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  1. "ॐ नमो शिवाय!

    Thursday, February 27, 2014

    "ॐ नमो शिवाय!
    शिव शंकर की जटाओं से निकली है गंगा धार;
    शिव शंकर के गले में शोभित हैं नागराज;
    शिव शंकर के कमंडल में जीवन अमृत की धार;
    शिव शंकर ने किया तांडव कहाये नटराज।
    शिवरात्रि के इस अतिशुभ दिन पाएं शिव शंकर का आशीर्वाद!
    महा-शिवरात्रि की शुभकामनाएं!


    शिव की महिमा अपरं पार;
    शिव करते सबका उद्धार;
    उनकी कृपा आप पर सदा बनी रहे;
    और भोले शंकर आपके जीवन में ख़ुशी ही ख़ुशी भर दे।
    ॐ नमः शिवाय!
    शिवरात्रि की शुभकामनाएं!

    शिव की बनी रहे आप पर छाया;
    पलट दे जो आपकी किस्मत की काया;
    मिले आपको वो सब इस अपनी ज़िंदगी में;
    जो कभी किसी ने भी ना हो पाया।
    महा-शिवरात्रि की शुभकामनाएं!


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  2. आज विश्व टेलीविजन दिवस है. यह दिन है न सिर्फ टेलीविजन की विकासयात्रा
    को याद करने का, बल्कि यह समझने का भी कि टेलीविजन ने दुनिया को बदलने
    में किस तरह अपनी भूमिका निभायी है. टेलीविजन के अब तक के सफर, समाज में
    उसकी भूमिका और उसमें आ रहे बदलावों को समेटने की कोशिश करता आज का नॉलेज

    आज की पीढ़ी को शायद यह विश्वास नहीं होगा कि महज दोत्नतीन दशक पहले लोग
    टेलीविजन पर कार्यक्रम देखने के लिए आसत्नपड़ोस के घरों में जाया करते
    थे. जिस तरह आज शहरों और सुविधासंपन्न गांवों में तकरीबन हर घर में
    टेलीविजन मौजूद है, ऐसा उस समय नहीं हुआ करता था. अस्सी के दशक में देश
    में जब टेलीविजन ने उच्चवर्गीय घरों के दायरे से निकलते हुए मध्यवर्गीय
    परिवारों में प्रवेश किया, तो किसी को यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि इतनी
    जल्दी यह इतना लोकप्रिय हो जायेगा. 1990 के महज एक दशक की अवधि में यह
    तकरीबन प्रत्येक मध्यवर्गीय घरों में लोकप्रिय हो गया.

    भारत में भले ही टेलीविजन की शुरुआत 1959 में हो चुकी थी, लेकिन इसकी
    लोकप्रियता 1980 के दशक में कायम हुई. रामानंद सागर निर्देशित धारावाहिक
    'रामायण' , 1982 के एशियाई खेलों और 1987 में भारत में आयोजित 'विश्व कप
    क्रिकेट' ने भारत में टेलीविजन की लोकप्रियता को बहुत हद तक बढ़ावा देने
    में अग्रणी भूमिका निभायी. धारावाहिक 'रामायण' के प्रसारण के समय तो
    सड़कों पर सन्नाटा छा जाता था.

    इसे टेलीविजन की लोकप्रियता ही कहा जायेगा कि इस धारावाहिक में 'भगवान
    राम' का किरदार निभानेवाले अरुण गोविल को लोग उनके नाम से कम, बल्कि
    'भगवान राम' की भूमिका के लिए अधिक जानने लगे. तकरीबन उसी दौर में
    'बुनियाद' और 'हम लोग' जैसे धारावाहिकों, जिन्हें भारत का शुरुआती शोप
    ऑपेरा भी कहा जा सकता है, ने भारत में टेलीविजन की दुनिया को एकदम से बदल
    दिया. क्रिकेट खेल के सीधे प्रसारण ने लोगों में एक अलग तरह का रोमांच
    पैदा कर दिया. हालांकि उस दौर में रंगीन टेलीविजन की शुरुआत हो चुकी थी,
    लेकिन ब्लैक एंड व्हाइट की तुलना में ज्यादा कीमती होने के चलते इसकी
    मौजूदगी बहुत कम ही घरों में थी. लेकिन दो दशकों से कम समय में भारत में
    टेलीविजन ने संचार के दूसरे साधनों के समान ही अविश्वसनीय प्रगति की है.
    इस प्रगति की कहानी में दूरदर्शन की कहानी अभिन्न तरीके से जुड़ी हुई है.

    दूरदर्शन की उपलब्धि

    दूरदर्शन ने देश में सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन, राष्ट्रीय एकता को
    बढ़ावा देने और वैज्ञानिक सोच को एक नयी दिशा प्रदान करने में महत्वपूर्ण
    भूमिका निभायी. इसने देश में लंबे समय तक पब्लिक ब्रॉडकास्टर की भूमिका
    निभायी और अपनी तमाम खामियों के बावजूद यह काम आज भी कर रहा है. दूरदर्शन
    का पहला प्रसारण 15 सितंबर, 1959 को प्रयोगात्मक आधार पर आधे घंटे के लिए
    शैक्षिक और विकास कार्यक्रमों के रूप में शुरू किया गया था. उस समय
    दूरदर्शन का प्रसारण सप्ताह में महज तीन दिन आधात्नआधा घंटे ही होता था.
    उस समय इसे 'टेलीविजन इंडिया' के नाम से जाना जाता था. वर्ष 1975 में
    इसका हिंदी नामकरण 'दूरदर्शन' नाम से किया गया.

    दूरदर्शन ने धीरे-धीरे अपने पैर पसारे और दिल्ली में 1965, मुंबई में
    1972, कोलकाता और चेन्नई में 1975 में इसका प्रसारण शुरू किया गया. 15
    अगस्त, 1965 को पहले समाचार बुलेटिन का प्रसारण दूरदर्शन से किया गया था.
    दूरदर्शन के नेशनल चैनल पर रात साढ़े आठ बजे प्रसारित होने वाला
    राष्ट्रीय समाचार बुलेटिन तकरीबन उसी समय से आज भी जारी है. 1982 में
    दिल्ली में आयोजित एशियाई खेलों के प्रसारण से श्वेत और श्याम दिखने वाला
    दूरदर्शन रंगीन हो गया.

    टेलीविजन की कहानी

    कई लोगों की कड़ी मेहनत और तकरीबन तीन दशक के रिसर्च के बाद टेलीविजन का
    आविष्कार हुआ. सबसे पहले 1875 में बोस्टन के जॉर्ज कैरे ने सुझाव दिया था
    कि किसी चित्र के सारे अवयवों या घटकों को एक साथ इलेक्ट्रॉनिक तरीके से
    भेजा जा सकता है. इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए 1887 में एडवियर्ड
    मायब्रिज ने इनसान और जानवरों के हलचल की फोटोग्राफिक रिकॉर्डिग की. इसे
    उन्होंने लोकोमोशन नाम दिया. इसके बाद ऑगस्टे और लुईस लुमियर नाम के दो
    भाईयों ने सिनेमैटोग्राफ नाम की संरचना का विचार रखा, जिसमें एक साथ
    कैमरा, प्रोजेक्टर और प्रिंटर था. उन दोनों ने 1895 में पहली पब्लिक
    फिल्म बनायी. 1907 में रूसी वैज्ञानिक बोरिस रोसिंग ने पहले एक
    प्रयोगात्मक टेलीविजन प्रणाली के रिसीवर में एक सीआरटी का उपयोग किया और
    इससे टीवी को नया रूप मिला. फिर लंदन में स्कॉटिश आविष्कारक जॉन लोगी
    बेयर्ड चलती छवियों के संचरण का प्रदर्शन करने में सफल रहे. बेयर्ड
    स्कैनिंग डिस्क ने एक रंग छवियों का 30 लाइनों को संकल्प कर उसे प्रस्तुत
    किया. इस तरह टीवी के आविष्कार में अनेक वैज्ञानिकों ने अहम रोल अदा
    किया, लेकिन ब्लादीमीर ज्योरकिन को ही 'टीवी का पिता' कहा जाता है.
    उन्होंने 1923 में आइकोनोस्कोप की खोज की. यह ऐसी ट्यूब थी, जो एक चित्र
    को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से किसी चित्र से जोड़ती है. इसके कुछ साल बाद ही
    उन्होंने काइनस्कोप यानी कैथोडत्नरे ट्यूब खोज निकाली. इसकी मदद से
    उन्होंने एक स्क्वायर इंच का पहला टीवी बनाया. यह ब्लैक एंड व्हाइट टीवी
    थी. इसके बाद रंगीन टेलीविजन की तकनीक को खोजने में तकरीबन बीस वर्ष लग
    गये. दुनिया की पहली रंगीन टेलीविजन 1953 में बनी.

    टेलीविजन प्रसारण में बीबीसी ने पहला टीवी प्रसारण केंद्र बनाते हुए 1932
    में अपनी सेवा शुरू की. 22 अगस्त, 1932 को लंदन के ब्रॉडकास्ट हाउस से
    पहली बार टीवी का प्रायोगिक प्रसारण शुरू हुआ और 2 नवंबर, 1932 को बीबीसी
    ने एलेक्जेंडरा राजमहल से दुनिया का पहला नियमित टीवी चैनल का प्रसारण
    शुरू कर दिया था. इसके पांच साल बाद राजा जॉर्ज छठवें ने राज्याभिषेक
    समारोह को ब्रिटेन की जनता तक सीधे पहुंचाने के लिए पहली बार ओवी वैन का
    इस्तेमाल किया. उसके बाद 12 जून 1937 को पहली बार विंबल्डन टेनिस का सीधा
    प्रसारण दिखाया गया था. 9 नवंबर 1947 को टेलीविजन के इतिहास में पहली बार
    टेली रिकार्डिग कर उसी कार्यक्रम का रात में प्रसारण किया गया. वहीं
    दूसरी तरफ अमेरिका में 1946 में एबीसी टेलीविजन नेटवर्क का उदय हुआ. पहली
    बार रंगीन टेलीविजन का अविर्भाव 17 दिसंबर 1953 को अमेरिका में हुआ और
    विश्व का पहला रंगीन विज्ञापन कैप्सूल 6 अगस्त 1953 को न्यूयॉर्क में
    प्रसारित हुआ था. 1967 में पूरी दुनिया की करोड़ों जनता ने अमेरिका की
    नेटवर्क टीवी के जरिये चांद पर गये दोनों आतंरिक्ष यात्रियों को चांद पर
    उतरते देखा. इसके बाद 1976 में पहली बार केबल नेटवर्क के जरिये टेलीविजन
    प्रसारण का इतिहास कायम किया गया. 1979 में सिर्फ खेलकूद का विशेष टीवी
    नेटवर्क इएसपीएन स्थापित हुआ.

