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  1. http://ashokakela.blogspot.in

    अपने बारे में क्या बताऊँ ..कुछ बताने लायक है ही नही ..

    एक सीधा-सादा साधरण मनुष्य जो एक अच्छा इंसान बनने

    की कोशिश में भी नाकामयाब है अभी तक ...

    एक अनपढ़ .अपने एहसासों को महसूस करके आपसे बाँटने

    की कोशिश में ..बस जिन्दगी के इस फ़लसफ़े के साथ ...

    जो भी प्यार से मिला ...हम उसी के हो लिए ...

    जो कहूँगा....सच कहूँगा ...
    बस!!! ये ही... सच है .....|

    लफ्ज़ कम हैं पास मेरे, एहसास बहुत है
    एहतराम करता हूँ ,ये मेरे ख़ास बहुत हैं |
    इन्ही के इर्द-गिर्द, मैं अपने ख़्वाब बुनता हूँ
    अपने छोटे चमन से ,मैं ये फूल चुनता हूँ |
    --अकेला...

    सच!!! ये दुनियां मैंने देखी है
    इसकी ये अजब कहानी है
    जो मैंने आज सुनानी है ...

    यहाँ कौन किसी का होता है
    यहाँ कौन किसी को रोता है
    यहाँ सब का सुखों से नाता है
    यहाँ दुःख न किसी को भाता है ...

    यहाँ सब के अपने सपने है
    दुःख में न कोई अपने हैं ...
    न यहाँ... कोई बंधू
    न कोई है भ्राता ...
    यहाँ सब का सब से
    सिर्फ सुखों का है नाता ...

    तेरे लिए ,मैं ये कर दूँ
    तेरे लिए मैं वो कर दूँ
    सुनने में अच्छा लगता है
    वक्त आने पे,सब चलता है...

    आज जीवन लगता उदास है
    अपना न कोई आस-पास है
    बहुत प्यार करता था मैं उससे
    लगता था बस! यही मेरा खास है...

    तुम को भी लगेगा ऐसा ही
    जो मुझको आज लगता है
    इसी को जीवन कहते है
    बस ये ऐसे ही ठगता है ....

    आज पढोगे तुम मुझको
    होंठों पे मुस्कराहट लाके
    ज़ोर से झटकोगे सर को
    माथे पे पड़ी लट झटका के ...

    इक दिन जीवन की
    साँझ भी ढलेगी
    न लट लटके गी
    न लट झटके गी
    बस! मुंडी ये तुम्हारी
    इधर-उधर भटके गी...

    तब न कोई आस होगा
    न कोई पास होगा
    अब लगेंगे सब बेगाने
    न अब कोई खास होगा ...

    जो मैंने देखा
    जो मैंने सुना
    जो मैंने सहा
    वो मैंने कहा
    अब सोचो तुम
    अब देखो तुम ...

    तुम किस के बंधू हो
    कौन तुम्हारा है भ्राता
    किस -किस से तुम्हारा
    सुखों-दुखों का है नाता...

    चलते-चलते इक बात बताऊं
    आप कहें तो मैं समझाऊँ
    कलह-क्लेश को दूर भगा दो
    जितने चाहो मीत बना लो...

    एहसान कभी न जताएंगे
    बुढ़ापे में काम आ जायेंगे...


    यहाँ सब की अपनी मर्ज़ी है ,
    यहाँ सब का अपनाज़ज्बा है
    ये भोगा मेरा अपना ही
    जीवन का सच्चा तज़ुर्बा है ||

    http://ashokakela.blogspot.in

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  2. कुछ समय पहले ऑस्ट्रेलिया में आये भूकंप में एक दिल को छु लेने वाली घटना हुई..
    भूकंप के बाद बचाव कार्य का एक दल एक महिला के पूर्ण रूप से ध्वस्त हुए
    घर की जांच कर रहा था,बारीक दरारों में से महिला का मृत शारीर दिखा लेकिन
    वो एक अजीब अवस्था में था,महिला अपने घुटनों के बल बैठी थी ठीक वैसे ही
    जैसे मंदिर में लोग भगवान् के सामने नमन करते है,उसके दोनों हाथ किसी
    चीज़ को पकडे हुए थे,भूकंप से उस महिला की पीठ व् सर को काफी क्षति
    पहुंची थी,

    काफी मेंहनत के बाद दल के सदस्य ने बारीक दरारों में से जगह बना कर अपना
    हाथ महिला की तरफ बढाया इस उम्मीद में की शायद वो जिंदा हो,लेकिन महिला
    का शारीर ठंडा प़ड‍ चूका था,जिसे बचाव दल समझ गया की महिला मर चुकी है,

