहत और बचाव कर्मियों की मौत पर
    भी उसने कभी दूसरे देश के ख़िलाफ न तो मोर्चा खोला, न ही दबाव बनाने की
    कोशिश की. इंसानियत के इस लंबे सफर में 24 जून को अपना स्थापना दिवस मना
    रहे रेड क्रॉस ने इन 150 सालों में बदली दुनिया को अपने नज़रिए देखा है
    रेड क्रॉस के प्रवक्ता फ्लोगियान वेस्टफाल कहते हैं.

    साल्फरिनो ( ख़तरों के बीच मदद )

    की लड़ाई में एक दिन में ही 40 हज़ार सैनिक मारे गए थे लेकिन उस लड़ाई
    में आम आदमी को कोई नुकसान नहीं हुआ है. आज युद्ध में सैनिक कम और आम लोग
    ही ज़्यादा मारे जाते हैं.


    इसमें कोई शक नहीं कि रेड क्रॉस के प्रयासों को देखते हुए ही दुनिया के
    ज़्यादातर देशों ने उसे कुछ विशेष अधिकार भी दिए. गैर सरकारी संस्था होने
    के बावजूद रेड क्रॉस को ही यह हक है कि वह दुनिया के किसी भी देश में
    युद्धबंदियों से मिल सके और उन्हें कानूनी मदद भी मुहैया करा सके. शांति
    के लिए तीन बार नोबेल पुरस्कार से नवाज़ी गई रेड क्रॉस ही वह एक मात्र
    संस्था है जिसने कई देशों में राहत, बचाव और पुर्नवास में मदद तो की
    लेकिन वहां की सियासत से खु़द को दूर ही रखा. बहरहाल इतना तो तय है कि
    जिस इरादे से 150 साल पहले जब रेड क्रॉस की स्थापना की गई, उसी समर्पण से
    आज भी ये संस्था इंसानियत को सहारा दे रही है.

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  13. सिख धर्म का उदय गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के साथ होता है। सिख का
    अर्थ है शिष्य। जो लोग गुरु नानक जी की शिक्षाओं पर चलते गए, वे सिख हो
    गए। गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ईस्वी में लाहौर के तलवंडी (अब ननकाना
    साहिब) में हुआ। बचपन से ही उनका मन एकांत, चिंतन और सत्संग में लगता था।
    संसारिक चीजों में उनका मन लगाने के लिए उनका विवाह कर दिया गया। गुरु
    नानक जी के यहां दो पुत्र हुए। परन्तु यह सब गुरु नानक जी को परमात्मा के
    नाम से दूर नहीं कर पाया। उन्होंने घर छोड़कर घूमना शुरू कर दिया। पंजाब,
    मक्का, मदीना, काबुल, सिंहल, कामरूप, पुरी, दिल्ली, कश्मीर, काशी,
    हरिद्वार जैसी जगहों पर जाकर उन्होंने लोगों को उपदेश दिए। उनका कहना था
    कि हिन्दू-मुस्लिम अलग नहीं हैं और सबको एक ही भगवान ने बनाया है।
    उन्होंने कहा, एक ओंकार (ईश्वर एक है), सतनाम (उसका नाम ही सच है), करता
    पुरख (सबको बनाने वाला), अकाल मूरत (निराकार), निरभउ (निर्भय), निरवैर
    (किसी का दुश्मन नहीं), अजूनी सैभं (जन्म-मरण से दूर) और अपनी सत्ता कायम
    रखने वाला है। ऐसे परमात्मा को गुरु नानक जी ने अकाल पुरख कहा, जिसकी शरण
    गुरु के बिना संभव नहीं। उनके सहज ज्ञान के साथ लोग जुड़ते गए। उनके शिष्य
    बनते गए। गुरु नानक से चली सिख परम्परा में नौ और गुरु हुए। अंतिम और
    दसवें देहधारी गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी थे। उन्होंने अपने बाद गुरुओं की
    वाणी के ग्रंथ को गुरु की गद्दी सौंपी और सिखों से कहा- अब कोई देहधारी
    गुरु नहीं होगा। सभी सिखों को आदेश है कि वे गुरु ग्रंथ साहिब जी को ही
    गुरु मानेंगे। तब से सिख धर्म में पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब ही को गुरु
    माना गया। यह धर्म विश्व का नौवां बड़ा धर्म है और भारत का पांचवां संगठित
    धर्म भी।


    Sikhism ReligionSikh Dharm ka uday Guru Nanak Dev Ji ki shikshao ke
    saath hota hai. Sikh ka arth hai shishya. Jo log Guru Nanak Ji ki
    shikshao par chalte gaye, ve Sikh ho gaye. Guru Nanak Dev Ji ka janam
    1469 me Lahor ke Talwandi (Ab Nankana Sahib) me hua. Bachpan se hi
    unka man ekant, chintan aur satsang me lagta tha. Sansarik chijo me
    unka man lagane ke liye unka Vivah kar diya gay. Guru Nanak Ji ke yaha
    2 putr huye. Parantu yah sab Guru Nanak Ji ko Paramatma ke Naam se
    door nahi kar paya. Unhone ghar chhodkar ghumna shuru kar diya.
    Punjab, Makka, Madina, Kabul, Sinhal, Kaamroop, Puri, Delhi, Kashmir,
    Kashi, Haridwar jaisi jagaho par jakar unhone logo ko updesh diye.
    Unka kahna tha ki Hindu-Muslim agal nahi hain aur sabko ek hi Bhagwan
    ne banaya hai. Unhone kaha, Ek Onkar (Ishwar ek hai), Satnaam (Uska
    Naam hi sach hai), Karta Purakh (Sabko banane wala), Akaal Moorat
    (Nirakaar), Nirbhao (Nirbhay), Nirvair (Kisi ka dushman nahin), Ajuni
    Saibhn (Janm-Maran se door) aur apni satta kayam rakhne wala hai. Aise
    Parmatma ko Guru Nanak Ji ne Akaal Purakh kaha, jiski sharan Guru ke
    bina sambhav nahin. Unke sahaj gyan ke saath log judte gaye. Unke
    shishya bante gaye. Guru Nanak se chali Sikh parampra me 9 aur Guru
    huye. Antim aur dasve dehdhari Guru Guru Gobind Singh Ji the. Unhone
    apne baad Guruo ki pavitra Vani ke Granth ko Guru ki Gaddi saumpi aur
    Sikho se kaha- Ab koi dehdhari Guru nahin hoga. Sabhi Sikho ko aadesh
    hai ki ve Guru Granth Sahib Ji ko hi Guru manenge. Tab se Sikh Dharm
    me pavitra Guru Granth Sahib Ji ko hi Guru mana gaya. Yah Dharm Vishav
    ka nauva bada Dharm aur Bharat ka panchwa sangthit Dharm bhi hai.
    Source: Raftaar Live


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  14. खुल के जियो

    Saturday, November 16, 2013

    एक तालाब के किनारे एक पेड़ के नीचे कोई मछ्वारा बैठा हुआ था, वो छाया के
    नीचे बैठे अपनी बीड़ी पी रहा था.

    तभी वहां से एक अमीर आदमी गुज़रा.

    उसने मछवारे से पूछा की वो पेड़ के नीचे बैठकर बीड़ी पीते हुए अपना time
    waste क्यों कर रहा हैं.

    इसके जवाब में मछवारे ने कहा की वो पर्याप्त मछलियाँ पकड़ चूका हैं. और
    अब आराम कर रहा हैं.

    अमीर आदमी ने ये सुनते ही बोहै चड़ा लीं. उसे बहुत गुस्सा आया. उसने कहा
    की : तुम आराम से बैठने के बजाय और मछलियाँ क्यों नहीं पकड़ लेते.

    मछवारे ने पूछा : मैं और मछलियाँ पकड़ के क्या करूँगा?

    अमीर आदमी : तुम ज्यादा मछलियाँ पकड़ कर, उन्हें बेचकर ज्यादा पैसे कमा
    पाओगे, और एक बड़ी बोट खरीद सकोगे.

    मछ्वारा : उसके बाद में क्या करूँगा?

    अमीर आदमी : तुम गहरे समुद्र में बोट ले जा सकोगे, फिर और भी ज्यादा
    मछलियाँ पकड़ सकोगे. फिर ज्यादा पैसे कमा पाओगे.

    मछ्वारा : और उसके बाद में क्या करूँगा?

    अमीर आदमी : तुम बहुत सारी Boats खरीद सकोगे और बहुत सारे लोगों को नौकरी
    दे पाओगे. फिर और भी ज्यादा पैसे कमाओगे.

    मछ्वारा : और उसके बाद में क्या करूँगा?

    अमीर आदमी : अरे तुम मेरी तरह एक बहुत अमीर आदमी बन जाओगे.

    मछ्वारा : अच्छा उससे क्या होगा?

    अमीर आदमी : फिर तुम अपनी जिंदगी शांति और ख़ुशी से कट पाओगे.

    मछ्वारा : क्या मैं अभी ये नहीं कर रहा हूँ? मैं तो अभी भी शांति से जी
    रहा हूँ. और खुश भी हूँ.

    Moral: आपको खुश रहने के लिए कल की राह देखने की आवश्यकता नहीं हैं. और
    ज्यादा अमीर बनने की भी नहीं, न ही अधिक शक्तिशाली बनने की. जिंदगी अभी
    हैं, इसे अभी जिए. अभी enjoy करें. और खुश रहे.

    Name: arun kumar

    Email: akarun198@gmail.com

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  15. जीवन में हमे वही मिलता है जो हम को दुसरो को देते है , चाहे वह तारीफ हो
    ,चाहे पैसा, चाहे मदद , चाहे बुराइ, चुगलखोरी
    तर्रकी, दुयाए , सब कुछ सटीक मात्रा में मिलता है, ये सृष्टि हर चीज वापस
    जरुर देती है अच्छी भावनाए देंगे तो आपके लिए भी अच्छी भावनाए मिलेगी -
    और ये सृष्टि हर किसी के साथ बिना भेदभाव के काम करती है
    1 अगर किसी ने आपकी मदद की है तो याद करे आपने भी कभी किसी की मदद की
    होगी और ऐसा होता रहेगा
    2 अगर आपकी किसी ने बुराई करी है तो आपने भी किसी न किसी की बुराइ जरुर की होगी !
    3 अगर आप किसी पे क्रोध करते है तो वो क्रोध भी किसी की तरफ से आपको जरुर
    वापस मिलेगा
    4 अगर प्रेम देते है तो वो भी वापस जरुर लोटेगा .