    पिछले दो दशकों में टेलीविजन की दुनिया ने आश्चर्यजनक प्रगति की है. इस
    प्रगति में न सिर्फ नयेत्ननये टेलीविजन सेटों का आविष्कार शामिल है,
    बल्कि टेलीविजन देखने का पूरा तरीका ही बदल गया है. अब टेलीविजन मोबाइल
    फोन और इंटरनेट पर भी उपलब्ध है. आज टेलीविजन हाइ डिफिनिशन हो चुका है,
    थ्री डाइमेंशनल हो गया है. वास्तव में अपनी शुरुआत के 80 वर्षो में
    टेलीविजन की प्रगति आश्चर्यचकित करती है, लेकिन आनेवाले समय में इसे
    कंप्यूटर से और कड़ी चुनौती मिलना तय है. बहरहाल दुनिया में संचार के
    तरीके को बदलने में इसने जो भूमिका निभायी है, वह अविस्मरणीय है.

    टेलीविजन संचार का सबसे सशक्त माध्यम है. लोगों को दुनियाभर की जानकारी
    देने में टेलीविजन की अहम भूमिका को देखते हुए 17 दिसंबर, 1996 को
    संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 नवंबर को हर वर्ष विश्व टेलीविजन दिवस के
    तौर पर मनाने का फैसला किया. 21 नवंबर की तारीख इसलिए चुनी गयी, क्योंकि
    इसी दिन पहले विश्व टेलीविजन फोरम की बैठक हुई थी. माना जाता है कि विश्व
    टेलीविजन दिवस मनाने का कारण यह भी रहा कि टेलीविजन के द्वारा एकत्नदूसरे
    देशों की शांति, सुरक्षा, आर्थिक सामाजिक विकास व संस्कृति को जाना व
    समझा जा सके.

    इनकी निगाह में टेलीविजन

    बान की-मून, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव

    टेलीविजन ने पूरे विश्व में लोगों के रहन-सहन के तौर-तरीकों और उनकी
    जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया है. समानता आधारित कार्यक्रमों के माध्यम
    से, टेलीविजन ने वैश्विक मुद्दों को रेखांकित किया है और समुदायों एवं
    परिवारों के बीच संघर्षो और उम्मीदों को समझने में मददगार साबित हुआ है.
    संयुक्त राष्ट्र यह कामना करता है कि प्रसारकों के सहयोग से यह समाज को
    सूचना और शिक्षा मुहैया कराने के साथ-साथ हमारे लिए एक बेहतर दुनिया के
    निर्माण की ओर अग्रसर होगा.

    लेक वालेसा, पोलैंड के पूर्व राष्ट्रपति (1990-95),

    नोबेल विजेता

    लोकतंत्र की एक ऐसी आधारशिला, जिससे असीमित सूचना तक पहुंच कायम होती है.
    टेलीविजन चैनलों का बहुलवाद (प्लूरलिज्म) इनमें से इसका एक आवश्यक और
    अनिवार्य तत्व है.

    कोफी अन्नान, संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव (1997-2006)

    टेलीविजन लोगों की भलाई के लिए एक जबरदस्त ताकत हो सकता है. इससे जुड़े
    हुए लोगों को यह दुनियाभर में बड़ी संख्या में शिक्षा मुहैया करा सकता
    है. यह इसे प्रदर्शित कर सकता है कि हम अपने पड़ोस, नजदीक और दूर स्थित
    लोगों के साथ किस तरह से जुड़े हुए हैं. और, यह उस कोने में पसरे अंधेरे
    में रोशनी फैला सकता है, जहां अज्ञान और नफरत ने अपने पैर फैला रखे हैं.
    ऐसे कंटेंट तैयार करते हुए, जो न केवल ताकतवर, बल्कि कमजोर लोगों की
    कहानी को भी बयां करते होंत्न आपसी समझ और धैर्य को बढ़ावा देने के रूप
    में टेलीविजन उद्योग की अहम भूमिका है. इसका फायदा न केवल दुनिया के धनी
    देशों को हुआ है, बल्कि उन सभी विकासशील देशों को भी इससे बहुत फायदा
    हुआ है, जिसमें दुनिया की ज्यादातर आबादी रहती है.

    दूरदर्शन की यात्रा

    आकाशवाणी के भाग के रूप में टेलीविजन सेवा की नियमित शुरुआत दिल्ली से
    वर्ष 1965 से हुई थी. दूरदर्शन की स्थापना 15 सितंबर, 1976 को हुई. उसके
    बाद रंगीन प्रसारण की शुरुआत नयी दिल्ली में 1982 के एशियाई खेलों के
    दौरान हुई. इसके बाद तो देश में प्रसारण क्षेत्र में बड़ी क्रांति आ गयी.
    दूरदर्शन का तेजी से विकास हुआ और 1984 में देश में तकरीबन हर दिन एक
    ट्रांसमीटर लगाया गया. इस मामले में कुछ महत्वपूर्ण मोड़ को इस तरह से
    रेखांकित किया जा सकता है.

    - दूसरे चैनल की शुरुआत : दिल्ली (9 अगस्त, 1984), मुंबई (1 मई, 1985),
    चेन्नई (19 नवंबर, 1987), कोलकाता (1 जुलाई, 1988)

    - मेट्रो चैनल शुरू करने के लिए एक दूसरे चैनल की नेटवर्किग : 26 जनवरी, 1993

    -अंतरराष्ट्रीय चैनल डीडी इंडिया की शुरुआत : 14 मार्च, 1995

    त्नप्रसार भारती का गठन (भारतीय प्रसारण निगम) : 23 नवंबर, 1997

    -खेल चैनल डीडी स्पोर्ट्स की शुरुआत : 18 मार्च, 1999

    -संवर्धन/ सांस्कृतिक चैनल की शुरुआत : 26 जनवरी, 2002

    -24 घंटे के समाचार चैनल डीडी न्यूज की शुरुआत : 3 नवंबर, 2002



    -निशुल्क डीटीएच सेवा डीडी डाइरेक्ट प्लस की शुरुआत : 16 दिसंबर, 2004

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  4. किसी राजा के पास एक बकरा था. एक बार उसने एलान किया कि
    जो कोई मेरे इस बकरे को जंगल में चराकर तृप्त करेगा, मैं उसे आधा राज्य
    दे दूंगा. किंतु बकरे का पेट पूरा भरा है या नहीं इसकी परीक्षा मैं खुद
    करूँगा. इस एलान को सुनकर एक आदमी राजा के पास आकर कहने लगा कि बकरा को
    चराकर उसका पेट भरना कोई बड़ी बात नहीं है. वह बकरे को जंगल में ले गया
    और पूरा दिन उसे चराता रहा. शाम तक उसने बकरे को खूब घास खिलाई और फिर
    सोचा कि दिनभर इसने इतनी घास खाई है अब तो इसका पेट भर गया होगा. अब इसे
    राजा के पास ले चलना चाहिए. बकरे को लेकर वह राजा के पास गया. राजा ने
    थोड़ी-सी हरी घास बकरे के सामने रखी तो बकरा उसे खाने लगा. इसपर राजा ने
    उस आदमी से कहा – "तुमने उसे पेट भर खिलाया ही नहीं वर्ना वह घास क्यों
    खाने लगता." बहुतों ने बकरे का पेट भरने का प्रयत्न किया किंतु ज्योंही
    दरबार में उसके सामने घास डाली जाती कि वह खाने लगता. एक होशियार व्यक्ति
    ने सोचा - इस एलान का कोई रहस्य है, तत्व है. मैं एक युक्ति से काम
    लूँगा." वह बकरे को चराने के लिए ले गया. जब भी बकरा घास खाने के लिए
    जाता तो वह उसे लकड़ी से मार देता. पूरे दिन में ऐसा कई बार हुआ. अंत में
    बकरे ने सोचा कि यदि मैं घास खाने का प्रयत्न करूँगा तो मार खानी पड़ेगी.
    शाम को वह होशियार व्यक्ति बकरे को लेकर राजदरबार में लौटा. बकरे को उसने
    बिलकुल घास नहीं खिलाई थी फिर भी राजा से कहा, मैंने इसको भरपेट खिलाया
    है. अत: यह अब बिलकुल घास नहीं खायेगा. कर लीजिये परीक्षा. राजा से घास
    डाली लेकिन उस बकरे ने उसे खाना तो दूर उसे न ही देखा न ही सूंघा. बकरे
    के मन में यह बात बैठ गयी थी कि यदि घास खाऊंगा तो मार पड़ेगी. अत: उसने
    घास नहीं खाई.

    यह बकरा हमारा मन ही है. बकरे को घास चराने ले जाने वाला जीवात्मा है.
    राजा परमात्मा है. मन को मारो, मन पर अंकुश रखो. मन सुधरेगा तो जीवन
    सुधरेगा. मन को विवेकरूपी लकड़ी से रोज पीटो. भोग से जीव तृप्त नहीं हो
    सकता. भोगी रोगी होता है. भोगी की भूख कभी शांत नहीं होती. त्याग में ही
    तृप्ति समाई हुई है.