    बचाव दल ने उस घर को छोड़ दिया और दुसरे मकानों की तरफ चलने लगे,बचाव दल
    के प्रमुख का कहना था की "पता नहीं क्यूँ मुझे उस महिला का घर अपनी तरफ
    खींच रहा था,कुछ था जो मुझसे कह रहा था के मैं इस घर को ऐसे छोड़ कर न
    जाऊं और मैंने अपने दिल की बात मानने का फैसला किया"

    उसके बाद बचाव दल एक बार फिर उस महिला के घर की तरफ पहुंचे,दल प्रमुख ने
    मलबे को सावधानी से हटा कर बारीक दरारों में से अपना हाथ महिला की तरफ
    बढ़ाया और उसके शारीर के निचे स्थित जगह को हाथों से टटोलने लगे,तभी उनके
    मुह से निकला "बच्चा... यहाँ एक बच्चा है"पूरा दल काम में जुट
    गया,सावधानी से मलबा हटाया जाने लगा,तब उन्हें महिला के मृत शारीर के
    निचे एक टोकरी में रेशमी कम्बल में लिपटा हुआ ३ माह का एक बच्चा मिला,दल
    को अब समझ में आ चूका था की महिला ने अपने बच्चे को बचाने के लिए अपने
    जीवन का त्याग किया है,भूकंप के दौरान जब घर गिरने वाला था तब उस महिला
    ने अपने शारीर से सुरक्षा देकर अपने बच्चे की रक्षा की थी.डोक्टर भी जल्द
    ही वहां आ पहुंचे.
    दल ने जब बच्चे को उठाया तब बच्चा बेहोश था,जब बचाव दल ने बच्चे का कम्बल
    हटाया तब उन्हें वहां एक मोबाइल मिला जिसके स्क्रीन पर सन्देश लिखा
    था,"मेरे बच्चे अगर तुम बच गए तो बस इतना याद रखना की तुम्हारी माँ तुमसे
    बहुत प्यार करती है" मोबाइल बचाव दल में एक हाथ से दुसरे हाथ जाने लगा,
    सभीने वो सन्देश पढ़ा,सबकी आँखें नम हो गयी...

    माँ के प्रेम से बढ़ कर दुनिया में और कोई प्रेम नहीं हो सकता

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  3. 1 लड़का 1 लड़की से बहुत प्यार करता था, लेकिन डर के वजह से कुछ कह नहीं
    पाता था. एक दिन उसने निश्चय किया की उस लड़की को मैसेज कर 'I LOVE YOU'
    कहेगा. उसने रात में लड़की के नंबर पर 'I LOVE YOU' लिख कर मैसेज सेंड
    किया और सो गया. कुछ देर बाद उसके मोबाईल पर मैसेज टोन बजा. लेकिन उसने
    डिसाईड किया कि वह मैसेज सुबह उठ कर नहा कर मंदिर हो कर आयेगा उसके बाद
    ही पढ़ेगा. रात भर वह उस लड़की के सपने देखता रहा. सुबह जल्दी उठ कर
    नहाया और मंदिर गया. मंदिर से लौट कर उसने मोबाईल उठाया और मैसेज पढ़ा.
    मैसेज में लिखा था: A/C BALANCE IS INSUFFICIENT / MAIN BALANCE IS 0.08
    MSG CAN NOT BE DELIVERED

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  4. अयोध्या में चूड़ामणि नामक एक क्षत्रिय रहता था। उसे धन की बहुत तंगी थी।
    उसने भगवान महादेवजी की बहुत समय तक आराधना की। फिर जब वह क्षीणपाप हो
    गया, तब महादेवजी की आज्ञा से कुबेर ने स्वप्न में दर्शन दे कर आज्ञा दी
    कि जो तुम आज प्रातःकाल और क्षौर कराके लाठी हाथ में लेकर घर में एकांत
    में छुप कर बैठोगे, तो उसी आँगन में एक भिखारी को आया हुआ देखोगे।

    जब तुम उसे निर्दय हो कर लाठी की प्रहारों से मारोगे तब वह सुवर्ण का
    कलश हो जाएगा। उससे तुम जीवनपर्यन्त सुख से रहोगे। फिर वैसा करने पर वही
    बात हुई। वहाँ से गुजरते हुए नाई ने यह सब देख लिया। नाई सोचने लगा--
    अरे, धन पाने का यही उपाय है, मैं भी ऐसा क्यों न करूँ?