    ये आप पर निर्भर करता है की आप क्या पाना चाहते, जो जीवन में पाना चाहते
    है वही दुसरो को दे

    Name: Arun kumar
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  16. बचपन का विजन

    Thursday, November 14, 2013

    सचिन ने दसवींऔर बारहवींसाइंस से किया। उसके बाद ग्रेजुएशन आर्ट से की।
    कुछ समय तक सचिन ने छोटे-मोटे कॉम्पिटिशन की तैयारी भी की, लेकिन सफल
    नहींहुआ। अब सचिन सोच में पड गया कि कौन-सा करियर सेलेक्ट करे ? सचिन
    जैसे हजारों स्टूडेंट्स के सामने इस तरह की समस्याएं आती हैं कि वे क्या
    करें? जिन बच्चों को शुरुआत में प्रॉपर गाइडेंस नहींमिलती, वे आगे चलकर
    ज्यादा परेशान होते हैं। बचपन में करियर की राह चुनना बडा मुश्किल होता
    है। समय के साथ चीजें बदलती जाती हैं और रुझान भी, लेकिन जो बच्चे बचपन
    में ही अपना लक्ष्य डिसाइड कर लेते हैं, उनके सफल होने के चांसेज कहीं
    ज्यादा होते हैं। अपने करियर के सपने को साकार करने के लिए बस जरूरत है,
    बीच-बीच में मोटिवेशन की। अपने सपने को अपना जुनून बना लें, सक्सेस खुद ब
    खुद आपको मिल जाएगी।

    लक्ष्य डिसाइड करें

    करियर काउंसलर जतिन चावला के मुताबिक जितनी जल्दी हो सके, अपने लक्ष्य को
    डिसाइड कर लें। इससे आपको तैयारी करने में आसानी होगी। बेहतर होगा कि
    9वीं-10वीं क्लास से ही जिस फील्ड में जाना है, उसकी तैयारी शुरू कर दें।
    डॉक्टर, इंजीनियर, आर्मी, पुलिस, आइएएस, जिस भी फील्ड में आपका इंट्रेस्ट
    हो, सिर्फ उसी की तैयारी के बारे में सोचें। महसूस करें कि आप एक डॉक्टर
    हैं, आर्मी ऑफिसर हैं, पुलिस अधिकारी हैं। दूसरों के कहने पर अपना लक्ष्य
    चेंज न करें।

    कॉम्पिटिशन में हिस्सा लें

    आजकल कई तरह के कॉम्पिटिशन होते रहते हैं। उनमें हिस्सा लें। इससे आपको
    अपनी तैयारी और एजुकेशन लेवल का पता चलता रहेगा।

    गवर्नमेंट स्तर पर स्टूडेंट्स के लिए किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना,
    नेशनल टैलेंट सर्च एग्जामिनेशन, मैथ्स ओलंपियाड जैसे कॉम्पिटिशन होते
    रहते हैं, उनमें हिस्सा लें। इससे कॉम्पिटिशन की भावना पैदा होगी और अपनी
    एबिलिटी का भी पता चलेगा। कुछ प्राइवेट ऑर्गेनाइजेशन भी कॉम्पिटिशन कराते
    हैं, जिनमें हिस्सा लेकर अपनी नॉलेज चेक कर सकते हैं।

    बुक्स पढें

    जिस फील्ड में आपको जाना है, उससे रिलेटेड बुक्स पढें। न्यूजपेपर या
    मैग्जीन में, जहां कहींआपको आर्टिकल नजर आए, उसे जरूर पढें। टेलीविजन में
    आपकी फील्ड से रिलेटेड अगर कोई प्रोग्राम आता है, तो उसे जरूर देखें।
    इंटरनेट पर सर्च कर अपनी फील्ड के बारे में जानकारी हासिल करें।

    मोटिवेशनल वीडियो देखें

    काउंसलर जतिन चावला के अनुसार यू-ट्यूब पर बहुत से मोटिवेशनल वीडियो हैं,
    उन्हें जरूर देखें। इससे आपको आगे बढने का इंस्पीरेशन मिलेगा। जिस किसी
    को आप अपना आदर्श मानते हैं, उसके बारे में पढें कि कैसे उसने एक ऊंचा
    मुकाम हासिल किया है, किस तरह की चुनौतियों का सामना कर वह सक्सेस हुए,
    यह सब जानने की कोशिश करें।

    साइंटिफिक मेथड

    अपनी तैयारी को परखने के लिए आप सांइटिफिक मेथड को भी अपना सकते हैं।
    अपनी तैयारी को प्लान करें। वीकली टारगेट तय करें और उसे पूरा करने की
    कोशिश करें। ग्राफ बनाकर भी आप तैयारी कर सकते हैं। अपने टीचर से तैयारी
    के बारे में पूछें। पैरामीटर बनाकर अपनी रैंकिंग चेक करते रहें।
    न्यूमेरिकल फॉर्म में अपने टीचर से इनपुट लें। जैसे, किसी सब्जेक्ट में
    आपकी नॉलेज कितनी है, टीचर से जानें कि आप उस सब्जेक्ट में कितना स्कोर
    कर सकते हैं। हो सकता है कि आपके मा‌र्क्स उस सब्जेक्ट में ज्यादा आए
    हों, लेकिन आपको उतनी नॉलेज न हो। टीचर से यह जानने की कोशिश करें किकैसे
    आप और अच्छास्कोर कर सकते हैं।

    बेझिझक सवाल करें

    जहां कहींभी आपको किसी प्रकार का कंफ्यूजन हो, अपने टीचर से या अपने
    सीनियर्स से सवाल करें। सवाल करने में किसी प्रकार की झिझक महसूस न करें।
    इससे आपका कॉन्फिडेंस बढेगा और आप करियर को लेकर सही डिसीजन ले पाएंगे।

    वेबसाइट्स से हेल्प

    इंटरनेट पर आज सब कुछ मौजूद है। अगर प्रॉपर गाइडेंस न मिले, तो आप
    इंटरनेट की भी मदद ले सकते हैं। कुछ ऐसी वेबसाइट्स हैं, जिनकी मदद से आप
    अपनी तैयारी का आंकलन कर सकते हैं। कई ऑनलाइन साइट्स हैं, जिनसे मदद ली
    जा सकती है। इन वेबसाइट की मदद से आपको अपनी तैयारी और नॉलेज का सही से
    पता चल जाएगा।

    साइकोमेट्रिक टेस्ट

    साइकोमेट्रिक टेस्ट के जरिये भी आप अपना लक्ष्य तय कर सकते हैं। इसमें आप
    काउंसलर की मदद ले सकते हैं कि कौन सा करियर आपके लिए बेहतर होगा। इसके
    अलावा कुछ वेबसाइट्स भी हैं, जिनकी मदद आप ले सकते हैं:

    -www.mindtools.com

    -www.mapmytalent.in

    -www.jagranjosh.com

    -www.careergym.com

    अपनी पसंद न थोपें

    थ्री इडियट्स के फरहान कुरैशी को तो आप सभी जानते होंगे, जिसका इंट्रेस्ट
    फोटोग्राफी में था, लेकिन उसके पिता उसका एडमिशन इंजीनियरिंग कॉलेज में
    करा देते हैं, जहां वह बडी मुश्किल से पास हो पाता है। फरहान जैसे हजारों
    पैरेंट्स अपनी पसंद बच्चों पर थोप देते हैं। वह क्या चाहते हैं, किस
    फील्ड में उनका रुझान है, यह जानने की कोशिश ही नहींकरते और अपनी पसंद की
    फील्ड में जबरन उनका दाखिला करा देते हैं। ऐसे में बच्चे का मन कभी उस
    फील्ड में नहींलगता। वह बडी मुश्किल से आगे बढता है। इस बीच वह बेहतर
    करने के लिए पैरेंट्स का दबाव भी झेलता है। नतीजा यह होता है कि बच्चा
    लाइफ में सक्सेस नहीं हो पाता और पैरेंट्स को लगता है कि बच्चे ने ठीक से
    मेहनत नहींकी, इसलिए वह सक्सेस नहीं हो पाया। पैरेंट्स इस बात के लिए
    हमेशा बच्चे को ताना कसते हैं या उस पर दबाव बनाते रहते हैं कि अपनी
    लापरवाही की वजह से वह आज आगे नहीं बढ पाया। ऐसी स्थिति में बच्चा परेशान
    हो जाता है और उसे कोई रास्ता समझ में नहींआता।

    बचपन में पहचानें हुनर

    करियर बनाने में पैरेंट्स का रोल बहुत अहम होता है। पैरेंट्ेस के सही
    मार्गदर्शन में ही बच्चे अपना भविष्य तय करते हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी
    है कि पैरेंट्स बच्चे के हुनर को पहचानने की कोशिश?करें। हर बच्चे में एक
    यूनीक क्वॉलिटी होती है। स्कूल समय से ही बच्चे अक्सर अपनी दिलचस्पी
    जाहिर कर देते हैं, लेकिन पैरेंट्स इसे पहचान नहीं पाते। वह समझ ही नहीं
    पाते हैं कि आखिर बच्चा क्या चाहता है, उसका किस फील्ड में इंट्रेस्ट है।
    पैरेंट्स को चाहिए कि वह बच्चे के छोटे से छोटे इंट्रेस्ट का ध्यान रखें,
    साथ ही समझने की कोशिश करें कि बच्चे का रुझान किस तरफ है।