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  5. दुनिया का उसूल है:

    Wednesday, February 19, 2014

    1 ) समय अच्छा हो तो बन जाते हैं सभी साथी, लेकिन समय मुश्किल हो तो बस
    खुद पर भरोसा रखना।

    2 ) वफ़ा की उम्मीद मत रखो इस दुनियाँ से, जब दुआ कबूल ना हो तो लोग भगवान
    बदल लेते हैं।

    3 ) रिश्तों की खूबसूरती एक दूसरे की बात बर्दाश्त करने में है;

    खुद जैसा इंसान तलाश करोगे तो अकेले रह जाओगे।

    4 ) ऐसा छात्र जो प्रशन पूछता है, वह पांच मिनट के किए मूर्ख रहता है;

    लेकिन जो पूछता ही नहीं, वह ज़िंदगी भर मूर्ख रहता है।

    5 ) किसी ऐसे सपेरे की तलाश है, जो आस्तीन में छुपे सांप निकाल दे।

    6 ) दुनिया का उसूल है:

    जब तक काम है, तेरा नाम है, वरना दूर से ही सलाम है।

    7 ) ऐ मेरे मालिक, तुझको कुछ बनाना ही है तो मुझे शून्य बना दे, ताकि
    जिससे भी जुड़ जाऊँ वो दस गुणा हो
    जाए।

    8 ) दुनिया में रहने की सबसे अच्छी दो जगह;

    या तो किसी के दिल में, या किसी की दुआओं में।

    9 ) जिंदगी में हद से ज्यादा ख़ुशी और हद से ज्यादा गम का कभी किसी से
    इज़हार मत करना क्योंकि ये

    दुनिया बड़ी ज़ालिम है। हद से ज्यादा ख़ुशी पर 'नज़र' और हद से
    ज्यादा गम पर 'नमक' लगाती है।

    --
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  6. 1.वफ़ा की उम्मीद मत रखो इस दुनियाँ से, जब दुआ कबूल ना हो तो लोग भगवान
    बदल लेते हैं।

    2. रिश्तों की खूबसूरती एक दूसरे की बात बर्दाश्त करने में है;

    3. खुद जैसा इंसान तलाश करोगे तो अकेले रह जाओगे।
    4. ऐसा छात्र जो प्रशन पूछता है, वह पांच मिनट के किए मूर्ख रहता है;

    लेकिन जो पूछता ही नहीं, वह ज़िंदगी भर मूर्ख रहता है।

    5. किसी ऐसे सपेरे की तलाश है, जो आस्तीन में छुपे सांप निकाल दे।

    6. दुनिया का उसूल है:

    जब तक काम है, तेरा नाम है, वरना दूर से ही सलाम है।

    7. ऐ मेरे मालिक, तुझको कुछ बनाना ही है तो मुझे शून्य बना दे, ताकि
    जिससे भी जुड़ जाऊँ वो दस गुणा हो

    जाए।

    8. ज़िंदगी में आप जितना कम बोलते हैं, आपकी उतनी ज्यादा सुनी जाएगी।

    9. दुनिया में रहने की सबसे अच्छी दो जगह;

    या तो किसी के दिल में, या किसी की दुआओं में।

    10. जिंदगी में हद से ज्यादा ख़ुशी और हद से ज्यादा गम का कभी किसी से
    इज़हार मत करना क्योंकि ये

    दुनिया बड़ी ज़ालिम है। हद से ज्यादा ख़ुशी पर 'नज़र' और हद से ज्यादा
    गम पर 'नमक' लगाती है।


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  7. Quote 1 : Unemployment insurance is a pre-paid vacation for freeloaders.

    In Hindi : बेरोजगारी बीमा मुफ्तखोर के लिए एक प्रीपेड छुट्टी है .

    Ronald Reagan रोनाल्ड रीगन


    Quote 2 : I will never turn Medicare into a voucher. No American
    should ever have to spend their golden years at the mercy of insurance
    companies. They should retire with the care and dignity they have
    earned.

    In Hindi : मैं चिकित्सा को एक वाउचर में कभी नहीं परिणत करूँगा. किसी भी
    अमेरिकी को अपने सुनहरे वर्षों को बीमा कंपनियों की दया पर नहीं बिताना
    चाहिए. उन्हें अपने द्वारा अर्जित गरिमा और प्रतिष्टा के साथ
    रिटायर होना चाहिए.

    Barack Obama बराक ओबामा

    Quote 3 : There are worse things in life than death. Have you ever
    spent an evening with an insurance salesman?

    In Hindi : जीवन में मृत्यु से भी बदतर चीजें हैं. क्या आपने कभी एक बीमा
    विक्रेता के साथ एक शाम बिताया है?

    Woody Allen वुडी एलन

    Quote 4 : Fun is like life insurance; the older you get, the more it costs.

    In Hindi : मज़ा जीवन बीमा की तरह है, आप जितना उम्रदराज होते जाते हैं
    यह उतना महंगा होता जाता है.

    Kin Hubbard किन हबर्ड

    Quote 5 : There should be no private health insurance companies
    operating for profit.

    In Hindi : लाभ के लिए काम कर रही कोई निजी स्वास्थ्य बीमा कम्पनी नहीं होनी चाहिए.

    Michael Moore माइकल मूर

    Quote 6 : Health insurance should be a given for every citizen.

    In Hindi : स्वास्थ्य बीमा हर नागरिक को दी जानी चाहिए .

    Jesse Ventura जेस्से वेंचुरा

    Quote 7 : Insurance companies don't make anything.

    In Hindi : बीमा कंपनियां कुछ भी नहीं बनाती हैं.

    James Dyson जेम्स डायसन

    Quote 8 : One in seven Americans lives without health insurance, and
    that's a truly staggering figure.

    In Hindi : हर सात अमेरिकियों में से एक बिना स्वास्थ्य बीमा के रहता है,
    और वास्तव में यह एक चौंका देने वाला आंकड़ा है.

    John M. McHugh जॉन एम. मकहुग्य

    Quote 9 : Social Security is a family insurance program, not an
    investment scheme.

    In Hindi : सामाजिक सुरक्षा एक परिवार बीमा कार्यक्रम है, एक निवेश योजना नहीं.

    Diane Watson डायने वाटसन

    Quote 10 : I like the freedom of research. Plus, if I fail in
    science, I know I can always survive because I have an M.D. This has
    been my insurance policy.

    In Hindi : मैं अनुसंधान की स्वतंत्रता पसंद करता हूँ. इसके अलावा यदि
    मैं विज्ञान में असफल होता हूँ, मुझे लगता है मैं हमेशा गुजारा करता
    रहूँगा क्योंकि मैं एक एम.डी हूँ. यह मेरा बीमा नीति रही है .

    Shinya Yamanaka शिन्या याम्नाका

    Quote11 : The availability of private insurance provides tremendous
    insulation for millions of individuals.

    In Hindi : निजी बीमा की उपलब्धता लाखों लोगों के लिए जबरदस्त रोधन
    (इन्सुलेशन) प्रदान करता है.

    Lawrence Summers लॉरेंस समर्स

    Quote 12 : But there are 90 million gun owners in the United States.
    Only 3.5 million want the insurance and magazines and the various
    things you get for joining the NRA.

    In Hindi : लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका में 90 लाख बंदूक के मालिक हैं.
    केवल 35 लाख बीमा और पत्रिकायें चाहते हैं और आप एन आर ए में शामिल होकर
    कई चीजें पा सकते हैं.

    Michael D. Barnes माइकल डी. बार्न्स

    Quote 13 : I don't want to know I'm getting older. Then I'll start to
    think about getting checkups and insurance. I don't want that.

    In Hindi : मैं यह नहीं जानना चाहता कि मैं बड़ी हो रहा हूँ. तब मैं
    जांच और बीमा कराने बारे में सोचना शुरू कर दूंगा. मैं वह नहीं चाहता.

    Akon एकॉन

    Quote 14 : We know India better.
    In Hindi : हम भारत को बेहतर जानते हैं.

    LIC एल आई सी

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  8. एक मूर्तिकार था. उसकी बनाई मूर्तियां दूर-दूर तक प्रसिद्ध थीं. उसने
    अपने बेटे को भी मूर्तिकला सिखाई. वह भी अपने पिता के समान ही परिश्रमी
    और कल्पनाशील था. अत: जल्दी ही वह इस कला में पारंगत हो गया और
    सुंदर-सुंदर मूर्तियां बनाने लगा.
    लेकिन मूर्तिकार अपने पुत्र द्वारा बनाई गई मूर्तियों में कोई न कोई कमी
    निकाल देता. इस तरह कई वर्ष गुजर गए. सब उसकी तारीफ करते, लेकिन उसके
    पिता का व्यवहार नहीं बदला. इससे पुत्र दुखी और चिंतित रहने लगा.
    एक दिन उसे एक उपाय सूझा. उसने एक आकर्षक मूर्ति बनाई और अपने एक मित्र
    के हाथों उसे अपने पिता के पास भिजवाया. उसके पिता ने यह समझकर कि मूर्ति
    उसके बेटे के मित्र ने बनाई है,उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की.
    तभी वहां छिपकर बैठा उसका पुत्र सामने आया और गर्व से बोला, यह मूर्ति तो
    मैंने बनाई है. आखिरकार यह मूर्ति आपको पसंद आ ही गई और आप इसमें कोई खोट
    नहीं निकाल पाए. मूर्तिकार बोला – बेटा मेरी एक बात गांठ बांध लो. अहंकार
    व्यक्ति की उन्नति के सारे रास्ते बंद कर देता है. आज तक मैं तुम्हारी
    बनाई मूर्तियों में कमियां निकालता रहा, इसलिए आज तुम इतनी अच्छी मूर्ति
    बनाने में सफल हो पाए हो. यदि मैं पहले ही कह देता कि तुमने बहुत अच्छी
    मूर्ति बनाई है तो शायद तुम अगली मूर्ति बनाने में पहले से ज्यादा ध्यान
    नहीं लगाते.
    यह सुनते ही पुत्र लज्जित हो गया. इसका सारांश यह है कि कला के क्षेत्र
    में पूर्णता की कोई स्थिति नहीं होती. उत्तरोत्तर सुधार से ही श्रेष्ठता
    प्राप्त की जा सकती है.

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  9. कमलनाथ एक सफल व्यापारी थे. उन्हें नींद न आने की बीमारी थी. उनका
    नौकर रामदीन अपने मालिक की बीमारी से दुखी रहता था. एक दिन व्यापारी कमल
    नाथ अपने नौकर रामदीन को सारी संपत्ति देकर चल बसा. संपत्ति का स्वामी
    बनने के बाद रामदीन रात को सोने की कोशिश कर रहा था, किन्तु अब उसे नींद
    नहीं आ रही थी. एक रात जब वह सोने की कोशिश कर रहा था, उसने कुछ आहट
    सुनी. रामदीन ने देखा, एक चोर घर का सारा सामान समेट कर उसे बांधने की
    कोशिश कर रहा था, लेकिन चादर छोटी होने के कारण गठरी बंध नहीं रही थी.

    नौकर रामदीन ने अपनी ओढ़ी हुई चादर चोर को दे दी और बोला, सारा सामान
    इसमें बांध लो. उसे जगा देखकर चोर सामान छोड़कर भागने लगा. किन्तु नौकर
    रामदीन ने उसे रोककर हाथ जोड़कर कहा, भागो मत, इस सामान को ले जाओ ताकि
    मैं चैन की नींद सो सकूँ. इसी ने मेरे मालिक की नींद उड़ा रखी थी और अब
    मेरी भी. उसकी बातें सुन चोर की भी आंखें खुल गईं.