    फिर उस दिन से नाई वैसे ही लाठी हाथ में लिए हमेशा छिप कर भिखारी के आने
    की राह देखता रहता था। एक दिन उसने भिखारी को पा लिया और लाठी से मार
    डाला। अपराध से उस नाई को भी राजा के पुरुषों ने मार डाला।

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  5. खुशवन्त सिंह

    Thursday, March 20, 2014

    जन्म खुशाल सिंह

    2 फ़रवरी 1915

    हदाली, अविभाजित भारत (वर्तमान पाकिस्तान में सरगोधा जिला)

    मृत्यु 20 मार्च 2014 (उम्र 99)

    नई दिल्ली, भारत

    मृत्यु का कारण सामान्य

    राष्ट्रीयता भारतीय

    अल्मा मेटर सेंट स्टीफ़न कॉलेज, दिल्ली

    किंग्स कॉलेज लन्दन

    व्यवसाय पत्रकार, लेखक, इतिहासकार

    जीवनसाथी कँवल मलिक


    व्यक्तिगत जीवन

    खुशवन्त सिंह का जन्म 2 फ़रवरी, 1915 को हदाली, पंजाब (अविभाजित भारत)
    में हुआ था। उन्होंने गवर्नमेण्ट कॉलेज, लाहौर और कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी
    लन्दन में शिक्षा प्राप्त करने के बाद लन्दन से ही क़ानून की डिग्री ली।
    उसके बाद उन्होंने लाहौर में वकालत शुरू की। उनके पिता सर सोभा सिंह अपने
    समय के प्रसिद्ध ठेकेदार थे। उस समय सोभा सिंह को आधी दिल्ली का मालिक
    कहा जाता था।

    खुशवन्त सिंह का विवाह कँवल मलिक के साथ हुआ था। इनके पुत्र का नाम राहुल
    सिंह और पुत्री का नाम माला है। उनका निधन 99 साल की उम्र में 20 मार्च
    2014 को नई दिल्ली में हुआ।

    कैरियर

    एक पत्रकार के रूप में भी खुशवन्त सिंह ने बहुत ख्याति अर्जित की। 1951
    में वे आकाशवाणी से जुड़े थे और 1951 से 1953 तक भारत सरकार के पत्र
    'योजना' का संपादन किया। 1980 तक मुंबई से प्रकाशित प्रसिद्ध अंग्रेज़ी
    साप्ताहिक 'इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया' और 'न्यू डेल्ही' के संपादक
    रहे।

    1983 तक दिल्ली के प्रमुख अंग्रेज़ी दैनिक 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के
    संपादक भी वही थे। तभी से वे प्रति सप्ताह एक लोकप्रिय 'कॉलम' लिखते हैं,
    जो अनेक भाषाओं के दैनिक पत्रों में प्रकाशित होता है। खुशवन्त सिंह
    उपन्यासकार, इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में विख्यात रहे हैं।

    साल 1947 से कुछ सालों तक खुशवन्त सिंह ने भारत के विदेश मंत्रालय में
    महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। 1980 से 1986 तक वे राज्यसभा के मनोनीत
    सदस्य भी रहे।

    वर्तमान संदर्भों और प्राकृतिक वातावरण पर भी उनकी कई रचनाएं हैं। दो
    खंडों में प्रकाशित 'सिक्खों का इतिहास' उनकी प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति है।
    साहित्य के क्षेत्र में पिछले सत्तर वर्ष में खुशवन्त सिंह का विविध
    आयामी योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

    खुशवन्त सिंह ने कई अमूल्य रचनाएं अपने पाठकों को प्रदान की हैं। उनके
    अनेक उपन्यासों में प्रसिद्ध हैं - 'डेल्ही', 'ट्रेन टू पाकिस्तान', 'दि
    कंपनी ऑफ़ वूमन'। इसके अलावा उन्होंने लगभग 100 महत्वपूर्ण किताबें लिखी।
    अपने जीवन में सेक्स, मजहब और ऐसे ही विषयों पर की गई टिप्पणियों के कारण
    वे हमेशा आलोचना के केंद्र में बने रहे। उन्होंने इलेस्ट्रेटेड विकली
    जैसी पत्रिकाओं का संपादन भी किया।

    सम्मान

    भारत सरकार द्वारा साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान
    के लिए उन्हें 1974 में पद्म भूषण और 2007 में पद्म विभूषण से सम्मानित
    किया गया।