    काउंसलर की मदद

    10वीं-12वीं में करियर डिसाइड करना बडा मुश्किल होता है। समझ में नहीं
    आता है कि कौन सी फील्ड में जाना बेहतर होगा। ऐसी सिचुएशन में कई बार हम
    गलत फील्ड का चुनाव कर लेते हैं, जिसके कारण बाद में हमें पछताना पडता
    है। करियर को लेकर जब भी कंफ्यूजन हो, आप बिना देर किए करियर काउंसलर की
    मदद लें। करियर काउंसलर आपकी नॉलेज का आकलन करते हुए आपको सही सलाह देगा
    और आप बेहतर करियर बना सकेंगे।

    बडी हस्तियों से लें मोटिवेशन

    दुनिया की लगभग हर महान हस्ती की ऑटोबॉयोग्राफी लिखी गई हैं। ये
    ऑटोबॉयोग्राफीज आपके लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन सकते हैं। साथ ही आपके
    आसपास जो लोग सक्सेस हुए हैं, उनसे मोटिवेशन लें। उनकी सक्सेस के बारे
    में जानने की कोशिश करें। उन्होंने कैसे प्लानिंग कर तैयारी की, इस बारे
    में उनसे बात करें। आप जिस फील्ड में जाना चाहते हैं, उस फील्ड के लोगों
    से मिलें। उन्होंने किस तरह अपनी मंजिल तय की, क्या स्ट्रैटेजी बनाकर
    सक्सेस हासिल की। यह सब जानने के बाद आप अपनी तैयारी की एनालिसिस करें।
    क्या आपने भी उन्हीं की तरह प्लानिंग की है। अगर नहींकी है, तो अपनी
    प्लानिंग में थोडा चेंज लाएं और तैयारी में जुट जाएं।

    ईमानदारी से करें मेहनत

    ईमानदारी से किया हर काम सफल जरूर होता है। करियर में भी यही बात लागू
    होती है। जो लोग ईमानदारी से अपने लक्ष्य का पीछा करते हैं, वे सफल जरूर
    होते हैं। करियर काउंसलर जतिन चावला कहते हैं कि जो स्टूडेंट्स ईमानदारी
    से मेहनत करते हैं, उन्हें सफलता जरूर मिलती है। कई बार स्टूडेंट्स उतनी
    मेहनत नहींकरते, फिर भी सफलता की उम्मीद करते हैं। सफल होने के लिए अपने
    प्रति ईमानदार रहने की जरूरत है। आप दूसरों को तो धोखा दे सकते हैं,
    लेकिन खुद को नहीं। यह बात हमेशा याद रखें।

    समय का सही इस्तेमाल

    आमतौर पर खाली समय में हम फालतू के काम में लग जाते हैं। खाली समय में भी
    कुछ ऐसा करने की कोशिश करें, जिससे आपका मनोरंजन भी हो और वह आपके करियर
    के लिए फायदेमंद भी हो।

    खाकी वर्दी का विजन

    आइपीएस बनने का सपना

    आइपीएस प्रभाकर चौधरी बताते हैं किजब वे सातवीं क्लास में थे तभी से उनके
    मन में धीरे-धीरे ये बात गहराई से बैठने लगी थी कि आइपीएस बनना है। मेरे
    पिताजी मेरे लिए अखबार और कॉम्पिटिटिव मैग्जीन्स लाया करते थे। इनमें छपे
    इंटरव्यू पढकर धीरे-धीरे मेरे मन में भी आइएएस बनने का सपना जन्म लेने
    लगा।

    पुलिस अफसर बनने का जज्बा

    मैं जब पुलिस वालों की खाकी वर्दी देखता था, तो मन करता था कि काश मैं भी
    ऐसा ही बन पाता। सपना लगता था, लेकिन धीरे-धीरे कॉन्फिडेंस आता गया और
    रास्ता बनता गया।

    मेहनत का कोई विकल्प नहीं

    मंजिल दिख रही थी। पत्र-पत्रिकाएं पढने से धुंधला-सा रास्ता भी दिखने
    लगा। इसलिए मैंने हाईस्कूल से ही ईमानदारी और पूरी मेहनत से पढाई करनी
    शुरू कर दी। आइपीएस बनने के लिए बस यही रास्ता समझ आया कि खूब पढाई करो।

    इलाहाबाद में मिला माहौल

    2001 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बीएससी करने के दौरान आइएएस फैक्ट्री
    कहे जाने वाले ए.एन. झा हॉस्टल में रहने से काफी फायदा मिला। गाइडेंस के
    लिए कहीं और नहीं जाना पडा। सलेक्टेड स्टूडेंट्स के बीच रहकर मेरी
    प्रेरणा को और बल मिला कि आइपीएस बनना चाहिए।

    इंडिपेंडेंट डिसीजन जरूरी

    प्रभाकर कहते हैं कि उनकी यही कोशिश होती है इंडिपेंडेंट डिसीजन लें। भले
    ही कुछ गलत हो जाए, लेकिन डिसीजन उनका अपना हो। इंडिपेंडेंट डिसीजन को वह
    सक्सेस का की-प्वाइंट मानते हैं।

    कुछ कर गुजरने का जज्बा

    प्रभाकर कुछ ऐसा करना चाहते हैं कि सबसे निचले स्तर का पुलिस कर्मचारी भी
    गर्व से कहे कि वह पुलिस में काम करता है, देश की जनता की सुरक्षा के लिए
    काम करता है और देश की जनता को भी पुलिस पर गर्व हो।

    प्लान योर ड्रीम अर्ली

    9वीं-10वीं क्लास करियर डिसाइड करने के लिए अहम होती है। बहुत से
    स्टूडेंट्स 9वीं-10वीं क्लास में ही अपना लक्ष्य तय कर लेते हैं और
    प्रॉपर तैयारी के साथ आगे बढते जाते हैं। स्टूडेंट्स का एक फेवरेट करियर
    है सिविल सर्विसेज। बहुत से स्टूडेंट्स बचपन से ही सिविल सर्वेट बनने का
    सपना देखते हैं और आगे चलकर सफल भी होते हैं। आइएएस कुमार प्रशांत ने भी
    प्रॉपर प्लानिंग के साथ तैयारी की और सफल भी हुए। सिविल सर्विसेज एग्जाम
    में कुमार प्रशांत ने 26वीं रैंक हासिल की। इस समय प्रशांत उत्तर प्रदेश
    के जिला अंबेडकर नगर में पोस्टेड हैं।

    एक्सपीरियंस का शौक

    प्रशांत कुछ अलग हटकर करना चाहते थे। उन्हें डिफरेंट फील्ड में काम करना
    पसंद है। आईआईटी कानपुर से बीटेक करने के बाद जितनी डायवर्सिटी उन्हें
    सिविल सर्विसेज में नजर आई उतना किसी और फील्ड में नहीं। प्रशांत कहते
    हैं कि एक सिविल सवर्ेंट पूरी सर्विस लाइफ में अलग-अलग एक्सपीरियंस हासिल
    करता है। एक कस्बे में काम करने से लेकर उसे देश के शीर्ष पद पर काम करने
    का मौका मिलता है।

    न्यूज पेपर और मैग्जीन

    प्रशांत ने न्यूज पेपर और मैग्जीन को पढाई का हिस्सा माना। न्यूज पेपर के
    एडिटोरियल पार्ट से उन्हें काफी कुछ सीखने को मिला। करेंट अफेयर्स से
    रिलेटेड मैग्जीन भी तैयारी में काफी हेल्पफुल साबित हुर्इं। कुछ साल
    पुराने पेपर्स से भी प्रशांत को काफी मदद मिली।

    डिस्कशन

    तैयारी के दौरान अक्सर मैं दोस्तों के साथ ग्रुप डिस्कशन किया करता था।
    अलग-अलग टॉपिक्स पर हम सभी आपस में बात करते थे। बहुत सी नई-नई जानकारी
    सामने आती थीं।

    मॉक इंटरव्यू

    मॉक इंटरव्यू से मुझे काफी मदद मिली। इंटरव्यू में कैसे-कैसे सवाल किए
    जाते हैं, इसकी प्रैक्टिस किया करते थे। हम चार दोस्त थे तीन लोग
    इंटरव्यू पैनल में शामिल हो जाते थे और एक इंटरव्यू देता था। इस प्रॉसेस
    को हमने बहुत बार किया। जब फाइनल इंटरव्यू के लिए हम लोग गए, तो सभी
    सेलेक्ट हो गए। प्रशांत ने सकेंड अटेंप्ट में एग्जाम क्वालिफाई किया।
    अपने जूनियर्स को भी प्रशांत यही सलाह देते हैं कि प्रॉपर प्लानिंग के
    साथ तैयारी करें। अच्छी बुक्स और मैग्जीन पढें, अपने सीनियर्स से गाइडेंस
    लें।

    बचपन में देखा डॉक्टर का सपना

    अपाला के मम्मी-पापा दोनों ही डॉक्टर हैं। इसलिए वह बचपन से ही हॉस्पिटल,
    डॉक्टर और इससे जुडी दूसरी चीजों से अच्छी तरह अवेयर थीं। नेचुरली उन्हें
    इस पेशे से लगाव हो गया। दसवीं क्लास तक जाते-जाते तो अपाला ने करियर में
    अपना गोल पूरी तरह फिक्स कर लिया कि उन्हें डॉक्टर ही बनना है।

    10वीं में शुरू की तैयारी

    अपाला ने दसवीं तक हिसार में पढाई की। फिर दिल्ली के आर.के. पुरम में
    डीपीएस से 10+2 किया। 10+2 के दौरान ही अपाला ने एमबीबीएस की तैयारी के
    लिए कोचिंग ज्वाइन कर ली। फ‌र्स्ट अटेम्प्ट में कामयाबी नहीं मिल पाई,
    लेकिन अपाला ने हार नहीं मानी। एक साल तक तैयारी करती रहीं। इसका उन्हें
    पॉजिटिव रिजल्ट मिला।