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  10. अजब हैं लोग थोड़ी सी परेशानी से डरते हैं
    कभी सूखे से डरते हैं, कभी पानी से डरते हैं

    तब उल्टी बात का मतलब समझने वाले होते थे
    समय बदला, कबीर अब अपनी ही बानी डरते हैं

    पुराने वक़्त में सुलतान ख़ुद हैरान करते थे
    नये सुलतान हम लोगों की हैरानी से डरते हैं

    हमारे दौर में शैतान हम से हार जाता था
    मगर इस दौर के बच्चे तो शैतानी से डरते हैं

    तमंचा ,अपहरण, बदनामियाँ, मौसम, ख़बर, कालिख़
    बहादुर लोग भी अब कितनी आसानी से डरते हैं

    न जाने कब से जन्नत के मज़े बतला रहा हूँ मैं
    मगर कम-अक़्ल बकरे हैं कि कुर्बानी से डरते हैं

    -सर्वत एम जमाल

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  11. आजादी से अब तक रूपये की यात्रा
    Journey of Indian rupee since independence

    भारतीय रूपया रसातल की ओर है। कहाँ जाकर रूकेगा, कहना मुश्किल है।
    जानकारों ने कह दिया है कि एक डॉलर का यह मूल्य सत्तर रुपए पार कर जाए तो
    भी कोई आश्चर्य नहीं है। रूपये की यह गिरती कीमत डॉलर के मुकाबले है। उस
    डॉलर के मुकाबले जो अमेरिका की करंसी है और दुनिया के अधिकांश देश जिस
    डॉलर में व्यापार करते हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था के माहौल में रूपये की
    गिरती सेहत सचमुच हमारे लिए चिंता का विषय है लेकिन खुद रूपये की अपनी
    क्या कहानी है? क्या है उसका इतिहास और कैसे वह डॉलर के मुकाबले इतना
    बीमार हो गया? आजादी के बाद 66 साल तक रूपये की कहानी, खुद रूपये की
    जुबानी-

    मेरा नाम रुपया है ! मैं गिरता हूँ तो डॉलर इतराने लगता है। आजादी के बाद
    बड़ा ही उतार-चढ़ाव भरा रहा है मेरा सफर ! मेरे लुढ़कने के बारे में तो आप
    रोज सुनते हैं लेकिन 66 सालों के मेरे सफर के बारे में जानना भी कम
    दिलचस्प नहीं है।

    लोग मुझे रुपए के नाम से जानते हैं। जब मैं लुढ़कता हूं तो डॉलर खूब
    इतराता है। एक बार फिर शान से खड़ा है डॉलर। मैं पहले इतना बीमार कभी
    नहीं था। 1947 में जब भारत आजाद हुआ, उस वक्त मैं भी डॉलर के साथ कंधे से
    कंधा मिलाकर चलता था। उस दौर में मेरा यानि भारतीय रुपए का मूल्य अमेरिकी
    डॉलर के बराबर हुआ करता था। लेकिन आज डॉलर की हैसियत मेरे मुकाबले 62
    गुना बढ़ गई है। इसका अर्थ यह हुआ कि मेरे मूल्‍य में पिछले 66 वर्षो में
    डॉलर की तुलना में 62 गुना गिरावट हुई है। स्वतंत्रता के बाद से मेरी
    कीमत लगातार घटती रही है। हाल के महीनों में तो पूरे एशिया में सबसे
    ज्यादा अवमूल्यन मेरा (रुपया) का ही हुआ है। हालात यह हैं कि आज मैं
    दुनिया भर में सबसे ज्यादा अवमूल्यन दर्शाने वाली मुद्राओं की सूची में
    चौथे पायदान पर पहुँच गया हूँ।

    66 साल पहले आजादी के वक्त देश पर कोई विदेशी कर्ज नहीं था। 27 दिसम्बर
    1947 को भारत के वर्ल्ड बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का सदस्य बनने
    के बाद यह सिलसिला टूटने जा रहा था। इन दोनों संस्थाओं में सदस्य देश
    सहयोग राशि जमा करते रहे और फिर जरूरत पड़ने पर कर्ज भी लेते रहे। भारत
    भी इस दौड़ में शामिल हो चुका था। 1947 से 1952 तक दोनों संस्थाओं में
    इसने अरबों डॉलर सहयोग राशि जमा की। 1952 में ही पंचवर्षीय योजना के
    कार्यान्वयन के लिए भारत को कर्जे की जरूरत पड़ी। अरबों रुपये अंशदान के
    रूप में डकार चुके इन दोनों संस्थाओं ने भारत को कर्ज देने के एवज में
    रुपए के अवमूल्यन करने की शर्त रखी। भारत ने अपने रुपए की कीमत, जो उस
    समय अमेरिका के डॉलर के बराबर हुआ करता था, उसे गिरा दिया। फिर लगभग सभी
    पंचवर्षीय योजनाओं के समय भारत ने कर्ज लिया और शर्त स्वरूप रुपए की कीमत
    कम होती रही।

    एक तरह से सरकार ने मेरे गिरने और उठने की कमान अमेरिका जैसे ताकतवर
    देशों के हाथों में सौंप दी। मेरी कीमत 1948 से 1966 के बीच 4.79 रुपए
    प्रति डॉलर तय हो गई। चीन के साथ 1962 में और पाकिस्तान के साथ 1965 में
    हुए युद्धों के भार से भारत का बजट घाटा बढ़ने आर्थिक संकट गहराने लगा।
    इससे बाध्य होकर तत्कालीन इन्दिरा गाँधी की सरकार ने मेरा (रुपए का)
    अवमूल्यन किया और डॉलर की कीमत 7.57 रुपए तय की गई। मेरा संबंध 1971 में
    ब्रिटिश मुद्रा से खत्म कर दिया गया और उसे सीधे तौर पर अमेरिकी मुद्रा
    से जोड़ दिया गया। भारतीय रुपए की कीमत 1975 में तीन मुद्राओं- अमेरिकी
    डॉलर, जापानी येन और जर्मन मार्क के साथ संयुक्त कर दी गई। उस समय एक
    डॉलर की कीमत 8.39 रुपए थी।

    1985 में फिर मेरी कीमत गिरकर 12 रुपए प्रति डॉलर हो गई। सिलसिला यहीं पर
    खत्म नहीं हुआ। भारत के सामने 1991 में भुगतान संतुलन का एक गंभीर संकट
    पैदा हो गया और वह अपनी मुद्रा में तीव्र गिरावट के लिए बाध्य हुआ। देश
    उस समय महंगाई, कम वृद्धि दर और विदेशी मुद्रा की कमी से जूझ रहा था।
    विदेशी मुद्रा तीन हफ्तों के आयात के लिए भी पर्याप्त नहीं थी। इन
    परिस्थितियों से उबरने के लिए सरकार ने एक बार फिर मेरा अवमूल्यन कर दिया
    गया। अब मेरी कीमत 17.90 रुपए प्रति डॉलर तय की गई।

    यह वही दौर था जब वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण जैसे जुमले दुनिया भर
    में अपना पैर पसार रहे थे। वास्तव में ये शब्द वर्ल्ड बैंक और
    अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी वैश्विक संस्थाओं के गढ़े हुए हैं। भारत भी
    इन जुमलों से अछूता न रह सका। सन् 1991 में उदारीकरण, वैश्वीकरण और
    निजीकरण की आवाज भारत की फिजाओं में गूंजने लगी। तत्कालीन वित्तमंत्री
    मनमोहन सिंह इसके अगुआ बने। वर्ल्ड बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की
    शर्तों के जाल में भारत उलझने लगा। बाद में आयात शुल्क खत्म कर दिया गया
    और हमारे स्टॉक एक्सचेंज के दरवाजे भी विदेशी निवेश के लिये खोल दिए गए।
    विदेशी निवेश की यहाँ बाढ़ सी आने लगी और हमारा स्टॉक मार्केट, घरेलू
    बाजार की तरह धीरे-धीरे विदेशियों के कब्जे में जाने लगा। चारों तरफ
    विदेशी शराब, विदेशी बैंक, विदेशी ठंडा और विदेशी मॉल नजर आने लगे।
    विडंबना यह है कि इसी को हम विकास मान रहे थे। जबकि भीतर से लगातार
    बिगड़ती मेरी हालत के बारे में किसी को ख्याल नहीं आया।

    वर्ष 1993 स्वतंत्र भारत की मुद्रा के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। इस
    वर्ष मुझे यानी रुपए को बाजार के हिसाब से परिवर्तनीय घोषित कर दिया गया।
    मेरी कीमत अब मुद्रा बाजार के हिसाब से तय होनी थी। इसके बावजूद यह
    प्रावधान था कि मेरी कीमत अत्यधिक अस्थिर होने पर भारतीय रिजर्व बैंक दखल
    देगा। 1993 में डॉलर की कीमत 31.37 रुपए थी। 2001 से 2010 के दौरान डॉलर
    की कीमत 40 से 50 रुपए के बीच बनी रही। मेरा मूल्य सबसे ऊपर 2007 में
    रहा, जब डॉलर की कीमत 39 रुपए थी। 2008 की वैश्विक मंदी के समय से भारतीय
    रुपए की कीमत में गिरावट का दौर शुरू हुआ। पिछले कुछ समय से बढ़ती
    महंगाई, व्यापार और निवेश से जुड़े आंकड़ों के प्रभाव से मेरी स्थिति
    अत्यधिक कमजोर हो गई है। प्रधानमंत्री फिर शॉर्टकट ढूंढ रहे हैं,
    वित्तमंत्री हाथ-पांव मार रहे हैं, लेकिन मेरे मर्ज की दवा कहीं नजर नहीं
    आ रही।

    वर्ष दर
    (रुपए प्रति डॉलर)
    1947 1
    1948-1966 4.79
    1966 7.50
    1975 8.39
    1980 7.86
    1985 12.38
    1990 17.01
    1993 (बाजार के हिसाब से परिवर्तनीय घोषित) 31.37
    1995 32.43
    2000 43.50
    2005 (जनवरी) 43.47
    2006 (जनवरी) 45.19
    2007 (जनवरी) 39.42
    2008 (अक्तूबर) 48.88
    2009 (अक्तूबर) 46.37
    2010 (जनवरी) 46.21
    2011 (अप्रैल) 44.17
    2011 (सितम्बर) 48.24
    2011 (नवम्बर) 55.40
    2012 (जून) 57.15
    2013 (15 मई) 54.73
    2013 (29 अगस्त 2013) 68.80


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  12. कैटरिंग के अंतर्गत प्रायवेट पार्टियों, होस्टलों, ऑफिस और घर आदि से
    लेकर विशिष्ट और सामान्य लोगों को नाश्ते, भोजन की सुविधाएं देना होता
    है। इसमें भोजन की घर पहुंच सुविधा पर कह सकते हैं। आधुनिक होते समाज की
    आवश्यकताएं भी बढ़ती जा रही हैं।