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  6. एक बार एक महिला की कार ख़राब हो गयी.
    उसे सूझ नहीं रहा था की क्या करें.
    वो बहुत ही देर तक वहाँ वेट करती रही की कोई आकर
    उसकी मदद कर दे.
    तभी वहाँ से एक आदमी जा रहा था.
    वो बहुत ही गरीब लग रहा था और भूखा भी. वो अपनी साइकिल से उतरा और उस महिला की और
    बढ़ा. महिला बूढी थी. उसे डर लग रहा था की कही ये
    आदमी उसे
    नुकसान पहुंचाने तो नहीं आ रहा है. तभी वो आदमी उसकी Mercedes गाड़ी के आगे खड़े
    हो गया.
    वो धीरे से बोला की मैडम आप क्यों नहीं गाड़ी में बैठ
    जाती है.
    बाहर बहुत ठण्ड है.
    तब तक मैं आपकी गाड़ी को देख लेता हूँ. और मेरा नाम Bryan Anderson हैं.
    महिला को थोड़ी शांति मिली.
    आदमी ने देखा की गाड़ी का केवल टायर पंक्चर
    हो गया हैं. पर उस बूढी महिला के लिए तो ये
    भी बड़ी समस्या थी.
    उसने टायर बदलने का कार्य शुरू कर दिया. और कुछ
    ही देर में नया टायर भी लगा दिया. अब बस उसके नट-वोल्ट कसने थे.
    तभी महिला ने खिड़की से बहार झाँका और
    कहा की "मुझे अगले शहर जाना है. यहाँ से बस गुज़र
    रही थी. तभी गाड़ी ख़राब हो गयी."
    उसने Bryan का बहुत ही धन्यवाद किया.
    उसे पता था की अगर वो नहीं आता तो उसे
    कितनी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता. जल्द
    ही उसने टायर बदल दिया. महिला ने उससे पूछा "तुम्हारे कितने पैसे हुए बेटा?"
    वो इस समय Bryan जो मांगता उसे देने के लिए तैयार
    थी.
    क्योकि उसने पहले ही सारी डरावनी घटनाओं के बारे
    में सोच लिया था जो हो सकती थी. पर Bryan
    की मदद से ऐसा कुछ नहीं हुआ. वो उसकी आभारी थी. पर Bryan ने ऐसा कुछ नहीं
    सोचा था. वो तो बस
    उसकी मदद करने आया था. उसे याद था की जिंदगी में कितनी ही बार लोगों ने
    उसकी मदद की थी. और उसकी जिंदगी अभी तक ऐसे
    ही चलती आई थी. निस्वार्थ मदद लेकर और मदद देकर.
    उसने पैसो के बारे में कभी सोचा भी नहीं था. चाहे
    उसे इनकी कितनी भी जरुरत क्यों न हो. उसने कहा " मुझे आपके पैसे नहीं
    चाहिए मैडम, पर अगर
    आपको अगली बार ऐसा कोई व्यक्ति दिखे जिसे
    आपकी सहायता की जरुरत हो. तो उस समय
    कभी पीछे मत हटीयेगा. तब आप मुझे याद करके मदद कर
    देना. जिंदगी ही आखिर सहयोग पर टिकी हैं." ये कहकर वो चला गया. और महिला
    भी अपने सफ़र पर
    चल दी.
    रास्ते भर वो यही सोचती रही की ऐभी लोग होते है
    जो निस्वार्थ भाव से अनजाने लोगों की मदद कर
    जाते हैं. थोड़ी रात को वो एक पेट्रोल पंप के पास से
    गुजरी. पास ही में एक होटल भी था. उसने सोचा की कुछ खाने के बाद बाकि का सफ़र तय
    किया जाए. बाहर बारिश हो रही थी. जब वो होटल में गयी. तो एक लड़की, जो करीब
    26-28 की होगी,
    अपनी प्यारी मुस्कान के साथ उसके पास आई. और उसे
    अपने बाल पोछने के लिए टॉवेल दिया.
    उस लड़की की मुस्कान बनावटी नहीं थी.
    बूढी महिला ने देखा की वो लड़की करीब ८महीने की pregnant थी.
    उसे देखकर हैरानी हुई की इस हालात में
    वो अपनी परेशानियों की परवाह किये बगेर कैसे उसके
    और बाकि customers के साथ इतना अच्छा व्यवहार
    कर रही हैं. और तभी उसे ब्रायन की याद आई. बूढी महिला ने उसे अपना आर्डर
    दिया. और खाने के
    बाद आने पर पैसे 100 डॉलर उसे दे दिए. जब
    लड़की बाकि के पैसे लौटाने आई.
    तो वो महिला वहां नहीं थी. वो सोचने
    लगी की कहाँ जा सकती है.
    तभी उसे टेबल पर पड़े napkin पर कुछ लिखा मिला. उसे पड़कर उसकी आँखों में
    आंसू आ गए. उसमे लिखा था, "
    तुमे ये पैसे रख लों. कभी किसी ने मेरी भी मदद की थी.
    और अब मेरा फ़र्ज़ बनता है की मैं तुम्हारी मदद करू.
    मेरी बस यही विनती है की तुम इस चैन को यही मत
    टूटने देना. इसे आगे
    बढ़ाना. जरूरतमंद की मदद करना…" और इसके साथ
    ही 400 डॉलर और रखे हुए थे. वो महिला का शुक्रिया करने लगी. उसे और उसके
    पति को इन पैसो की सख्त जरुरत थी. क्योंकि अगले
    महीने ही उनके यहाँ बच्चे
    की संभावना थी… वो होटल का सारा काम करके घर
    पर लौटी. और बिस्तर पर आकर अपने पति के पास लेट
    गयी. उसे ख़ुशी थी की अब उन्हें ज्यादा चिंता करने
    की जरुरत नहीं हैं. उसके पति कई दिनों से परेशान थे.
    उसने अपने पति के गालो को धीरे से चुमते हुए कहा.. सब कुछ ठीक हो जायेगा.
    I love you Bryan
    Anderson. " एक पुरानी कहावत हैं. " जैसा हम करते है
    वैसा ही हमें मिलता हैं… " मैं, आप, हम सभी इस
    कहानी से बहुत कुछ सिख चुके हैं…