    इंटरैक्टिव प्रोफेशन

    डॉ. अपाला बताती हैं कि डॉक्टर का प्रोफेशन एक नोबल प्रोफेशन है। ये ऐसा
    प्रोफेशन है जिसमें बहुत सा सोशल वर्क कर सकते हैं और इनकम भी ठीक-ठाक
    है। अपाला साइकायट्री चुनने की वजह बताती हैं इसका इंटरैक्टिव नेचर। डॉ.
    अपाला को बचपन से लोगों से बात करना और उनकी प्रॉब्लम्स सुनना अच्छा लगता
    है। इनका मानना है कि टॉकेटिव लोगों के लिए ये प्रोफेशन बहुत अच्छा है।
    आपको बहुत अच्छे से सुनना होता है। मतलब दवाओं से ज्यादा सुनने और बताने
    से ट्रीटमेंट होती है।

    चैलेंजिंग है डॉक्टर की जॉब

    डॉ. अपाला के मुताबिक उन्हीं लोगों को डॉक्टर बनना चाहिए, जो चैलेंज ले
    सकें। आप 30-35 साल के हो जाएंगे, तब भी पढते रहेंगे। हर दो-तीन साल बाद
    आपको एग्जाम देना पडता है। इसलिए बहुत मेहनत करनी पडती है। ये फील्ड केवल
    उन लोगों के लिए है, जो पढना चाहते हैं, हार्डवर्क करना चाहते हैं। जिन
    लोगों को काम करने से डर नहीं लगता, जिन लोगों को इन चीजों में अच्छा
    लगता है, उन्हें इस फील्ड में जरूर आना चाहिए।

    लॉ में चैलेंज और रेस्पेक्ट

    ईशा जे कुमार के पैरेंट्स डॉक्टर हैं और जैसा कि इंडियन फैमिलीज में
    ट्रेडिशन रहा है, एक डॉक्टर अपने बच्चे को भी वही बनाना चाहता है, लेकिन
    ईशा के कुछ और ड्रीम्स थे। उन्हें लॉयर का प्रोफेशन अट्रैक्ट करता था,
    इसीलिए दसवीं में ही सोच लिया कि हायर सेकंडरी के बाद सीधे लॉ कोर्स में
    एडमिशन लेंगी। आज वे दिल्ली की एक लॉ फर्म में काम कर रही हैं।

    एंट्रेंस की तैयारी

    ईशा ने बताया कि प्लस टू के बाद उनके पास दो ऑप्शन थे। वे या तो तीन साल
    का एलएलबी कोर्स करतीं या पांच साल का इंटीग्रेटेड लॉ कोर्स। उन्होंने
    पांच साल के कोर्स को चुना, जिसके लिए कंबाइंड लॉ एडमिशन टेस्ट क्लियर
    करना होता है। ईशा कहती हैं, मैंने इस एंट्रेस टेस्ट के लिए एक महीने की
    कोचिंग की। इसके लिए इंग्लिश, जनरल स्टडीज, मैथ्स, लीगल एप्टीट्यूड के
    साथ-साथ लॉजिकल रीजनिंग जैसे सब्जेक्ट्स की अच्छे से प्रिपरेशन की। टेस्ट
    क्लियर करने के बाद लॉ स्कूल में एडमिशन लिया और 2010 में एक लॉ ग्रेजुएट
    बनकर दिखाया।

    राइट करियर च्वाइस

    जैसा कि सभी जानते हैं कि एक लॉयर के पास ढेर सारा पेशेंस, कम्युनिकेशन
    और लॉजिकल स्किल होना चाहिए, साथ ही इसमें खूब सारा हार्डवर्क चाहिए होता
    है। तभी एक स्टूडेंट अपने प्रोफेशन में सक्सेसफुल हो सकता है। ईशा ने
    बताया कि उन्हें डिस्कशन करना अच्छा लगता था। वे अपने पैरेंट्स और
    फ्रेंड्स के साथ अक्सर किसी न किसी टॉपिक पर बहस कर लेती थीं। इस तरह जब
    उन्होंने घर में अपना डिसीजन बताया, तो किसी ने विरोध नहीं किया, बल्कि
    पूरा सपोर्ट दिया।

    डिफरेंट एक्सपीरियंस

    ईशा ने बताया कि कोर्स कंप्लीट करने के बाद उन्होंने हाईकोर्ट और सुप्रीम
    कोर्ट के जज के अंडर में ज्यूडिशियल क्लर्कशिप की, जो एक बिल्कुल अलग तरह
    का एक्सपीरियंस था। कॉलेज में तो काफी थ्योरिटिकल पढाई की थी, लेकिन यहां
    प्रैक्टिकल लर्निंग का मौका मिल रहा था। वे कहती हैं कि लॉ फील्ड में आने
    के बाद सभी फ्रेशर्स को किसी एडवोकेट या जज को असिस्ट करना होता है। इसके
    बाद चाहे तो वह कोर्ट में, लीगल फर्म, बैंक,कॉरपोरेट हाउस या इंडिपेंडेंट
    काम कर सकते हैं। ईशा की मानें, तो बेशक नए सेक्टर्स में जॉब ओपनिंग हो
    रही है, लेकिन लॉ फील्ड में रेस्पेक्ट के साथ चैलेंज और फाइनेंशियल
    स्टैबिलिटी दोनों है। गवर्नमेंट जॉब में सैलरी थोडी कम हो सकती है, लेकिन
    प्राइवेट सेक्टर में काफी अच्छा पे-पैकेज मिलने लगा है।

    पायलट बनने का विजन

    दसवींमें बोर्ड एग्जाम का इतना प्रेशर होता है कि ज्यादातर स्टूडेंट्स के
    पास टाइम ही नहींहोता है कि वे तय कर पाएं कि उन्हें आगे क्या करना है।
    लेकिन मुंबई की आयशा अजीज के साथ ऐसा नहींथा। जब ये आठवींक्लास में थीं,
    तो अक्सर मुंबई से कश्मीर जाना होता था। आसमान में प्लेन को उडते देखकर
    उनके मन में एक ही ख्याल आता था कि बडे होकर पायलट बनना है और अपने बुलंद
    हौसले से उन्होंने ये कर दिखाया।

    फोकस के साथ तैयारी

    आयशा कहती हैं, मैंने बहुत कम एज में डिसाइड कर लिया था कि क्या करना है।
    इसलिए फोकस होकर उसकी तैयारी की। इनकी मानें तो स्कूल की पढाई करते हुए
    पायलट बनना कतई ईजी नहींथा, लेकिन टाइम मैनेजमेंट और स्ट्रॉन्ग विल पॉवर
    के जरिए आयशा ने स्कूल के साथ-साथ बॉम्बे फ्लाइंग क्लब में एडमिशन ले
    लिया। आयशा ने बताया कि उन्होंने मैथ्स और फिजिक्स के अलावा एविएशन से
    रिलेटेड सब्जेक्ट्स पर काफी ध्यान दिया, जैसे नैविगेशन और टेक्नोलॉजिकल
    स्किल्स। उनके अनुसार, बॉम्बे फ्लाइंग क्लब में करीब 4 महीने की ट्रेनिंग
    काफी फायदेमंद रही। वे स्कूल के बाद हफ्ते में दो दिन फ्लाइंग क्लब में
    ट्रेनिंग के लिए जाती थीं, जिसस उन्हें स्टूडेंट पायलट लाइसेंस का एग्जाम
    क्लियर करने में आसानी हुई। दसवींक्लास में ही आयशा ने स्टूडेंट पायलट
    लाइसेंस हासिल कर लिया था।

    एविएशन में करियर

    आयशा के अनुसार, उनके पिता एक इंडस्ट्रियलिस्ट हैं, इस वजह से करियर चूज
    करना ज्यादा मुश्किल नहींरहा। आम पैरेंट्स की तरह फैमिली ने कभी ये
    नहींकहा कि एविएशन एक रिस्की फील्ड हो सकता है, खासकर पायलट के नजरिए से।
    इसी वजह से वे बॉम्बे फ्लाइंग क्लब से एविएशन में बीएससी कर रही हैं। साथ
    ही कमर्शियल पायलट लाइसेंस के एग्जाम की तैयारी।

    सेल्फ स्टडी कर बनी सीए

    आज के टफ कॉम्पिटिटिव दौर में अगर स्टूडेंट दसवीं या बोर्ड के समय ही
    प्लान कर ले कि उसे क्या करना है, किस सेक्टर में करियर बनाना है, तो वह
    अपने फील्ड में अच्छे से ग्रो कर सकता है। कारगिल इंडिया में असिस्टेंट
    मैनेजर (कंप्लायंस ऐंड रिपोर्टिंग) के पद पर काम कर रही शिखा मस्करा ने
    कुछ ऐसा ही किया था। शिखा चार्टर्ड अकाउंटेंसी के फील्ड में करियर बनाना
    चाहती थीं, इसलिए बोर्ड एग्जाम्स के बाद ही डिसाइड कर लिया कि वे कॉमर्स
    स्ट्रीम से प्लस टू करेंगी। इस तरह अपने टारगेट पर फोकस करते हुए वे आगे
    बढीं और आज अपने काम से सैटिस्फाइड हैं।

    अकाउंटिंग पर दिया ध्यान

    शिखा के मुताबिक, उन्होंने चार्टर्ड अकाउंटेंसी की तैयारी के लिए किसी
    कोचिंग इंस्टीट्यूट की मदद नहीं ली, बल्कि सेल्फ स्टडी की। हायर सेकंडरी
    के बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट में एडमिशन लिया। वे
    कहती हैं, इंस्टीट्यूट से मिलने वाला स्टडी मैटेरियल तैयारी के लिए काफी
    था। मैंने अकाउंटिंग अपडेट्स, टैक्सेशन अपडेट्स और दूसरे रिलेटेड चेंजेज
    को अच्छी तरह स्टडी किया। इससे कोर्स कंप्लीट करने में ज्यादा मुश्किल
    नहीं आई। इसके बाद उन्होंने तीनों लेवल, सीपीटी, पीसीसी और आर्टिकलशिप
    पूरा कर लिया। आर्टिकलशिप के दौरान शिखा ने एक रेप्यूटेड सीए फर्म के साथ
    तीन साल की ट्रेनिंग ली, जो कोर्स का सबसे इंपॉटर्ेंट हिस्सा माना जाता
    है। शिखा की स्टूडेंट्स को एडवाइस है कि अगर वे इस फील्ड में आना चाहते
    हैं, तो हायर सेकंडरी में कॉमर्स के अलावा पीसीएम यानी मैथ्स स्ट्रीम भी
    सेलेक्ट कर सकते हैं। हां, इसमें 50 परसेंट मा‌र्क्स लाना जरूरी है।