    भागदौड़ भरी जिंदगी में कई लोगों के इतना भी समय नहीं कि वे अपने भोजन का
    प्रबंध करें। ऐसे में कैटरर्स ही उनकी आवश्यकता की पूर्ति करते हैं।
    कैटरिंग स्वरोजगार का एक बहुत अच्छा विकल्प है। कैटरिंग को छोटे और बड़े
    दोनों स्तरों पर किया जा सकता है। इस काम में अच्छे खाने से लेकर अच्छी
    सर्विस भी शामिल है। इस स्वरोजगार की सफलता का मूलमंत्र है ग्राहक की
    संतुष्टि।

    कस्बों और बड़े शहरों में यह स्वरोजगार के रूप में आसानी से अपनाया जा
    सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कैटरिंग एक नियमित सेवा है, जो अधिकतर
    सुबह के नाश्ते से लेकर रात्रि भोजन तक चलती है। इसमें टिफिनों की संख्या
    रोज घटती-बढ़ती रहती है।

    अपने घर या दुकान कहीं से भी आप कैटरिंग की शुरुआत कर सकते हैं। छोटे
    स्तर पर कार्य शुरू करने के लिए अधिक लोगों की जरूरत नहीं पड़ती, जबकि
    बड़े स्तर पर कार्य के विस्तार से मैन पावर की आवश्यकता रहती है। इससे आप
    दूसरे लोगों को भी रोजगार मुहैया करा सकते हैं।

    छोटे स्तर पर कैटरिंग का व्यवसाय शुरू करने के लिए रजिस्ट्रेशन की जरूरत
    नहीं पड़ती, लेकिन बड़े स्तर पर रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है। इस
    स्वरोजगार को करने के लिए स्वरोजगार अधिनियम की शर्तोँ को पूरा करने पर
    आपको लोन भी मिल सकता है। इसके लिए लघु तथा घरेलू उद्योगों के लिए लोन
    यानी बैंक स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज या प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना के
    नजदीकी कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं।


    यदि कैटरिंग का व्यवसाय बड़े स्तर पर शुरू कर रहे हैं तो इससे संबंधित
    डिग्री, डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स करना आवश्यक है। इन कोर्सेज की
    अवधि तीन माह से तीन साल तक है। इसके लिए होटल मैनेजमेंट, फूड एंड
    प्रोडक्शन से संबंधित कोर्स किए जा सकते हैं। डिप्लोमा कोर्स के लिए
    12वीं पास शैक्षणिक योग्यता होनी चाहिए और डिग्री कोर्स करने के लिए
    स्नातक होना आवश्यक है।

    कैटरिंग के लिए आप इन संस्थानों में संपर्क कर सकते हैं-
    फूडक्राफ्ट इंस्टीट्‍यूट, ओल्ड गार्गी कॉलेज बिल्डिंग, लाजपत नगर, नई दिल्ली।
    फूड क्राफ्ट इंस्टीट्‍यूट अकेडमी एंड कॉलेज ऑफ होटल मैनेजमेंट, आगराClick
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    ओबराय सेंटर ऑफ लर्निंग एंड डेवलपमेंट, 1 श्यामनाथ मार्ग, नई दिल्ली।
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  13. अक्सर युवा पढ़ाई के बाद अच्छे जॉब की तलाश में रहते हैं। अगर वे किसी
    कॉर्पोरेट सेक्टर में जॉब करते भी हैं तो वहां की सेलरी और सुविधाओं से
    वे संतुष्ट नहीं रहते। ऐसे में युवाओं को नौकरी का मोह छोड़कर बिजनेस को
    भी करियर के रूप में चुनना चाहिए। कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जिनमें बिजनेस
    किया जा सकता है।

    पर्यटन
    भारत में पर्यटन का क्षेत्र काफी तेजी से बढ़ रहा है। राष्ट्रीय और
    अंतरराष्ट्रीय पर्यटन में तेजी से प्रगति हुई है। भारत को दुनिया में एक
    अच्छा पर्यटक स्थल माना जाता है। यहां ऐतिहासिक स्थल विदेशी सैलानियों को
    अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इस क्षेत्र में योग्य प्रोफेशनल्स की भारी कमी
    है। पर्यटन के साथ ही होटल इंडस्ट्री भी जुड़ी हुई है इस क्षेत्र में भी
    काफी मांग है और वर्तमान की बात की जाए तब बजट होटल्स को विदेशी काफी
    पसंद करते हैं।

    ऑटोमोबाइल
    देश का ऑटोमोबाइल क्षेत्र काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। विश्व के
    ऑटोमोबाइल मार्केट को भारत से ही जरूरी कल पुर्जे भेजे जाते हैं। भारत
    में इंजीनियरिंग बेस काफी अच्छा होने के कारण विश्व की कई अग्रणी कार
    निर्माताओं ने भारत में निर्माण आरंभ किए हैं। इस क्षेत्र में कार
    निर्माताओं को कई छोटे कलपुर्जों को जरूरत पड़ती रहती है अगर किसी एक
    क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित कर बिजनेस आरंभ किया जाएं तब यह नौकरी से काफी
    अच्छा रिटर्न देगा।

    टेक्सटाइल

    दुनियाभर में भारतीय टेक्सटाइल उद्योग की अलग पहचान है। हमारे देश में
    टेक्सटाइल के क्षेत्र में इतनी विविधता है कि प्रत्येक राज्य में अलग
    स्टाइल के कपड़े पहने जाते हैं। देश में लुधियाना से लेकर कई ऐसे शहर हैं
    जहां से कपड़ों का निर्यात होता है। आप इस क्षेत्र में जाना चाहते हैं तब
    छोटे स्तर से बिजनेस आरंभ कर सकते हैं। देश के भीतर भी इस क्षेत्र में
    विकास की दर काफी अच्छी है।

    सामाजिक क्षेत्र
    सामाजिक क्षेत्र काफी तेजी से विकसित हो रहा है। इसमें आप ग्रामीण
    क्षेत्रों में बिजनेस लगा सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़े-लिखे
    युवाओं की संख्या भी कम नहीं है। उन्हें थोड़ा बहुत प्रशिक्षण देकर आप
    अपना बिजनेस आरंभ कर सकते हैं। सरकार के द्वारा भी ऐसे क्षेत्रों में
    बिजनेस करने वालों को प्रोत्साहित किया जाता है। इसके अलावा रिसाइकलिंग,
    एनर्जी सोल्युशन्स, एवं बायोटेक्नोलाजी के क्षेत्र में भी बिजनेस आरंभ
    किया जा सकता है।

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  14. उज्जयिनी में माधव भगत अपने परिवार के साथ रहता था। एक दिन माधव भगत घर
    में अकेला था। दैवयोग से उसी समय राजमहल से माधव भगत को भोजन के लिए
    विशेष निमंत्रण प्राप्त हो जाता है। अब वह इस धर्म संकट में आ गया कि यदि
    बालक को छोड़कर जाता हूँ तो इसकी देख-रेख कौन करेगा और यदि भोजन के लिए
    नहीं जाता हूँ तो एक ओर राजा कुपित हो जाएँगे। ऐसा अवसर बार-बार नहीं
    मिलता।

    इसी उधेड़बुन में उसको एकाएक विचार आया कि मैंने घर पर एक नेवले को बहुत
    सालों से पाला हुआ है। अतः माधव ने अपने पुत्र की तरह पाले हुए नेवले को
    बालक की रक्षा के लिए उसके पालने के पास बैठा दिया और स्वयं राजभवन चला
    गया। इसके बाद बालक के पालने के पास अचानक एक काला साँप आ पहुँचता है।

    नेवले ने तुरंत झपट्टा मार कर साँप के कई टुकड़े कर दिए। इस बीच जब राजभवन
    से लौटने पर माधव भगत ने उस रक्तरंजित नेवले को देखा तो उसे लगा कि नेवले
    ने उसके बच्चे को मारकर खा लिया है।

    बस फिर क्या था, उस भगत ने बिना विचारे नेवले को मार डाला। लेकिन जब वह
    बच्चे के पालने के पास पहुँचा तो वहाँ बच्चा सकुशल खेल रहा था और पालने
    के पास काला सर्प मरा पड़ा था।

    अब माधव भगत को बहुत पछतावा हुआ कि उसने बिना विचार किए ही उस स्वामिभक्त
    नेवले को मार डाला। इसीलिए नीतिकार कहते हैं बिना विचारे कुछ नहीं करना
    चाहिए। ऐसा करने वाले बाद में पछताते हैं।
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  15. कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है
    मगर धरती की बेचैनी को, बस बादल समझता है
    मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है
    ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है

    मोहब्बत एक एहसासो की, पावन सी कहानी है
    कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है
    यहाँ सब लोग कहते है, मेरी आँखों में आंसू है
    जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है

    समंदर पीर के अंदर है, लेकिन रो नहीं सकता
    ये आंसू प्यार का मोती है , इसको खो नहीं सकता
    मेरी चाहत को दुल्हन तू, बना लेना मगर सुनले
    जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता

    भ्रमर कोई कुमुदनी पर, मचल बैठा तो हंगामा
    हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
    अभी तक डूब कर सुनते थे, सब किस्सा मोहब्बत का
    हम किस्से को, हकीक़त में, बदल बैठे तो हंगामा

    तुम्हारे पास हूँ लेकिन, जो दूरी है समझता हूँ
    तुम्हारे बिन मेरी हस्ती , अधूरी है समझता हूँ
    तुम्हे मै भूल जाऊँगा, ये मुमकिन है नही लेकिन
    तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ

    मैं जब भी तेज चलता हूँ ,नज़ारे छूट जाते हैं
    कोई जब रूप धरता हूँ , तो साँसे टूट जाती है
    मैं रोता हूँ तो आकार लोग कन्धा थपथपाते हैं
    मैं हँसता हूँ तो अक्सर लोग मुझसे रूठ जाते हैं

    बहुत टुटा बहुत बिखरा, थपेड़े सह नहीं पाया
    हवाओं के इशारो पर मगर में बह नहीं पाया
    अधुरा अनसुना ही रह गया, ये प्यार का किस्सा
    कभी में कह नहीं पाया कभी तुम सुन नहीं पाई

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  16. एक समय शहर से कुछ ही दूरी पर एक मंदिर का निर्माण कैया जा रहा था। मंदिर
    में लकडी का काम बहुत थ इसलिए लकडी चीरने वाले बहुत से मजदूर काम पर लगे
    हुए थे। यहां-वहां लकडी के लठ्टे पडे हुए थे और लठ्टे व शहतीर चीरने का
    काम चल रहा था। सारे मजदूरों को दोपहर का भोजन करने के लिए शहर जाना पडता
    था, इसलिए दोपहर के समय एक घंटे तक वहां कोई नहीं होता था। एक दिन खाने
    का समय हुआ तो सारे मजदूर काम छोडकर चल दिए। एक लठ्टा आधा चिरा रह गया
    था। आधे चिरे लठ्टे में मजदूर लकडी का कीला फंसाकर चले गए। ऐसा करने से
    दोबारा आरी घुसाने में आसानी रहती हैं।