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  7. बठिंडा की नंदिनी की इच्छा व उनके परिवार के विशेष सहयोग से नौ साल की
    उम्र में ही नंदिनी ने अपना नाम विश्व रिकॉर्ड में दर्ज करा लिया था।
    स्मरण शक्ति की बदौलत नंदिनी का नाम यूके की वर्ल्ड रिकॉर्ड बुक में भी
    शुमार है। इतना ही नहीं, आरबी डीएवी स्कूल की नौंवी कक्षा की छात्रा
    नंदिनी पर कोरिया की एजुकेशन ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम ने फिल्म तैयार की है।
    इसको पूरे विश्व में छात्रों को मोटीवेट करने के लिए दिखाया गया।
    नंदिनी के पिता बब्बू ने गरीबी में रहते हुए भी अपनी बेटी के लिए अच्छा
    माहौल तैयार किया और उसकी सहायता की। उसके पिता ड्राइक्लीनिंग का काम
    करते हैं। नंदिनी ने बताया कि उसने अपने पिता के सामने कुछ कर गुजरने की
    इच्छा जाहिर की और पिता ने उससे वादा किया कि भले ही वह आर्थिक तौर पर
    गरीब हैं, लेकिन वह अपनी बेटी के सपने को साकार करने के लिए पूरा सहयोग
    देंगे।

    पिता की हल्लाशेरी ने नंदिनी के हौसले बुलंद कर दिए। जब उसने 9 साल की
    उम्र में विश्व रिकॉर्ड कायम किया तो नंदिनी से ज्यादा खुशी उनके पिता को
    थी। इसके बाद समाज ने भी उनका सत्कार किया और आर्थिक तौर पर सहायता भी
    दी। 2013 में गणतंत्र दिवस के मौके पर नंदिनी को डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह
    बादल द्वारा विशेष तौर पर सम्मानित किया गया। धीयां दी लोहड़ी के मौके पर
    सांसद हरसिमरत कौर बादल द्वारा भी नंदिनी को विशेष तौर पर सम्मानित किया
    जा चुका है। नंदिनी ने एबेकस प्रशिक्षण लेकर प्रदेश स्तर के पहले मुकाबले
    में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। ब्रह्मांड के प्लेनेट्स को पृथ्वी के
    चुंबकीय पुल से जोड़कर जीवन की संभावनाएं पैदा करने को वह अपना लक्ष्य
    मानती है। उसने कहा कि इस काम में समय तो जरूर लग सकता है, लेकिन जब वह
    सक्षम हो जाएगी तो सुनसान प्लेनेट्स पर जिंदगी की संभावनाएं पैदा कर
    देगी। उसने आगे कहा कि फिलहाल वह आईएएस अधिकारी बनना चाहती है।

    माता-पिता बेटों की तरह बेटियों को दें मौका

    "मैं अपील करती हूं कि सभी माता-पिता अपने बेटियों को बेटों की तरह हर
    अवसर प्रदान कराएं। बेटी को खुद को साबित करने का मौका दें। मैं दावे में
    साफ कह सकती हूं कि बेटी ये साबित कर देगी कि वह बेटे से किसी भी तरह कम
    नहीं है। बेटी को अनदेखा न करें, उसकी भावना को समझें और खुले आसमान में
    उड़ने का मौका दें।"- नंदिनी, 9वीं की छात्रा।
    --
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