    समय से तैयारी

    शिखा ने बताया कि स्कूल में अकाउंटिंग से ज्यादा वास्ता नहीं पडा था,
    लेकिन प्लस टू में इसके बेसिक्स को स्ट्रॉन्ग करने का मौका मिला। इसलिए
    जो स्टूडेंट चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना चाहते हैं, उनके लिए जरूरी है कि वे
    हायर सेकंडरी में मैथ्स के साथ-साथ अकाउंटिंग और क्वॉन्टिटेटिव
    एप्टीट्यूड पर पूरा फोकस करें।

    कम इनवेस्टमेंट, फायदे ज्यादा

    आज की जेनरेशन एमबीए करने को लेकर काफी एक्साइटेड रहती है, लेकिन अगर
    अच्छे इंस्टीट्यूट से एमबीए न किया हो, तो अच्छी जॉब मिलना मुश्किल होता
    है। शिखा की मानें, तो चार्टर्ड अकाउंटेंसी की फील्ड में ऐसा नहीं है।
    यहां कम इनवेस्टमेंट में एक स्टूडेंट को ज्यादा मिलता है। चार्टर्ड
    अकाउंटेंट के लिए फाइनेंस, बिजनेस, बैंक्स, लीगल फ‌र्म्स, ऑडिटिंग
    फ‌र्म्स और सेल्स में काफी ऑप्शंस हैं।

    नेहरू योजनाओं से बनाएं फ्यूचर

    नेहरू युवा केंद्र

    यूथ को नेशन मेकिंग प्रोग्राम में पार्टिसिपेट कराने और उनकी पर्सनैलिटी
    डेवलपमेंट के लिए एक बेहतर माहौल मुहैया कराने के मकसद से नेहरू युवा
    केंद्र की स्थापना की गई थी। नेहरू युवा केंद्र विश्व में अपनी तरह का
    सबसे बडा वॉलंटियर ऑर्गनाइजेशन है। आज देश के हर कोने में नेहरू युवा
    केंद्र के ऑफिस और ब्रांचेज हैं, जहां पर युवाओं के डेवलपमेंट से जुडी
    एक्टीविटीज पर फोकस किया जाता है। नेहरू युवा केंद्र में युवाओं में ऐसी
    स्किल्स एवं वैल्यूज को डेवलप करना है जिससे कि वे मॉडर्न, सेक्युलर और
    डेवलप नेशन का निर्माण कर सकें। नेहरू युवा केंद्र में युवाओं के लिए
    तरह-तरह के मोटिवेशनल प्रोग्राम चलाए जाते हैं। इन प्रोग्राम्स के जरिए
    ग्रामीण युवाओं की पर्सनैलिटी डेवलप होती है, जो युवा नेहरू युवा केंद्र
    का हिस्सा बनना चाहते हैं, वे अपने क्षेत्र के डिस्ट्रिक कोऑर्डिनेटर से
    सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

    एलिजिबिलिटी

    नेहरू युवा केंद्र का हिस्सा बनने के लिए कैंडिडेट के पास ग्रेजुएशन की
    डिग्री और सामाजिक क्षेत्र में काम करने का अनुभव होना चाहिए। 18 से 35
    वर्ष के युवा नेहरू युवा केंद्र का हिस्सा बन सकते हैं।

    ब्रांचेज

    देशभर में नेहरू युवा केंद्र के लगभग 623 ऑफिसेज हैं। इसके अलावा अधिकांश
    ग्रामीण इलाकों में नेहरू युवा मंडल और महिला मंडल की शाखाएं हैं। इन
    शाखाओं में युवाओं के लिए सांस्कृतिक और खेलकूद के कार्यक्रमों का आयोजन
    किया जाता है। युवाओं के विकास के लिए युवा और खेल मंत्रालय द्वारा नेहरू
    युवा केंद्र को हर साल करोडों रुपये दिए जाते हैं।

    अवॉर्ड

    केंद्र के अंतर्गत अच्छे काम और प्रदर्शन के लिए युवाओं को सम्मानित भी
    किया जाता है। युवाओं को बेस्ट यूथ अवॉर्ड, स्टेट यूथ अवॉर्ड और नेशनल
    यूथ अवॉड से सम्मानित किया जाता है। इसके अलावा यूथ को जिला स्तर पर
    आयोजित प्रोग्राम में भी सम्मानित किया जाता है।

    स्कॉलरशिप्स फॉर टैलेंट

    जवाहरलाल नेहरु मेमोरियल फंड फेलोशिप

    पंडित जवाहरलाल नेहरूह्यूमन हिस्ट्री के कुछ? उन गिने-चुने लोगों में
    शामिल हैं, जिन्होंने देश के साथ-साथ एक पूरी जेनरेशन को भी बदलने का काम
    किया। वे ऐसे युवाओं को आगे लाना चाहते थे जो अपनी नॉलेज और लीडरशिप
    क्वॉलिटी से देश के विकास में हर संभव मदद करें। उनके इस सपने को पूरा
    करने के लिए साल 1968 में यह फंड बनाया गया। इसका उद्देश्य युवाओं के
    टैलेंट को आर्थिक सहयोग देकर इंटरनेशनल लेवल पर सामने लाना है।

    सब्जेक्ट्स

    यह फेलोशिप किसी एक डिसिप्लिन के स्टूडेंट्स के लिए नहीं है। इसका
    बेनिफिट सभी सब्जेक्ट्स के लोग उठा सकते हैं। राइटर्स, जर्नलिस्ट,
    आर्टिस्ट्स, सिविल इंजीनियर्स आदि के लिए भी यह फेलोशिप है।

    सेलेक्शन

    इस फेलोशिप के लिए लोगों का चयन सेलेक्शन कमेटी करती है। कमेटी का यह
    प्रयास रहता है कि इसके लिए जिसे सेलेक्ट किया जाएं, वह उच्च शैक्षिक
    मानकों पर खरा उतरें, साथ ही अपने काम से वह देश और सोसायटी दोनों को लाभ
    पहुंचाएं।

    ग्रांट

    यह फेलोशिप दो साल के लिए दी जाती है। इसमें मंथ में एक लाख रुपये वजीफे
    के तौर पर दिए जाते हैं। इस फेलोशिप के बारे में डिटेल पता करने के लिए
    जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड की वेबसाइट को देख सकते हैं।

    वेबसाइट www.jnmf.in

    फुलब्राइट नेहरू डॉक्टोरल रिसर्च फेलोशिप

    इस फेलोशिप के लिए वे इंडियन स्टूडेंट अप्लाई कर सकते हैं, जो कि पहले से
    ही किसी इंडियन यूनिवर्सिटी में पीएचडी के लिए रजिस्टर्ड हैं। इस फेलोशिप
    के अंतर्गत चुने गए स्टूडेंट्स यूएस की यूनिवर्सिटीज में प्रोफेशनल
    एक्सपीरियंस ले सकते हैं।

    सब्जेक्ट्स

    एग्रीकल्चर साइंस, एजुकेशन, इकोनॉमिक्स, सस्टेनेबल डेवलपमेंट ऐंड
    क्लाइमेट चेंज, एनर्जी, एनवॉयरनमेंट, इंटरनेशनल रिलेशन, मैनेजमेंट ऐंड
    लीडरशिप डेवलपमेंट, मीडिया ऐंड कम्युनिकेशन, साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी,
    पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, सोसायटी ऐंड कल्चर, रिलीजन, फिल्म स्टडी आदि के
    लिए है।

    एलिजिबिलिटी

    एप्लीकेशन भेजने के कम से कम एक साल पहले से ही कैंडिडेट किसी अच्छे
    इंडियन इंस्टीट्यूट में रजिस्टर्ड हो चुका हो।

    पीरियड

    यह रिसर्च फेलोशिप 9 महीने के लिए है। इसमें कैंडिडेट यूएस के किसी टॉप
    इंस्टीट्यूट से बेनिफिट उठा सकते हैं। सेलेक्शन का फाइनल डिसीजन पूरी तरह
    से ऑर्गेनाइजेशन के पास है।

    ग्रांट

    इस फेलोशिप के लिए सेलेक्ट किए गए कैंडिडेट को मंथली स्कॉलरशिप, राउंड
    ट्रिप इकोनॉमी क्लास एयर टै्रवल अलाउंस, एक्सीडेंट ऐंड सिकनेस कवर आदि कई
    तरह के दूसरे बेनिफिट भी दिए जाते हैं।

    वेबसाइट www.usief.org.in

    फुलब्राइट नेहरु मास्टर्स फेलोशिप

    इस फेलोशिप के लिए सेलेक्ट किए गए कैंडिडेट्स को यूएस के चुने हुए
    इंस्टीट्यूट और यूनिवर्सिटीज में मास्टर डिग्री प्रोग्राम कराया जाता है।
    इस फेलोशिप का उद्देश्य युनाइटेड स्टेट्स के इंस्टीट्यूट्स में इंडियन
    स्टूडेंट्स की संख्या में इजाफा करना भी है। इस फेलोशिप का मोटिव लीडरशिप
    क्वॉलिटी डेवलप करने के साथ सोसायटी में चेंज लाकर समाज के विकास में
    बाधा बन रही बुराइयों को दूर करने की कोशिश करना है।

    सब्जेक्ट्स

    इसमें इन सब्जेक्ट्स को शामिल किया गया है : आर्ट ऐंड कल्चर मैनेजमेंट
    जिसमें हेरिटेज कंजर्वेशन ऐंड म्यूजियम स्टडीज शामिल है, एनवॉयरनमेंटल
    साइंस/स्टडीज, हायर एजुकेशन एडमिनिस्ट्रेशन, पब्लिक हेल्थ, अर्बन ऐंड
    रीजनल प्लानिंग, वूमन स्टडीज/जेंडर स्टडी हैं।