    तभी वहां बंदरों का एक दल उछलता-कूदता आया। उनमें एक शरारती बंदर भी था,
    जो बिना मतलब चीजों से छेडछाड करता रहता था। पंगे लेना उसकी आदत थी।
    बंदरों के सरदार ने सबको वहां पडी चीजों से छेडछाड न करने का आदेश दिया।
    सारे बंदर पेडों की ओर चल दिए, पर वह शैतान बंदर सबकी नजर बचाकर पीछे रह
    गया और लगा अडंगेबाजी करने।

    उसकी नजर अधचिरे लठ्टे पर पडी। बस, वह उसी पर पिल पडा और बीच मेंअडाए गए
    कीले को देखने लगा। फिर उसने पास पडी आरी को देखा। उसे उठाकर लकडी पर
    रगडने लगा। उससे किर्रर्र-किर्रर्र की आवाज निकलने लगी तो उसने गुस्से से
    आरी पटक दी। उन बंदरो की भाषा में किर्रर्र-किर्रर्र का अर्थ 'निखट्टू'
    था। वह दोबारा लठ्टे के बीच फंसे कीले को देखने लगा।

    उसके दिमाग में कौतुहल होने लगा कि इस कीले को लठ्टे के बीच में से निकाल
    दिया जाए तो क्या होगा? अब वह कीले को पकडकर उसे बाहर निकालने के लिए जोर
    आजमाईश करने लगा। लठ्टे के बीच फंसाया गया कीला तो दो पाटों के बीच बहुत
    मजबूती से जकडा गया होता हैं, क्योंकि लठ्टे के दो पाट बहुत मजबूत
    स्प्रिंग वाले क्लिप की तरह उसे दबाए रहते हैं।

    बंदर खूब जोर लगाकर उसे हिलाने की कोशिश करने लगा। कीला जोज्र लगाने पर
    हिलने व खिसकने लगा तो बंदर अपनी शक्ति पर खुश हो गया।

    वह और जोर से खौं-खौं करता कीला सरकाने लगा। इस धींगामुश्ती के बीच बंदर
    की पूंछ दो पाटों के बीच आ गई थी, जिसका उसे पता ही नहीं लगा।

    उसने उत्साहित होकर एक जोरदार झटका मारा और जैसे ही कीला बाहर खिंचा,
    लठ्टे के दो चिरे भाग फटाक से क्लिप की तरह जुड गए और बीच में फंस गई
    बंदर की पूंछ। बंदर चिल्ला उठा।

    तभी मजदूर वहां लौटे। उन्हें देखते ही बंदर नी भागने के लिए जोर लगाया तो
    उसकी पूंछ टूट गई। वह चीखता हुआ टूटी पूंछ लेकर भागा।

    सीखः बिना सोचे-समझे कोई काम न करो।

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  17. एक राजा के शयनकक्ष में मंदरीसर्पिणी नाम की जूं ने डेरा डाल रखा था। रोज
    रात को जब राजा जाता तो वह चुपके से बाहर निकलती और राजा का खून चूसकर
    फिर अपने स्थान पर जा छिपती।

    संयोग से एक दिन अग्निमुख नाम का एक खटमल भी राजा के शयनकक्ष में आ
    पहुंचा। जूं ने जब उसे देखा तो वहां से चले जाने को कहा। उसने अपने
    अधिकार-क्षेत्र में किसी अन्य का दखल सहन नहीं था।

    लेकिन खटमल भी कम चतुर न था, बोलो, ''देखो, मेहमान से इसी तरह बर्ताव
    नहीं किया जाता, मैं आज रात तुम्हारा मेहमान हूं।'' जूं अततः खटमल की
    चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गई और उसे शरण देते हुए बोली,

    ''ठीक है, तुम यहां रातभर रुक सकते हो, लेकिन राजा को काटोगे तो नहीं
    उसका खून चूसने के लिए।''

    खटमल बोला, ''लेकिन मैं तुम्हारा मेहमान है, मुझे कुछ तो दोगी खाने के
    लिए। और राजा के खून से बढ़िया भोजन और क्या हो सकता है।''

    ''ठीक है।'' जूं बोली, ''तुम चुपचाप राजा का खून चूस लेना, उसे पीड़ा का
    आभास नहीं होना चाहिए।''

    ''जैसा तुम कहोगी, बिलकुल वैसा ही होगा।'' कहकर खटमल शयनकक्ष में राजा के
    आने की प्रतीक्षा करने लगा।

    रात ढलने पर राजा वहां आया और बिस्तर पर पड़कर सो गया। उसे देख खटमल
    सबकुछ भूलकर राजा को काटने लगा, खून चूसने के लिए। ऐसा स्वादिष्ट खून
    उसने पहली बार चखा था, इसलिए वह राजा को जोर-जोर से काटकर उसका खून चूसने
    लगा। इससे राजा के शरीर में तेज खुजली होने लगी और उसकी नींद उचट गई।
    उसने क्रोध में भरकर अपने सेवकों से खटमल को ढूंढकर मारने को कहा।

    यह सुनकर चतुर खटमल तो पंलग के पाए के नीचे छिप गया लेकिन चादर के कोने
    पर बैठी जूं राजा के सेवकों की नजर में आ गई। उन्होंने उसे पकड़ा और मार
    डाला।

    शिक्षा—अजनबियों पर कभी विश्वास न करो।

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  18. एक दिन की बात है एक जवान मोटा ताज़ा चूहा एक मैदानी क्षेत्र में घूम रहा
    था, इस चूहे में सबसे बड़ी कमी यह थी कि वह स्वयं को विश्व के सब चूहों
    से अधिक शक्तिशाली और चतुर समझता था। वह घमंड और आत्ममुग्धता में इस
    प्रकार ग्रस्त हो गया था कि उसे अपने आगे कोई दिखता ही नहीं था। चूहा
    सीटी बजाता व गुनगुनाता हुआ जा रहा था कि अचानक उसकी नज़र हरे भरे खेत
    में चर रहे ऊंट पर पड़ी। घमंडी चूहे ने स्वयं से कहा कि चलो इस ऊंट को
    चुरा लें। वह यह बात सोच सोच कर प्रसन्न हो रहा था। वह ऊंट के पास गया और
    उसने ऊंट की लगाम को पकड़ कर अपनी ओर खींचा। ऊंट भी खिंचा हुआ चूहे की ओर
    चला गया। ऊंट हरी भरी घास खाकर मस्त था और उसे इधर उधर की कोई परवाह नहीं
    थी, उसे तनिक भी परवाह नहीं थी कि चूहा उसके बारे में क्या सोच रहा है और
    उसे कहां ले जा रहा है। चूहा ऊंट को खींचे जा रहा था और ऊंट था कि खिंचा
    चला जा रहा था। चूहे के फ़रिश्तों को भी ख़बर नहीं थी कि ऊंट मज़ाक़ में
    उसकी ओर खिंचा चला आ रहा है। चूहा सोच रहा था कि उसकी भुजाओं में इतनी
    शक्ति है कि वह ऊंट को अपनी ओर खींच रहा है। वह घमंड में स्वयं से कह रहा
    था कि आज तक किसी ने मेरे जैसा चूहा देखा है जिसने इतने बड़े ऊंट को
    खींचा हो। मैं बहुत शक्तिशाली हूं। मैं विश्व का सबसे शक्तिशाली, सबसे
    चतुर और सबसे होशियार चूहा हूं।





    चूहा और ऊंट चलते चलते एक नदी के किनारे पहुंचे, चूहा इतनी बड़ी नदी और
    उसकी उठती हुई लहरों को देखकर हतप्रभ हो गया और सोचने कि अब कैसे इस नदी
    हो पार किया जाए। ऊंट चूहे के दिल में पक रही खिचड़ी को समझ गया और दिल
    में मुस्कुराते हुए कहने लगा कि क्यों परेशान हो? मर्द की भांति आगे
    बढ़ते रहो और किसी चीज़ से न डरो, तुम मेरे सरदार और मेरे नेता हो। चूहा,
    ऊंट की बातों से लज्जित हो रहा था उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या
    उत्तर दे। अंततः उसने अपने सिर को उठाया और कहा कि यह गहरी नदी है और
    इसकी लहरें भी ऊंची ऊंची हैं मुझे डर है कि कहीं डूब न जाऊं। ऊंट
    मुस्कुराया और कहने लगा कि क्या तुम इस छोटी से नहर से डर रहे हो, तुम
    इतने शक्तिशाली हो कि तुम एक ऊंट को खींच चुके हो, इस छोटी सी नहर में
    डूबने से डरते हो, अच्छा तो पहले मैं इस नदी में ऊतरता हूं और इसकी गहराई
    का पता लगाता हूं फिर तुम आना। ऊंट यह बात कहते ही नदी में ऊतर गया। जब
    ऊंट नदी में उतरा तो पानी उसके घुटनों तक था। उसने चूहे से कहा कि देखा
    प्यारे, देखो डर की क्या बात है? पानी तो केवल मेरे घुटने तक है? आओ नदी
    पार करो और किसी से न डरो।
    चूहे ने आश्चर्य से ऊंट को देखा और कहा कि कुछ पता है क्या बक रहे हो,
    पानी तुम्हारे घुटनों से ऊपर है, तुम जानते हो इसका क्या अर्थ है, ऊंट से
    आश्चर्य से पूछा, नहीं, नहीं जानता। क्या अर्थ है, चूहे ने लज्जित स्वर
    में कहा, चूहे के घुटने और ऊंट के घुटनों में अंतर होता है। ऊंट चूहे की
    बातों पर हंस पड़ा। चूहा समझ गया था कि नदी पार करना उसके बस की बात
    नहीं, अब उसने ऊंट के हाथ पांव जोड़ने आरंभ किए और गिड़गिड़ाकर ऊंट से
    नदी पार करने के लिए कहने लगा। चूहे की बात पर ऊंट का दिल पसीज गया और
    उसने उससे कहा कि मेरे कोहान पर बैठ जाओ। चूहा ऊंट के कोहान पर बैठ गया।
    रास्ते में वह चूहे को उपदेश भी देता जा रहा था। उसने उसे उपदेश दिया कि
    अकारण घमंडी न बनो और ऐसा काम करने की न ठानो जो तुम्हारे बस में न हो,
    चूहे ने लज्जित होकर अपना सिर झुका लिया।