    एलिजिबिलिटी

    यूएस की बैचलर डिग्री के बराबर की बैचलर क्वॉलिफिकेशन किसी भी
    रिकग्नॉइज्ड इंडियन यूनिवर्सिटी से मिनिमम 55 परसेंट मा‌र्क्स के साथ।
    कैंडिडेट के पास कम से कम 3 साल का अपनी फील्ड में फुल टाइम प्रोफेशनल
    वर्क का एक्सपीरियंस हो। उसके पास यूएस की कोई और डिग्री न हो और वह यूएस
    के किसी डिग्री प्रोग्राम में इनरोल्ड भी न हो।

    ग्रांट बेनिफिट

    सेलेक्ट किए गए कैंडिडेट्स को जे-1 वीजा के साथ आने-जाने का इकोनॉमी
    क्लास एयर ट्रैवल कनवेंस मिलता है। साथ ही ट्यूशन फीस, लिविंग एक्सपेंसेज
    आदि भी मिलते हैं।

    वेबसाइट

    www.usief.org.in

    स्कीम फॉर सेल्फ एंप्लॉयमेंट

    शहर में रहते हैं, लेकिन जॉब नहीं है। फैमिली की फाइनेंशियल कंडीशन भी
    ऐसी नहीं है कि अपना कुछ काम शुरू कर सकें, तो नेहरू रोजगार योजना यानी
    स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना का फायदा उठा सकते हैं। ये स्कीम गरीबी
    रेखा से नीचे की फैमिलीज के युवाओं की सहूलियत के लिए बनाई गई है। स्कीम
    की 75 परसेंट फंडिंग केंद्र सरकार, जबकि 25 परसेंट फंडिंग राज्य सरकार
    करती है। स्पेशल दर्जा पाए राज्यों के लिए कुछ अलग स्टैंडर्ड होता है,
    लेकिन इससे शहरों में एंप्लॉयमेंट जेनरेशन में काफी मदद मिली है। इसके
    तहत सरकार स्किल डेवलपमेंट से लेकर रोजगार शुरू करने के लिए जरूरी लोन
    अवेलेबल कराती है। यह काम अर्बन लोकल बॉडीज और कम्युनिटी स्टक्चर्स के
    जरिए किया जाता है। पूरी स्कीम को पांच अलग-अलग एरियाज में बांटा गया है,
    जिसमें अहम फोकस एंप्लॉयमेंट जेनरेशन पर है।

    फोकस ऑन एंप्लॉयमेंट

    स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के अर्बन वेज एंप्लॉयमेंट प्रोग्राम के
    तहत अर्बन लोकल बॉडीज 50 हजार से ज्यादा आबादी वाले शहरों में सेवा या
    सुविधा केंद्रों के जरिए जरूरी लॉजिस्टिक और स्पेस प्रोवाइड कराती है। जो
    लोग बिजनेस करना चाहते हैं, उन्हें दुकान या कियोस्क खोलने के लिए लीज पर
    जगह दी जाती है, चाहें तो अपने घर से ही बिजनेस शुरू कर सकते हैं।
    ट्रांसपोर्ट सेक्टर में काम करना चाहते हैं, तो ऑटो रिक्शा भी क्रेडिट पर
    दिए जाते हैं। इसके अलावा जिन लोगों के पास कुछ न कुछ स्किल है, लेकिन
    काम नहीं है, वे इन सेवा सेंटर्स पर रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। जब भी
    कहीं से डिमांड आएगी, तो रजिस्टर्ड लोगों को ही नौकरी में प्रॉयरिटी दी
    जाएगी।

    जरूरी क्वॉलिफिकेशन

    इस स्कीम का फायदा उठाने के लिए किसी खास एजुकेशनल क्वॉलिफिकेशन की जरूरत
    नहीं होती है। हां, आप जो रोजगार करना चाहते हैं, उसमें स्कोप और आपके
    स्किल्स को देखते हुए सरकार अर्बन सेल्फ एंप्लॉयमेंट प्रोग्राम जैसी
    स्कीम्स के तहत लोन और सब्सिडी देती है। योजना के तहत दो लाख रुपये का
    लोन मिल सकता है। इसके अलावा किसी प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए 50 हजार
    रुपये तक की सब्सिडी भी दी जाती है।

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  17. हेल्लो दोस्तों आज में आपको एक दोस्ती की कहानी सुनाने जा रही हो,,दोस्ती
    का एक एक पल हमारे ज़िंदगी का कितना खास बन जाता है ये हमे पता ही चलता
    है |

    एक स्कूल में निशा नाम की लड़की पढ़ती थी , और उसी के क्लास में तान्या नाम
    की भी लड़की पढ़ती थी वो दोनों 1 क्लास से ही साथ पढ़ती थी लेकिन एक दुसरे
    से कभी अछे से बात नहीं की थी और ना ही दोस्त थी लेकिन इन दोनों को मिलना
    ही था |

    11 क्लास में आने के बाद निशा की जितनी ग्रुप की लडकिया थी सब अलग-अलग
    सब्जेक्ट ले ली और निशा की बेस्ट फ्रेंड निहारिका भी कॉमर्स ले ली, जिसके
    वजय से निशा अकेले पड़ गयी , लेकिन निशा और तान्या एक ही सब्जेक्ट लिया और
    एक ही क्लास साथ पड़ी लेकिन फिर भी एक दुसरे को जानते हुए भी दोनों एक
    दुसरे से बात नही करती थी……इसके वजय थी की निशा बहुत ही गंभीर लड़की थी और
    तान्या टॉम बॉय टाइप की लड़की थी, इसीलिए निशा तान्या को पसंद नही करती थी
    लेकिन दूसरी तरफ तान्या निशा से दोस्ती करना चाहती थी |

    निशा के सिट पर पूजा और नेहा आकर बैठने लगी और निशा का अकेलापन दूर होने
    लगा लेकिन तान्या भी निशा से दोस्ती करना चाहती थी , एक दिन तान्या स्कूल
    जल्दी आ गयी और निशा के सिट पर बैठ गयी जब निशा ने तान्या को अपने सिट पर
    देखि तो बहुत गुस्साई और तान्या से कही —"तुम यहाँ क्यूँ बैठी हो " तब
    तान्या ने बोला –"यर मुझे यहाँ बैठा लो क्यूंकि यहाँ सिर्फ तीन ही लडकिया
    बैठी है "

    इस तरह दोनों में बहस हो जाती है बाद में पूजा के आने के बाद और उसके
    कहेने पर निशा तान्या को बैठा लेती है लेकिन फिर दोनों में बातें नही
    होती थी इस तरह दो महिना बीत गया और बातें नही हुई |
    लेकिन किस्मत में दोनों का मिलना लिखा था हुआ ये की पूजा और नेहा स्कूल
    बहुत कम आने लगी और इस तरह निशा पढ़ाई से जुडी बातें तान्या से करने लगी
    और अपनी अपनी बातें करने लगी लेकिन फिर भी दोनों में दोस्ती उतनी नही थी
    जितनी होनी चाहिए |

    एक दिन बातो – बातो में ही निशा ने अपनी स्टोरी लिखने की बात कही और ये
    भी कहा की उसने एक स्टोरी लिखी जो किसी को भी नही सुनाई है लेकिन तान्या
    के जीद करने पर निशा वो स्टोरी तान्या को सुनाया और वो स्टोरी तान्या को
    बहुत अच्छा लगा , तब उस दिन निशा खुद अपने अपने आपको तान्या के करीब
    समझने लगी और उसे दोस्त मानने लगी और एक दिन तान्या ने अपने दिल की बात
    निशा से कहा की –"वो उससे ९ क्लास से दोस्ती करना चाहती " ये बात सुनते
    ही निशा ने बोला–"तो तुमने तब क्यूँ नही किया " तब तान्या ने कहा
    –"क्यूंकि तुम मुझसे बात नही करती थी और मेरी तरफ देखती भी नही थी "|
    उस दिन से उन दोनों में बहुत गहरी दोस्ती हुई और इतनी गहरी की वो दोस्ती
    फॅमिली फ्रेंडशिप में बदल गयी |

    सच में एक कहानी ने दो दोस्तों की कहानी लिख दिया , और आज यही मेरी
    दोस्ती मेरे लिए यादगार बन गयी सच में शिवांगी मेरी बहुत अच्छी दोस्त है
    और मेरी कहानी ने मुझे मेरी दोस्त से मिलाया ,,,,

    --
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  18. नमस्कार दोस्तों मैं विकास आज फिर मैं एक किस्सा आपके
    सामने पेश करने जा रहा हूँ , जो वास्तव में ही है हम सब के लिए एक प्रेरणा
    साभित होगा ।

    एक गांव में दो दोस्त रहते थे दोनों कि उम्र में फर्क था एक 10 साल का व दूसरा
    6 साल का था । दोनों साथ साथ खाना खाते साथ -साथ हर काम करते यानि दोनों में
    घनिष्ट मित्रता थी एक दिन वो दोनों अपने गांव से किसी दूसरे गांव में चले गए
    और उनमे से बड़ा वाला दोस्त एक कुए में गिर गया छोटा वाला दोस्त न तो रोया न ही
    चिल्लाया क्योंकि वहाँ पर सुन सान था कोई भी उनकी मदद करने वाला नहीं था । और
    उसने देखा कि एक रस्सी पास में पड़ी हुई थी उसको उठा कर उसने कुएं में डाल दी
    और कुएं वाले दोस्त ने उस रस्सी को पकड़ लिया ।
    दोस्तों ध्यान देना,--- निचे कुएं में 10 साल वाला दोस्त था और उप्पर 6 साल
    वाला और 6 साल वाले बच्चे ने उस रस्सी को खींचना चालू कर दिया और निचे वाला
    दोस्त ऊपर आ गया आखिर कर उस छोटे से बच्चे ने अपने दोस्त को बचा ही लिया ।

    जब वो दोनों दोस्त अपने गांव गए और अपने गांव वालो को ये कहानी बताई तो किसी
    ने भी उनकी नहीं मानी और

    वंहा अगर आप और मैं भी होता तो नहीं मानते , क्योंकि 6 साल का बच्चा 10 के
    बच्चे को नहीं उठा सकता यह सोच हमारे दिमाग में आती । जब किसी ने भी उनकी बात
    नहीं मानी तो उस गांव में एक समजदार चाचा रहते थे उसकी बात पूरा गांव मानता
    था और काफी समजदार भी थे । उनके पास उन बच्चो को ले गये और पूरी कहानी सुनाई
    तो चाचा ने कहा कि बच्चे ये बात कह रहे हैं तो मन लीजिये न बच्चे सही तो बोल
    रहे हैं ।

    पर आज तो गांव वाले चाचा से भी लॉजिक पूछने लग गए कि ऐसा कैसे हो सकता हैं आप
    काफी समजदार हैं और आज आप हमें ये समजा कर बताओ कि वास्तव में ये हुआ ही हैं ।चाचा
    काफी समजदार थे तो उन्होंने कहा कि* वहाँ पर इस छोटे से बच्चे को भ्रमित करने
    वाला या इसको मना करने वाला कोई भी इसका दोस्त या अपना नहीं था , कि तू ये
    काम नहीं कर सकता इस लिए इसने बिना किसी की सुने या सोचे ये काम कर दिया और
    अपने दोस्त को बच्चा लिया । *

    दोस्तों मैं इस कहानी के माध्यम से आपको ये ही कहना चाहूंगा कि किसी भी काम
    को करने से पहले अगर आप किसी कि सलाह लेते हैं तो आपको सलाह देने वाले आपको
    नकारात्मक जो उलझने आएगी उनके बारे में आपको बताएँगे नाकि सफलता के बाद जो
    ख़ुशी आपको मिलेगी ।

    याद रखना मेरे दोस्त अगर आप किसी भी रस्ते पर जा रहे हैं और आपका कोई रास्ता
    रोके तो समज लेना आप सही रास्ते पर जा रहे है । बस आपके अंदर आग होनी चाहिए
    सफलता प्राप्त करने की जैसे कि आपको सिर्फ सफलता कि ही लत लग गई है । आपके
    दिल ,दिमाग व आँखों में सिर्फ सफलता का ही नशा होना चाहिए ,फिर देखो आपको
    सफलता कैसे नहीं मिलाती है।

    इस दुनिया में इंसान से बड़ कर कोई भी मुसीबत या काम नहीं हैं जिसको इंसान
    नहीं कर सकता , जरा एक बार 5 मिनट के लिए सोचिये हवाई जहाज बनाने वाले के
    दिमाग में अगर ये बात आई होगी कि मैं हवाई जहाज बनाऊंगा और वो ऊपर उड़ेगा और ये
    बात अपने दोस्तों को भी बताई होगी तो उन दोस्तों ने हवाई जहाज बनाने वाले की
    कितनी मजाक बनाई होगी ये अंदाजा तो आप भी लगा सकते हैं ।

    दोस्तों इन बातो के माध्यम से मैं आपको ये ही कहना चाहूंगा कि कोई भी काम
    स्टार्ट करने से पहले अगर आपको कोई मना करता हैं तो आप उनका बुरा मत मानिये
    क्योंकि ये मना करने वाले आपके अपने ही होते हैं जैसे आपके पापा , मम्मी ,
    दोस्त , भाई या फिर रिस्तेदार और ये आपको ये ही बताएँगे कि *" "यार देख ये
    काम तू नहीं कर सकता ।" "* बस ये ही लाइन ये लोग बोलते और आपको क्या करना है
    वो मैं बताता हूँ आपको सिर्फ इनसे एक ही सवाल पूछना है वो हैं --*" " यार ये
    काम में क्यों नहीं कर सकता ।" " *बस आपका काम ख़तम हो गया क्योंकि इस क्यों का
    जवाब 90% लोगो को नहीं मिलेगा ।

    और अब बचे 10% लोग जो आपको इस तरह से बताएँगे कि उस बात से तो आपके इस काम से
    कोई रिस्ता या तालुक ही नहीं हैं जैसे आपकी पढ़ाई से आपको टच करवाएंगे जैसे
    कोई भी आप बिज़निस स्टार्ट कर रहे हैं और आपसे कहेंगे कि देखा तेरे से ये काम
    नहीं होगा क्योंकि ये काम रमेश ने किया था और उससे नहीं हुआ , वो तो तुझसे
    से पढ़ने में भी ज्यादा था उसके उस क्लास में 96% अंक आये थे और तेरे 60% कैसे
    कर पायेगा तू ये सब । इस प्रकार बिना सारांश वाली बातो में आपको फंसाते रहते
    है ।
    अब आप मुझे एक बात बताओ साला पढाई का बिज़निस से क्या सम्बन्ध आ गया ।
    दोस्तों अपने को भ्रमित वो ही करते है जिनसे वो काम नहीं होता या फिर उन्होंने
    किसी को इस काम में असफल होते हुए देख लिया ।

    ALL THE BEST
    शुभकामनाये .........
    विकास शर्मा
    7567646013
    ROYALGENEX2013@GMAIL.COM



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  19. क्या कभी आपने google.com या pipl.com पर अपना नाम टाइप करके देखा है! आप
    हैरान रह जाएंगे कि आपके बारे में कितनी सारी जानकारी इंटरनेट पर मौजूद
    है।

    इसमें आपकी फोटो, ईमेल एड्रेस, फोन नबंर और परिवार की जानकारी भी हो सकती
    है। यह खतरनाक है और आने वाली किसी मुश्किल का संकेत भी। इसलिए जरूरत है
    इंटरनेट पर काम करते हुए सावधान रहने की।

    सोशल मीडिया प्रोफाइल न भरें
    जितनी ज्यादा सूचना आप ऑनलाइन शेयर करेंगे उतना ही किसी के लिए आप तक
    पहुंचना आसान हो जाएगा, इसलिए ऐसा न करें। अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल पर
    एक नजर डालें और दी गई जानकारी सीमित करें।

    जिन लोगों को आपका नाम, जन्मदिन, ईमेल एड्रेस और फोन नंबर जानने की जरूरत
    है, वह इस बारे में जानते हैं।

    हार्डवेयर पासवर्ड भी जरूरी
    मामला पीसी, लैपटॉप का हो या फिर मोबाइल का, अपनी डिवाइस में पासवर्ड
    जरूर सेट करें। डिवाइस के खो जाने या गलती से कहीं छूट जाने की स्थिति
    में यह पासवर्ड आपकी प्राइवेसी की सुरक्षा करेगा।

    पासवर्ड के अलावा ऐसे एप भी इंस्टॉल करें जो आपकी डिवाइस के खोने पर उसकी
    लोकेशन का पता लगा सकें। यह भी ध्यान रखें कि आपका कंप्यूटर और मोबाइल
    डिवाइसेज एंटी-मालवेअर एप्स और सॉफ्टवेयर से लोडिड हों।

    प्राइवेट ब्राउजिंग का इस्तेमाल करें
    यदि आप नहीं चाहते कि कोई भी आपके कंप्यूटर तक पहुंच बनाकर यह देखे कि आप
    ऑनलाइन क्या सर्फ कर रहे हैं तो 'प्राइवेट ब्राउजिंग' के ऑप्शन को एनेबल
    करें। यह सेटिंग सभी वेबब्राउजर में उपलब्ध होती है। यह कुकीज, टेम्परेरी
    फाइल और आपकी ब्राउजिंग हिस्ट्री को आपके विंडो क्लोज करने के बाद डिलीट
    कर देता है।

    पासवर्ड पर पकड़
    यह काफी मुश्किल है कि आप अपनी दर्जन भर ऑनलाइन सर्विसेज के लिए अलग-अलग
    पासवर्ड का इस्तेमाल करें और उन्हें याद रखें। इसलिए ज्यादातर लोग एक ही
    पासवर्ड का इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि अगर
    फिशिंग अटैक या किसी और तरीके से किसी के हाथ आपका पासवर्ड लग गया तो वह
    आपके सभी अकाउंट्स तक पहुंच सकता है और आपके लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है।

    इस परेशानी से बचने के लिए पासवर्ड मैनेजर का इस्तेमाल करें। इसके लिए
    LAstPass एक अच्छा विकल्प है, जो पासवर्ड मैनेज करने का काम करता है।

    टू-फैक्टर ऑथेंटिफिकेशन
    आप अपने फेसबुक, गूगल, ड्रॉपबॉक्स, माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर और अन्य
    अकाउंट्स को टू-फैक्टर ऑथेंटिफिकेशन से लॉक कर सकते हैं। इसका मतलब यह है
    कि जब आप लॉग इन करते हैं तो आपको एक स्पेशल कोड एंटर करने की जरूरत होती
    है, जो कि वह साइट आपके फोन पर मैसेज के द्वारा भेजती है।

    कुछ सर्विसेज में इसकी जरूरत हर बार लॉग इन करते वक्त होती है और कुछ में
    सिर्फ तब, जब आप नया डिवाइस या वेब ब्राउजर इस्तेमाल करते हैं।

    गूगल अलर्ट सेट करें
    यह एक आसान तरीका है वेब की दुनिया में हो रही आपसे जुड़ी बातों को जानने
    का। इसके लिए आपको सिर्फ गूगल को यह बताना कि आप किन चीजों पर नजर रखना
    चाहते हैं। जब बात अपनी प्राइवेसी की है तो आप अपना नाम दर्ज कर सकते
    हैं। इसके अलावा जिन वेब पेज या ब्लॉग्स पर आप नजर रखना चाहते हैं उनके
    बारे में गूगल को बताकर भी अलर्ट सेट कर सकते हैं।

    पैसे देकर करें शॉपिंग
    बिजनेस इन्साइडर नामक एक वेबसाइट की मानें तो क्रेडिट कार्ड कंपनियां
    आपके द्वारा खरीदे जाने वाले सामान की जानकारी एडवरटाइजर्स को बेचती हैं।
    यदि आप नहीं चाहते कि ऐसा हो तो शॉपिंग करने के लिए पुराने तरीके का ही
    इस्तेमाल करें। यानी नगद दें और सामान लें।