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  19. अगर आप बड़े शहरों में सस्ता किराए का मकान खोजना चाहते हैं, तो इसके लिए
    आपको वेबसाइट का सहारा लेना पड़ेगा। ऐसे बहुत सारे वेबसाइट हैं जैसे
    99acres.com, makaan.com, olx.com, sulekha.com इत्यादि, जहाँ आप सस्ता
    घर ढूंढ़ सकते हैं।

    सस्ता घर आपको city center से काफी दूर बहुत सारे मिल जाएगें, बस एक चीज
    का ध्यान रखें कि मेट्रो स्टेशन या लोकल ट्रेन बगल में हो ताकि आप काम के
    लिए आसानी से यात्रा कर सकें।

    अगर आपके जान-पहचान के लोग पहले से उस शहर में रह रहें हो, जिस शहर में
    आपको किराये का घर चाहिए। तो आप उनके घर के आस-पास के इलाके में वो घर के
    बारे में पूछें जो किराए के लिए उपलब्ध हैं।

    बहुत सारे एजेंट भी आपको सस्ता घर ढ़ूँढ़ने में मदद कर सकते हैं। आप यदि
    किसी और के साथ घर शेयर करें तो आपको किराया और भी कम देना पड़ेगा।

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  20. भारत की आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है, उससे यही उम्मीद की जा सकती है
    की सन 2050 तक भारत की आबादी 170 करोड़ के पार हो जायेगी।

    अभी भारत की आबादी 122 करोड़ है। यह उम्मीद की जा सकती है की 2070-2075 के
    बाद भारत की आबादी घटनी शुरू हो जायेगी। 2070-2075 के बाद महंगाई इतनी बढ़
    जायेगी कि लोग पैसे बचाने के लिए कम बच्चे की चाहत करेंगे, जिसकी वजह से
    बच्चे कम पैदा होंगे और भारत की आबादी घटनी शुरू हो जायेगी।

    जैसे जैसे वक्त बीतता जा रहा है लोगों की मानसिकता भी बदलती जा रही है,
    पहले के लोग ज्यादा पारिवारिक होते थे, अभी के लोगों मे ज्यादा
    पारिवारिक गुण नहीं है। जैसे जैसे लोगों का अपने परिवार से मोह हटेगा
    वैसे वैसे लोगों की ज्यादा बच्चों की जरूरत कम लगेगी। इसलिए भविष्य में
    निश्चित रूप से भारत की आबादी घटनी चालू हो जाएगी।

    अभी आने वाले सालों मे दिक्कतें खूब बढ़ेंगी। 20-30 साल तो जनसंख्या खूब
    बढ़ेगा, खेती सीमित रहने की वजह से महंगाई बढ़नी तय है। बिद्युत की दिक्कत
    बनी रहेगी।

    इसलिए यदि आप भारत मे पैसा कमाना चाहते हैं तो यहाँ के किसी भी सिस्टम
    पर पूरी उम्मीद नहीं लगाये, भारत मे समस्याएँ बहुत सारी हैं और ये बनी
    रहेगी। इन समस्याओं के बीच ही आपको रास्ते बनाने पड़ेंगे और सोच समझ कर
    अच्छे बिजनेस करके पैसे कमाने पड़ेंगे।

    अभी कुछ साल भारत से गरीबी किसी हालत मे जाने वाली नहीं है। 2070-2075
    के बाद ही भारत विकसित देश बन पायेगा।

    भारत के आबादी 200 करोड़ से ज्यादा कभी भी नहीं जाने वाला है, यह बात तो
    पक्की है। 2025 मे भारत कि जनसंख्या चीन से पार हो जायेगी।

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  21. जापान में टेटसुगेन नाम का एक जेन शिष्य था। एक दिन उसके मन में ख्‍याल
    आया कि धर्म सूत्र केवल चीनी भाषा में ही हैं, उन्हें अपनी भाषा में
    प्रकाशित करना चाहिए। सूत्र के सात हजार ग्रंथ प्रकाशित करने का अनुमान
    लगा।

    ग्रंथ के प्रकाशन के लिए टेटसुगेन देश में घूमकर धन इकट्‍ठा करने निकला।
    लोगों ने उदार हृदय से टेटसुगेन की मदद की। किसी-किसी ने तो उसे 100 सोने
    के सिक्के तक दिए। लोगों को टेटसुगेन ने बदले में धन्यवाद दिया। वह इस
    काम में दस साल तक लगा रहा और तब जागर टेटसुगेन के पास ग्रंथ प्रकाशन के
    लिए पर्याप्त धन इकट्‍ठा हो गया।

    उसी समय देश में एक नदी में बाढ़ आई। बाढ़ अपने पीछे अकाल छोड़ गई।
    टेटसुगेनने जो धन ग्रंथ प्रकाशन के लिए इकट्‍ठा किया था वह लोगों की
    सहायता में खर्च कर दिया। इसके बाद जब ‍परिस्थितियाँ सामान्य हुईं तो वह
    फिर से ग्रंथ के प्रकाशन के लिए धन संग्रह करने निकला।

    टेटसुगेन को धन इकट्ठा करते हुए कुछ साल बीत गए। इधर फिर से देश में एक
    महामारी फैल गई। टेटसुगेन ने अभी तक जो भी धन इकट्‍ठा किया था वह फिर से
    लोगों की सेवा में खर्च कर दिया। इस तरह उसने कई लोगों को मरने से बचाया।

    ग्रंथ के प्रकाशन के लिए टेटसुगेन ने तीसरी बार धन इकट्‍ठा करने का
    निश्चय किया। बीस साल बाद जाकर उसकी ग्रंथ प्रकाशित करने की इच्छा पूरी
    हो पाई। उसने ग्रंथों के संकलन का पहला संस्करण निकाला और वह क्योटो की
    ओबाकू विहार में आज भी देखा जा सकता है। जापान में आज भी लोग टेटसुगेन को
    याद करते हुए कहते हैं कि उसने तीन बार सूत्रों के ग्रंथ प्रकाशित करवाए।
    तीसरा ग्रंथ हमें दिखता है, जबकि पहले दो ग्रंथ जो ज्यादा महत्वपूर्ण हैं
    हमें दिखलाई नहीं पड़ते।

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  22. एक डाकू गुरु नानकदेवजी के पास आया और चरणों में माथा टेकते हुए बोला-
    "मैं डाकू हूँ, अपने जीवन से तंग हूँ। मैं सुधरना चाहता हूँ, मेरा
    मार्गदर्शन कीजिए, मुझे अंधकार से उजाले की ओर ले चलिए।" नानकदेवजी ने
    कहा-"तुम आज से चोरी करना और झूठ बोलना छोड़ दो, सब ठीक हो जाएगा।" डाकू
    प्रणाम करके चला गया। कुछ दिनों बाद वह फिर आया और कहने लगा-"मैंने झूठ
    बोलने और चोरी से मुक्त होने का भरसक प्रयत्न किया, किंतु मुझसे ऐसा न हो
    सका। मैं चाहकर बदल नहीं सका। आप मुझे उपाय अवश्य बताइए।"

    गुरु नानक सोचने लगे कि इस डाकू को सुधरने का क्या उपाय बताया जाए।
    उन्होंने अंत में कहा-"जो तुम्हारे मन में जो आए करो, लेकिन दिनभर झूठ
    बोलने, चोरी करने और डाका डालने के बाद शाम को लोगों के सामने किए हुए
    कामों का बखान कर दो।"

    डाकू को यह उपाय सरल जान पड़ा। इस बार डाकू पलटकर नानकदेवजी के पास नहीं
    आया क्योंकि जब वह दिनभर चोरी आदि करता और शाम को जिसके घर से चोरी की है
    उसकी चौखट पर यह सोचकर पहुँचता कि नानकदेवजी ने जो कहा था कि तुम अपने
    दिनभर के कर्म का बखान करके आना लेकिन वह अपने बुरे कामों के बारे में
    बताते में बहुत संकोच करता और आत्मग्लानि से पानी-पानी हो जाता। वह बहुत
    हिम्मत करता कि मैं सारे काम बता दूँ लेकिन वह नहीं बता पाता। हताश-निराश
    मुँह लटकाए वह डाकू एक दिन अचानक नानकदेवजी के सामने आया। अब तक न आने का
    कारण बताते हुए उसने कहा-"मैंने तो उस उपाय को बहुत सरल समझा था, लेकिन
    वह तो बहुत कठिन निकला। लोगों के सामने अपनी बुराइयाँ कहने में लज्जा आती
    है, अतः मैंने बुरे काम करना ही छोड़ दिया।" नानकदेवजी ने उसे अपराधी से
    अच्छा बना दिया।

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  23. पूजा किसे कहें!

    Monday, February 10, 2014

    उन्होंने स्कार्पियो से उतर मंदिर में प्रवेश किया, शिव जी को जल चढ़ाया,
    फिर बारी-बारी से सभी देवी-देवताओं के सामने नतमस्तक होती रही। हम भी
    वहीं विधिवत पूजा अर्चना कर रहे थे। हमने सभी मूर्तियों के सामने दस-दस
    के नोट चढ़ाए, दान-पात्र में पचास रुपए का करारा नोट डाला। इन सौ-सवा सौ
    रुपए के बदले प्रभु से अ‍नगिनत बार मिन्नतें कीं। पति की कमाई में दोगुनी
    बढ़ोतरी करें, बेटे की नौकरी लग जाए, बेटी की शादी किसी धनाढ्‍य खानदान
    में हो जाए। उधर हमारा ध्यान उन प्रौढ़ भक्त पर भी था जिन्होंने अभी तक
    प्रभु के चरणों में एक रुपया भी नहीं चढ़ाया था।

    हमने सगर्व एक पचास रुपए का नोट पंडितजी को चरण स्पर्श करके दिया और
    प्रदर्शित किया, पूजा इसे कहते हैं। हम दोनों पूजा के बाद साथ ही मंदिर
    के बाहर निकले, हमें मंदिर के द्वार पर एक परिचित मिल गईं। हम उनसे बातें
    करने लगे मगर हमारा ध्यान उन्हीं कंजूस भक्तों पर रहा।

    उधर उन्होंने अपनी गाड़ी से एक बड़ी सी डलिया निकाली, जिसमें से ताजा बने
    भोजन की भीनी-भीनी महक आ रही थी। वो मंदिर के बगल में बने आदिवासी आश्रम
    में गईं। तब तक हमारी परिचित जा चुकी थीं। अब वो प्रौढ़ा हमारे लिए
    जिज्ञासा का विषय बन गईं। हम आगे बढ़कर उनकी जासूसी करने लगे।

    उन्होंने स्वयं अपने हाथों से पत्तलें बिछानी शुरू कीं, बच्चे हाथ धोकर
    टाट-पट्टी पर बैठने लगे। वो बड़े चाव से आलू-गोभी की सब्जी व गरमागरम
    पराठे उन मनुष्यमात्र में विद्यमान ईश्वर को परोस रही थीं। वाह रे मेरा
    अहंकार! हम इस भोली पवित्र मानसिकता में भक्ति को पनपी देख सोचने लगे,
    पूजा किसे कहते हैं।

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  24. कुछ दिन पहले की बात है। मैंने अपने बच्चों की गवर्नेस जूलिया को अपने
    पढ़ने के कमरे में बुलाया और कहा-"बैठो जूलिया।" मैं तुम्हारी तनख्वाह का
    हिसाब करना चाहता हूँ। मेरे खयाल से तुम्हें पैसों की जरूरत होगी और
    जितना मैं तुम्हें अब तक जान सका हूँ, मुझे लगता है तुम अपने आप तो कभी
    पैसे माँगोगी नहीं। इसलिए मैं खुद तुम्हें पैसे देना चाह रहा हूँ। हाँ,
    तो बताओ तुम्हारी तनख्वाह कितनी तय हुई थी? तीस रुबल महीना तय हुई थी ना?

    "जी नहीं, चालीस रुबल महीना।" जूलिया ने दबे स्वर में कहा।
    "नहीं भाई तीस। मैंने डायरी में नोट कर रखा है। मैं बच्चों की गवर्नेस को
    हमेशा तीस रुबल महीना ही देता आया हूँ। अच्छा... तो तुम्हें हमारे यहाँ
    काम करते हुए कितने दिन हुए हैं, दो महीने ही ना?

    "जी नहीं, दो महीने पाँच दिन।"

    "क्या कह रही हो! ठीक दो महीने हुए हैं। भाई, मैंने डायरी में सब नोट कर
    रखा है। तो दो महीने के बनते हैं- साठ रुबल। लेकिन साठ रुबल तभी बनेंगे,
    जब महीने में एक भी नागा न हुआ हो। तुमने इतवार को छुट्टी मनाई है।
    इतवार-इतवार तुमने काम नहीं किया।

    कोल्या को सिर्फ घुमाने ले गई हो। इसके अलावा तुमने तीन छुट्टियाँ और ली हैं...।"

    जूलिया का चेहरा पीला पड़ गया। वह बार-बार अपने ड्रेस की सिकुड़नें दूर
    करने लगी। बोली एक शब्द भी नहीं।

    हाँ तो नौ इतवार और तीन छुट्टियाँ यानी बारह दिन काम नहीं हुआ। मतलब यह
    कि तुम्हारे बारह रुबल कट गए। उधर कोल्या चार दिन बीमार रहा और तुमने
    सिर्फ तान्या को ही पढ़ाया। पिछले सप्ताह शायद तीन दिन हमारे दाँतों में
    दर्द रहा था और मेरी बीबी ने तुम्हें दोपहर बाद छुट्टी दे दी थी। तो इस
    तरह तुम्हारे कितने नागे हो गए? बारह और सात उन्नीस। तुम्हारा हिसाब
    कितना बन रहा है? इकतालीस। इकतालीस रुबल। ठीक है न ?

    जूलिया की आँखों में आँसू छलछला आए। वह धीरे से खाँसी। उसके बाद अपनी नाक
    पोंछी, लेकिन उसके मुँह से एक भी शब्द नहीं निकला।

    हाँ एक बात तो मैं भूल गया था' मैंने डायरी पर नजर डालते हुए कहा - 'पहली
    जनवरी को तुमने चाय की प्लेट और प्याली तोड़ डाली थी। प्याली का दाम
    तुम्हें पता भी है? मेरी किस्मत में तो हमेशा नुकसान उठाना ही लिखा है।
    चलो, मैं उसके दो रुबल ही काटूँगा। अब देखो, तुम्हें अपने काम पर ठीक से
    ध्यान देना चाहिए न? उस दिन तुमने ध्यान नहीं रखा और तुम्हारी नजर बचाकर
    कोल्या पेड़ पर चढ़ गया और वहाँ उलझकर उसकी जैकेट फट गई। उसकी भरपाई कौन
    करेगा? तो दस रुबल उसके कट गए। तुम्हारी इसी लापरवाही के कारण हमारी
    नौकरानी ने तान्या के नए जूते चुरा लिए। अब देखो भाई, तुम्हारा काम
    बच्चों की देखभाल करना है। इसी काम के तो तुम्हें पैसे मिलते हैं। तुम
    अपने काम में ढील दोगी तो पैसे तो काटना ही पड़ेंगे। मैं कोई गलत तो नहीं
    कर रहा हूँ न?

    तो जूतों के पाँच रुबल और कट गए और हाँ, दस जनवरी को मैंने तुम्हें दस
    रुबल दिए थे...।'
    'जी नहीं, आपने मुझे कुछ नहीं दिया...।'
    जूलिया ने दबी जुबान से कहना चाहा।
    'अरे तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ? मैं डायरी में हर चीज नोट कर लेता
    हूँ। तुम्हें यकीन न हो तो दिखाऊँ डायरी?
    'जी नहीं। आप कह रहे हैं, तो आपने दिए ही होंगे।'
    'दिए ही होंगे नहीं, दिए हैं।'
    मैं कठोर स्वर में बोला।
    'तो ठीक है, घटाओ सत्ताइस इकतालीस में से... बचे चौदह.... क्यों हिसाब ठीक है न?
    उसकी आँखें आँसुओं से भर उठीं। उसके शणीर पर पसीना छलछला आया। उसकी आवाज
    काँपने लगी। वह धीरे से बोली - 'मुझे अभी तक एक ही बार कुछ पैसे मिले थे
    और वे भी आपकी पत्नी ने दिए थे। सिर्फ तीन रुबल। ज्यादा नहीं।'

    undefinedजूलिया ने यह सबकुछ सुना व फिर चुपचाप चली गई। मैंने उसे जाते
    हुए देखा और सोचा - 'इस दुनिया में कमजोर लोगों को डरा लेना कितना आसान
    है!'
    'अच्छा' मैंने आश्चर्य के स्वर में पूछा और इतनी बड़ी बात तुमने मुझे
    बताई भी नहीं? और न ही तुम्हारी मा‍लकिन ने मुझे बताई। देखो, हो जाता न
    अनर्थ। खैर, मैं इसे भी डायरी में नोट कर लेता हूँ। हाँ तो चौदह में से
    तीन और घटा दो। इस तरह तुम्हारे बचते हैं ग्यारह रुबल। बोलो भाई, ये रही
    तुम्हारी तनख्‍वाह...? ये ग्यारह रुबल। देख लो, ठीक है न?

    जूलिया ने काँपते हाथों से ग्यारह रुबल ले लिए और अपने जेब टटोलकर किसी
    तरह उन्हें उसमें ठूँस लिया और धीरे से विनीत स्वर में बोली - 'जी
    धन्यवाद।'
    मैं गुस्से से आगबबूला होने लगा। कमरे में टहलते हुए मैंने क्रोधित स्वर
    में उससे कहा -
    'धन्यवाद किस बात का?'
    'आपने मुझे पैसे दिए - इसके लिए धन्यवाद।'
    अब मुझसे नहीं रहा गया। मैंने ऊँचे स्वर में लगभग चिल्लाते हुए कहा, 'तुम
    मुझे धन्यवाद दे रही हो, जबकि तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैंने तुम्हें
    ठग लिया है। तुम्हें धोखा दिया है। तुम्हारे पैसे हड़पकर तुम्हारे साथ
    अन्याय किया है। इसके बावजूद तुम मुझे धन्यवाद दे रही हो।'

    'जी हाँ, इससे पहले मैंने जहाँ-जहाँ काम किया, उन लोगों ने तो मुझे एक
    पैसा तक नहीं दिया। आप कम से कम कुछ तो दे रहे हैं।' उसने मेरे क्रोध पर
    ठंडे पानी का छींटा मारते हुए कहा।

    'उन लोगों ने तुम्हें एक पैसा भी नहीं दिया। जूलिया! मुझे यह बात सुनकर
    तनिक भी अचरज नहीं हो रहा है। मैंने कहा। फिर स्वर धीमा करके मैं बोला -
    जूलिया, मुझे इस बात के लिए माफ कर देना कि मैंने तुम्हारे साथ एक
    छोटा-सा क्रूर मजाक किया। पर मैं तुम्हें सबक सिखाना चाहता था। देखो
    जूलिया, मैं तुम्हारा एक पैसा भी नहीं काटूँगा।

    देखो, यह तुम्हारे अस्सी रुबल रखे हैं। मैं अभी तुम्हें देता हूँ, लेकिन
    उससे पहले मैं तुमसे कुछ पूछना चाहूँगा।

    जूलिया! क्या जरूरी है कि इंसान भला कहलाए जाने के लिए इतना दब्बू और
    बोदा बन जाए कि उसके साथ जो अन्याय हो रहा है, उसका विरोध तक न करे? बस
    चुपचाप सारी ज्यादतियाँ सहता जाए? नहीं जूलिया, यह अच्छी बात नहीं है। इस
    तरह खामोश रहने से काम नहीं चलेगा। अपने आप को बनाए रखने के लिए तुम्हें
    इस संसार से लड़ना होगा। मत भूलो कि इस संसार में बिना अपनी बात कहे कुछ
    नहीं मिलता...।

    जूलिया ने यह सबकुछ सुना व फिर चुपचाप चली गई। मैंने उसे जाते हुए देखा
    और सोचा - 'इस दुनिया में कमजोर लोगों को डरा लेना कितना आसान है!'
    - एंटन चेखव

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  25. नदियों का पानी बोतल में, गंगा जल बिकता होटल में
    पानी पर सबका अधिकार, बंद करो इसका व्यापार।

    हरा नीम और पीली हल्दी, बासमती और हाफुस आम
    धीरे-2 बिक जाएँगे जंगल झरने चारों धाम।

    अपना गौरव अपनी भाषा, एक वर्ष में बारह मासा
    हिन्दी की खाता है लेकिन अँग्रेजी मे करे तमासा
    ये तो बस अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है...

    अपने रीति रिवाजों पर जिसको कोई अभिमान नहीं
    जहां गायें कटती लाखों मे, वो मेरा हिंदुस्तान नहीं।

    उत्सव को बाजार बनाया, रिश्तों को व्यापार बनाया
    दौलत के भूखे-प्यासों ने, बच्चों को औज़ार बनाया।

    सिंहासन पर कातिल बैठा, जो हक मांगे उसको लाठी
    क्रान्ति हो रही कम्प्युटर पर, किसे याद अब हल्दी घाटी
    ये तो बस अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है

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