    सोशल नेटवर्क एक्टिविटी को प्राइवेट रखें
    फेसबुक सेटिंग चेक करें और वहां अपने दोस्तों को ही अपनी एक्टिविटी से
    जुड़ने की इजाजत दें। ऊपर की ओर दाईं तरफ बने प्राइवेसी सेटिंग के विकल्प
    पर जाएं और वहां 'हू कैन सी माई स्टफ' पर जाकर विकल्प सेट करें। ट्विटर
    के लिए भी सेटिंग विकल्प पर जाएं। यहां जाकर आप हर तरह की प्राइवेसी
    सेटिंग कर सकते हैं।

    मसलन उस बॉक्स के बारे में जो ट्विटर को यह अनुमति देता है कि वह आपकी
    ट्वीट्स के साथ आपकी लोकेशन भी दिखाए या फिर यह कि आपके ट्वीट सिर्फ वही
    लोग देख पाएं, जिन्हें आपने अनुमति दी है। इसी तरह गूगल + पर भी आप
    सेटिंग्स में जाकर यह तय कर सकते हैं कि आपसे कौन बात कर सकता है और आपके
    पोस्ट्स पर कौन कमेंट कर सकता है। इस तरह आप सोशल नेटवर्क से जुड़े
    रहेंगे, वो भी सुरक्षा के साथ।

    इंटरनेट की दुनिया में घूमते हुए कहीं आप अपनी प्राइवेसी को तो खतरे में
    नहीं डाल रहे? यह सवाल कुछ लोगों को हैरान कर सकता है, मगर सच यही है कि
    हर बात के लिए इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग पर बढ़ती निर्भरता के कारण
    इंटरनेट यूजर की निजी जानकारी बेहद आसानी से सबके पास जा रही है।

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  20. हम भारतीयों के लिए बच्चों के भविष्य की प्लानिंग करना हमेशा से एक
    अत्यधिक भावनात्मक पहलू रहा है। अपने बच्चे का भविष्य अच्छे से अच्छा
    बनाने के लिए हमारे यहां मां-बाप अपनी हर खुशियों से समझौता करने को
    तैयार रहते हैं।

    पर, अब हमें बदलती जरूरतों और जीवनशैली के साथ अपने बच्चे के भविष्य की
    योजना बनाते समय भावनात्मक होने की बजाय अधिक व्यावहारिक रवैया अपनाना
    चाहिए।

    अमूमन, बच्चों के लिए फाइनेंशियल प्लानिंग में हम लंबी अवधि की जरूरतों,
    मसलन बच्चे के शिक्षा, शादी आदि पर अधिक ध्यान देते हैं, लेकिन हमें लघु
    अवधि में और बार-बार होने वाले खर्चों के बारे में भी जरूर ध्यान देना
    चाहिए।

    शादी के साथ ही चाइल्ड फ्यूचर प्लानिंग
    एक सबसे उपयोगी सलाह है कि हमें शादी के साथ ही अपने बच्चे के संभावित
    खर्चों के लिए प्लानिंग शुरू कर देनी चाहिए।

    इसकी शुरुआत बैंक रेकरिंग डिपाजिट या लिक्विड म्यूचुअल फंड में निवेश के
    साथ की जा सकती है। इससे प्रत्येक माह बच्चे के टीकाकरण, दवाइयां, बेबी
    फूड आदि पर होने वाले खर्चों का प्रबंधन आसानी से किया जा सकता है।

    यदि आप तत्काल फैमिली बढ़ाना नहीं चाहते हैं, तो बैंक रेकरिंग डिपॉजिट या
    लिक्विड फंड में जमा की गई छोटी राशि भविष्य में जब भी आप इस पहलू पर
    विचार करें, आपकी नकदी की जरूरतों को पूरा करने में सहायक होगी।

    खोलें बच्चों के बैंक व पीपीएफ अकाउंट
    बच्चे के नाम पर एक बैंक अकाउंट जरूर खोलें और संबंधियों, दादा-दादी या
    अन्य किसी परिचित से 'शगुन' के तौर पर मिलने वाले नकदी उपहार को उसमें
    जमा करें। इस पैसे का इस्तेमाल कभी भी अपने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए न
    करें।

    यदि आप अपने बजट से अधिक खर्च करते हैं, तो बेहतर यही होगा कि अपने बढ़ते
    खर्चों पर लगाम लगाएं और उसे कम करें।

    अपने बच्चे के नाम पर एक पीपीएफ अकाउंट जरूर खोलें और उसमें बच्चे के
    बैंक डिपाजिट का एक बड़ा हिस्सा नियमित तौर पर निवेश करें।

    यह पीपीएफ अकाउंट लंबी अवधि में आपके बच्चे की जरूरत के समय मददगार होगा।
    पीपीएफ अकाउंट की मैच्योरिटी पर मिलने वाली राशि करमुक्त होती है।

    कर्ज से लेकर बचत खाते तक के विकल्प
    परिवार के बदलते खर्चों, लघु अवधि की जरूरतों और बच्चे की लंबी अवधि की
    आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए आप अपने जीवन और स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी
    की समीक्षा करें और जीवन बीमा कवर की सम एश्योर्ड राशि में बढ़ोतरी
    कराएं।

    इस बारे में अपने वित्तीय सलाहकार से चर्चा करें और अपने लिए उचित जीवन
    बीमा कवर की राशि जान लें।

    यदि किसी व्यक्ति के पास पर्याप्त बीमा है और वह नियमित तौर पर अनुशासित
    रूप से निवेश करता है, तो वह कम से कम खर्चे पर अपने लक्ष्य को हासिल कर
    सकता है।

    जीवन बीमा पॉलिसी की समीक्षा करने के साथ-साथ बच्चे का नाम भी हेल्थ
    इंश्योरेंस पॉलिसी में शामिल और उसका कवर भी निश्चित रूप से बढ़वा लेना
    चाहिए।

    वेतनभोगी कर्मचारी को केवल नियोक्ता द्वारा उपलब्ध कराई गई पॉलिसी पर ही
    निर्भर नहीं रहना चाहिए, उन्हें अलग से अपना पर्याप्त मेडीक्लेम कवर जरूर
    लेना चाहिए।

    जोखिम और निवेश अवधि का रखें ध्यान
    चाइल्ड फ्यूचर प्लानिंग के लिए भी कमोबेश उन्हीं निवेश विकल्पों का
    इस्तेमाल किया जाता है, जिनका उपयोग अन्य दूसरे लक्ष्यों की प्राप्ति के
    लिए होता है।

    इसलिए, आपको निवेश पर मिलने वाले रिटर्न, उन पर करदेयता, निवेश की अवधि
    और जोखिम उठाने की क्षमता का आकलन करके ही उचित निवेश प्रोडक्ट का चयन
    करना चाहिए।

    तमाम अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि लंबी अवधि की बचत के लिए
    इक्विटी में निवेश सबसे बेहतर विकल्प है लेकिन यदि आप उसमें निवेश करने
    के बाद अपनी मानसिक शांति गंवा देते हैं, तो यह आपके लिए उपयुक्त नहीं
    है।

    अपने वित्तीय सलाहकार से जोखिम उठाने की क्षमता का उचित आकलन कर उसकी
    सलाह से वाजिब एसेट क्लास में निवेश शुरू कर सकते हैं।

    महंगाई के दौर में जब स्कूल फीस भी जेब पर भारी पड़ रही है, ऐसे में आपके
    पास पर्सनल लोन लेने का भी विकल्प मौजूद है।

    इसके अलावा बच्चों में बचत को प्रोत्साहित करने के लिए खासतौर से निजी
    बैंक 18 साल से कम आयु के बच्चों के लिए बचत खाते का विकल्प दे रहे हैं।

    ऐसे में आप इनके जरिए एक बेहतर फाइनेंशियल प्लानिंग कर सकते हैं। नर्सरी
    से लेकर सेकेंड्री स्कूल तक की पढ़ाई के लिए बैंक ऑफ बड़ौदा पर्सनल लोन
    के तहत कर्ज दे रहा है। बड़ौदा विद्या स्कीम के तहत माता-पिता अपने
    बच्चों की पढ़ाई के लिए चार लाख रुपये तक का कर्ज ले सकते हैं।

    यह नर्सरी से लेकर 12 वीं कक्षा तक के विद्यार्थी की पढ़ाई आदि के खर्च
    के लिए लिया जा सकता है। इसके लिए माता-पिता को कोई प्रोसेसिंग फीस और
    मार्जिन नहीं देना पड़ता है। साथ ही उस पर कोई सिक्योरिटी भी नहीं देनी
    होती है। बैंक यह कर्ज एक साल के लिए देता है।

    बैंकों में बचत खाता खुलवाने की सुविधा
    निजी क्षेत्र का बैंक एचडीएफसी 'किड्स एडवांटेज अकाउंट ' के तहत सात साल
    से 18 साल तक के बच्चों को खाता खोलता है। खाते पर बच्चे को एटीएम कम
    डेबिट कार्ड की सुविधा मिलती है।

    बैंक खाते पर बच्चे को एक लाख रुपये तक का एजुकेशन बीमा मुफ्त में देता
    है। इसके अलावा फिक्स्ड डिपॉजिट आदि की भी सुविधा मिलती है।

    खाते में 5000 रुपये का औसत मासिक बैलेंस रखना अनिवार्य है। इसी तरह
    आईसीआईसीआई बैंक एक दिन से लेकर 18 साल के बच्चों का बचत खाता खोलता है।

    इसमें न्यूनतम औसत राशि 2,500 रुपये होना अनिवार्य है। बैंक बच्चों के
    लिए स्पेशल रेकरिंग डिपॉजिट की सुविधा और आग्रह पर एटीएम कार्ड भी जारी
    करता है। सभी सरकारी बैंक भी बच्चों के ‌लिए विशेष खाते खोलते हैं।

    मणिकरण सिंघल

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